लखनऊ: गंगा दशहरे पर देव सरिता मां गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुयीं थी। उस पावन दिवस की स्मृति में हर साल देश विदेश में यह पर्व हिन्दु समाज के लोग उत्साह के साथ मनाते हैं। इस कड़ी में मनकामेश्वर घाट पर पहली बार गंगा दशहरा पर्व संकल्प दिवस के रूप में उत्साह के साथ मनाया गया। इस अवसर पर मनकामेश्वर मठ मंदिर की महंत देव्यागिरि की अगुवाई में ब्रह्म मुहूर्त में पूजन कर मनकामेश्वर घाट पर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया गया। इस आयोजन में लोक गायिका और समाज में प्रकृति संरक्षण का संदेश देने वाली कुसुम वर्मा को नमोस्तुते मां गोमती श्री सम्मान से अलंकृत किया गया।
भास्कर देव को दस अर्घ्य:
महंत देव्यागिरि की अगुवाई में शंखनाद और नगाड़े, झांझ और डमरू के ताल पर मंत्रों के बीच सूर्य देव को दस भक्तों ने अर्घ्य अर्पित किया। खास बात यह रही कि इसमें अर्घ्य का जल संदेश देती मटकियों में संकलित कर मां गोमती आदि गंगा नदी में प्रवाहित किया गया। किसी मटकी पर बेटी बचाओ का संदेश लिखा था तो किसी पर वर्षा जल संचयन का। इसके अलावा नदी की स्वच्छता और सर्व शिक्षा का भी संदेश मटकियों के माध्यम से दिया गया। यह अर्घ्य भारत माता की विशाल तस्वीर के सामने सूर्य देव को अर्पित किया गया। इसके माध्यम से लोगों को संदेश दिया गया कि राष्ट्र सर्वोपरी है। इसलिए हर नागरिक को चाहिए कि वह देश हित को प्रमुखता दे। श्रीमहंत देव्यागिरि के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को गंगा दशहरा कहते हैं। स्कन्दपुराण के अनुसार किसी भी नदी में सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने से व्यक्ति के सारे विकार दूर हो जाते हैं। फूलों और रंगोंली से अलंकृत घाट का सौन्दर्य देखते ही बना। पूजन अनुष्ठान और सांस्कृतिक आयोजन के बाद प्रसाद का वितरण किया गया। इस अवसर पर जगदीश गुप्त ‘अग्रहरि, सोनी सिंह, अंकुर पाण्डेय, गोलू, मुकेश गुप्ता, उपमा पाण्डेय, अजय कुमार, संजय यादव, दीपू ठाकुर, राहुल, मंटू सोनकर सहित बड़ी संख्या में भक्त् गंगा दशहरा पूजन समारोह में शामिल हुए।
गीतों के माध्यम से दिया गया बेटी बचाओ का संदेश
लोकप्रिय गायिका कुसुम वर्मा के निर्देशन और गायन में उनकी शिष्या शालिनी श्रीवास्तव, जोया अख्तर, कवित रंजन और सविता रंजन ने कितना मुश्किल जीवन है, जीवन कांटो का वन है, बेटी मन का चंदन है। बचाओ बचाओ बेटियां पढ़ाओं पढ़ाओं पढ़ाओं बेटियां। इसके साथ ही दूसरे गीत बाबा निमिया के पेड़ जिनि काटेऊ निमिया चिरिया के बसेर के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया गया। मौका चूंकि गंगा दशहरा का था इसलिए उन्होंने खासतौर से गंगा किनारे लगा मेला चलो सखी गंगा नहाये छुट जाए सारा छमेला चलो री गंगा नहाये सुनाया। इन गीतों की जीवंत प्रस्तुति प्रभात बेला में श्रोताओं को आनंदित कर गई।
रिपोर्ट @शाश्वत तिवारी