मनुष्य की प्रकृति है कि वह सुख में जीना चाहता है परंतु विधि के विधान के अनुसार धरती पर ईश्वर भी जन्म लेकर आता है तो ग्रहों की चाल के अनुसार उसे भी सुख-दुःख सहना पड़ता है। अपने जीवन में आने वाले दुःखों को कम करने अथवा उनसे बचने हेतु उपाय के तौर पर कुण्डली की जांच करवाते हैं और ज्योतिषियों शास्त्री की सलाह से, ग्रह शांति करवाते हैं अथवा रत्न धारण करते हैं। कई बार चमत्कारिक ज्योतिषियों के चक्कर में फँस कर धन गँवाता है। ना तो वो किसी से शिकायत कर सकता है और ना किसी को बता सकता है। इस प्रकार न जानें कितने लोग फँस जाते हैं। न काम बनता है ना पैसा मिलता है।
रत्न स्वयं सिद्ध प्रकृति का अनमोल उपहार हैं
रत्नों में मुख्यतः नौ ही रत्न ज्यादा पहने जाते हैं। सूर्य के लिए माणिक, चन्द्र के लिए मोती, मंगल के लिए मूँगा, बुध के लिए पन्ना, गुरु के लिए पुखराज, शुक्र के लिए हीरा, शनि के लिए नीलम, राहु के लिए गोमेद, केतु के लिए लहसुनियाँ।
ध्यान रहे, ये समस्त रत्न पृथ्वी से मूल रूप में पाए जाने वाले ठोस रसायन हैं जिनमें बहुत से अशुद्ध भी होते हैं और ये लाभ के बदले हानि पहुँचा देते हैं।
रत्न खरीदते समय ध्यान रखना चाहिए कि व्यक्ति विश्वसनीय एवं रत्नों का जानकार हो। रत्न अपरिचित स्थान से नहीं खरीदना चाहिए।
रत्न खरीदते समय काफी समझदारी से काम लेना चाहिए क्योंकि असली और नकली रत्नों में काफी समानता रहती है जिससे गोरखधंधा के आप शिकार हो सकते हैं।
रत्न पहनने के बाद कई बार परेशानियां भी आती हैं अथवा कोई लाभ नहीं मिल पाता है। इस स्थिति में ज्योतिषियों शास्त्री के ऊपर विश्वास डोलने लगता है। जबकि हो सकता है कि आपका रत्न सही नहीं हो।
रत्न खरीदने से पहले बाजार भाव का पता कर लेना इससे रत्न की सत्यता और मूल्य का वास्तविक अनुमान भी मिल जाता है। रत्न अगर टूटा हुआ हो अथवा उसमें दाग धब्बा हो तो कभी नहीं खरीदना चाहिए। इन रत्नों का प्रभाव कम होता है और कुछ स्थितियों में प्रतिकूल परिणाम भी देता है।