देश की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट आज वॉलमार्ट के हाथों बिक गई। वॉलमार्ट और फ्लिपकार्ट के शीर्ष अधिकारियों की बेंगलुरु में हुई टाउनहॉल मीटिंग में वॉलमार्ट ने फ्लिपकार्ट के 70% शेयरों को करीब साढ़े नौ खरब रुपये में खरीदने का सौदा तय कर लिया। सॉफ्टबैंक के सीईओ मासायोशी सन ने इसकी पुष्टि की है। इस मीटिंग में वॉलमार्ट के सीईओ डग मैकमिलन समेत दोनों कंपनियों के शीर्ष अधिकारी मौजूद रहे।
करीब 13 खरब रुपये मूल्य के फ्लिपकार्ट और दुनिया की सबसे बड़ी रिटले चेन वॉलमार्ट के बीच की हुई यह डील भारत के सबसे बड़े विलय और अधिग्रहण समझौतों में एक है।
खबरों के मुताबिक, अब मैकमिलन दिल्ली रवाना आनेवाले हैं, जहां वह शीर्ष सरकारी अधिकारियों से मुलाकात करके उन्हें वॉलमार्ट की भविष्य की योजनाओं की जानकारी देंगे।
इस डील के बाद भी फ्लिपकार्ट के अपने दो फाउंडरों में एक बिन्नी बंसल के नेतृत्व में ही संचालित होगा। हालांकि, दूसरे फाउंडर सचिन बंसल कंपनी में अपनी पूरी 5.5% की हिस्सेदारी बेचकर बाहर होने का फैसला लिया है।
फ्लिपकार्ट के शुरुआती निवेशकों में रहे टाइगर ग्लोबल और एस्सेल पार्टनर्स की भी टेंसेंट के साथ अपनी छोटी-छोटी हिस्सदेरियां बरकरार रहेंगी। फ्लिपकार्ट का 20% शेयरधारक जापान का सॉफ्टबैंक भी वॉलमार्ट को अपने शेयर बेचकर कंपनी से निकल जाएगा।
खबरों की मानें तो न्यूयॉर्क का हेज फंड टाइगर ग्लोबल और अमेरिका की ही प्राइवेट इक्विटी फंड एसेल पार्टनर्स भी अपनी हिस्सेदारी भी बेच देंगे।
नैस्पर्स लि., चीन की टेंसेंट होल्डिंग्स लि., ईबे इंक और माइक्रोसॉफ्ट वॉलमार्ट के मालिकाना हक वाले फ्लिपकार्ट में भी बने रहेंगे।
सूत्रों ने बताया कि वॉलमार्ट की योजना भारत में कारोबार के विस्तार की है। इसके लिए वह 50 से 60 लाख किराना स्टोर्स से गठजोड़ करके उनके आधुनिकीकरण में मदद करेगा ताकि ये स्टोर्स वॉलमार्ट की संपूर्ण सप्लाइ चेन का हिस्सा बन जाएं।
वॉलमार्ट किराना स्टोर्स के साथ पार्टनरशिप के जरिए भारतीय ग्राहकों को खुद से जोड़ना चाहती है। वॉलमार्ट की भविष्य की योजनाओं से अवगत एक सूत्र के मुताबिक, वॉलमार्ट डिजिटल पेमेंट्स और अन्य क्षेत्रों की तकनीक पर भारी-भरकम निवेश करनेवाला है।
कहा जा रहा है कि वॉलमार्ट के सीईओ डग मैकमिलन शीर्ष सरकारी अधिकारियों के साथ मुलाकात में कंपनी के भारत में ‘पिछले दरवाजे से प्रवेश’ को लेकर पैदा हुए डर पर भी अपनी स्थिति स्पष्ट करेंगे।
ध्यान रहे कि भारत सरकार ने देश में किसी विदेशी रिटेरलर कंपनी को स्टोर खोलने की इजाजत नहीं दी है। कर्नाटक चुनाव की तैयारियां अंतिम चरण में पहुंच रही हैं। ऐसे में बीजेपी सरकार का तंत्र इस तरह का कोई सिग्नल नहीं देना चाहता है जिससे यह संदेश जाए कि इस डील को उसका समर्थन प्राप्त है। ऐसा हुआ तो व्यापारी वर्ग नाराज होगा जिसे बीजेपी का ताकतवर वोट बैंक माना जाता है।