भारत के कुल दवा कारोबार में से छः हजार करोड़ रुपये का बिज़नेस मध्यप्रदेश में होता है। जानी मानी दवा कंपनियों ने ज्यादा मुनाफे के लिये ब्रांडेड की जगह सेमी जेनेरिक दवाएं बाजार में उतार दी हैं। कंपनियों के नाम से यह दवाएं आसानी से बाजार में बिक जाती हैं लेकिन मरीज, इन दवाओं में छुपे कमीशन के राज को नहीं समझ पाता।
केंद्र सरकार 400 से अधिक दवाओं को ड्रग प्राईज कंट्रोल में लायी है, लेकिन इससे मरीजों को कोई फायदा नहीं हुआ है। मरीजों को डॉक्टर जो जेनेरिक दवाएं लिखते हैं, उन पर कई गुना अधिक एमआरपी लिखी रहती है। मरीज उसी रेट पर दवाएं खरीद लेता है, जबकि असलियत में यह दवाएं काफी सस्ती होती हैं। इनमें दो हजार प्रतिशत तक का मार्जिन होता है।
जेनेरिक दवाओं को उनके रासायनिक नाम से बेचा जाता है। इसकी पहचान यह है कि रैपर पर ब्रांड नेम की जगह उसका फार्मूला प्रिंट किया जाता है। जेनेरिक दवाओं को तमिलनाडु, मध्यप्रदेश सहित अधिकांश राज्यों में बेचा जा रहा है। सरकार ने जेनेरिक दवाओं के उत्पादन के लिए दवा कंपनियों को लाईसेंस दिए हैं। सरकार चाहती है कि महंगी ब्रांडेड दवाओं की जगह मरीजों को सस्ती जेनेरिक दवाएं मिलें। इसके लिए सरकारी अस्पतालों में जेनेरिक दवाओं की सप्लाई भी शुरू कर दी गई है। डॉक्टरों को भी आदेश दिए गए हैं कि वे पर्चे पर जेनेरिक दवा ही लिखें।
फैक्ट फाईल
छः हजार करोड़ रुपए सालाना का दवा कारोबार होता है प्रदेश में। 45 हजार करोड़ का है जेनेरिक दवाओं का देश भर में कारोबार।
486 दवाएं हैं शेड्यूल कैटेगरी में
सरकार ने 486 दवाओं को शेड्यूल कैटेगरी में रखा है। इस कैटेगरी में आने वाली दवाओं में होलसेल मार्जिन आठ व रिटेल मार्जिन 16 प्रतिशत है। वहीं नॉन शेड्यूल कैटेगरी में होलसेल मार्जिन 10 प्रतिशत व रिटेल मार्जिन 20 प्रतिशत तक है।