नई दिल्ली- गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स अप्रत्यक्ष कर की श्रेणी में आएगा। जीएसटी वह वैट है जिसमे वस्तुओं और सेवाओं दोनों पर ही लागू किया जाएगा। वर्तमान में वैट केवल वस्तुओं पर ही लागू होता है। जीएसटी लागू होने के बाद सेल्स टैक्स, सर्विस टैक्स, एक्साइज ड्यूटी, वैट आदि तमाम तरह के टैक्स हटा दिए जाएंगे। इससे पूरा देश एकीकृत बाजार में बदल जाएगा।
केंद्रीय कर –
सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी
एडीशनल एक्साइज ड्यूटी
स्पेशल एडीशनल ड्यूट ऑफ कस्टम्म्स
मेडिसिनल एंड टॉयलेट प्रिपरेशंस (एक्साइज ड्यूटी) एक्ट 1955 के तहत एक्साइज ड्यूटी
सर्विस टैक्स
एडीशनल कस्टम्स ड्यूटी
सेंट्रल सरचार्ज व सेस
राज्य कर –
वैल्यू एडेड टैक्स (वैट)/ सेल्स टैक्स
लॉटरीज, बेटिंग व गैम्बिलिंग पर कर
एंटरटेनमेंट टैक्स
सेंट्रल सेल्स टैक्स
ऑक्ट्रॉय व एंट्री टैक्स
परचेज टैक्स
लग्जरी टैक्स
स्टेट सेस व सरचार्ज
जीएसटी के तहत देशभर के लिए तय किए जाने वाले टैक्स रेट फिलहाल तय नहीं की गई है। हालांकि कांग्रेस की मांग है कि यह दर 18 प्रतिशत तय की जाए। इससे टैक्स चोरी कम होगी और टैक्स कलेक्शन बढ़ेगा। ऐसा भी माना जा रहा है कि जीएसटी आने के बाद टैक्स का ढांचा पारदर्शी होगा।
अगर यह मानें कि सरकार जीएसटी की दर 18 प्रतिशत पर तय करती है तो आपको लाभ होगा, क्योंकि वैट और एक्साइज दोनों हट जाएंगे और अगर आपको 18 प्रतिशत जीएसटी चुकाना पड़ता है तो ज्यादातर सामान सस्ता हो जाएगा। वर्तमान में आप कुछ खास चीजों को छोड़ कर अन्य चीजों पर अधिकतम 12.5 प्रतिशत की दर से एक्साइज ड्यूटी चुकाते हैं और वैट अपने राज्य के हिसाब से चुकाते हैं। यानी कि मोटे तौर पर आप 25 से 26 फीसदी तक टैक्स चुकाते हैं। ऐसे में जीएसटी आने से आप पर टैक्स का भ्भार कम हो जाएगा और सामान सस्ता हो जाएगा।
आप वर्तमान में सेवाओं पर 14.5 प्रतिशत कर चुकाते हैं। जैसे 1000 रुपए के मोबाइल बिल पर आप 145 रुपए सर्विस टैक्स देते हैं। जीएसटी आने के बाद यह भी 18 प्रतिशत हो जाएगा यानी कि आपको 145 की बजाए 180 रुपए चुकाने होंगे। इस तरह देखा जाए तो रेस्त्रां में खाना, हवाई टिकट, बीमा प्रीमियम आदि तमाम सेवाएं महंगी हो जाएंगी।
जीएसटी को लेकर राज्य सरकारें एकमत नहीं है। इसमें कई तरह के मतभेद हैं। कई लोगों के मन में यह दुविधा है कि यदि यह टैक्स लगाया जाता है तो इसका स्लैब क्या होगा। टैक्स पर निर्णय कौन लेगा। उधर कुछ लोगों का मानना है कि सभी राज्यों का एक टैक्स रेट होगा तो लोगों पर ज्यादा बोझ पड़ेगा, क्योंकि जीएसटी लागू होने पर सारे अधिकार केंद्र के पास होंगे।
उधर सबसे बड़ी समस्या है कि बिल को राज्य सभा में पास कराने के लिए कांग्रेस का समर्थन किस तरह हासिल किया जाए। कांग्रेस की मांग है कि तमिलनाडु, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे उत्पादक राज्यों में लगने वाले एक फीसदी अतिरिक्त टैक्स को खत्म किया जाए। संभावना जताई जा रही है कि मोदी सरकार इस मांग को मंजूर कर सकती है, लेकिन तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके इसे हटाने के विरोध में है।
कांग्रेस की मांग है कि जीएसटी की दर 18 प्रतिशत कानून में ही तय कर दी जाए, जबकि सरकार दर तय करने का अधिकार अपने पास रखना चाहती है।
वर्ष 2006-07 के आम बजट में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि 1 अप्रेल 2010 से जीएसटी लागू कर दिया जाएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। अब अगर इसे लागू किया गया तो संभवत: राज्यों के वित्त मंत्रियों के उच्चाधिकार प्राप्त समिति को जीएसटी का मॉडर और उसे लागू करने की जिम्मेदारी दी जाएगी।
वर्ष 2011 में पेश किए गए पहले विधेयक में एक सर्वव्यापी अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था से राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई का प्रावधान नहीं किया गया था। वहीं वर्तमान विधेयक में राज्यों को पांच साल तक मुआवजा देने का प्रावधान किया गया है।
– मूल विधेयक के प्रभाव क्षेत्र से पेट्रोलियम उत्पादों और शराब को बाहर रखा गया था, जबकि संशोधित विधेयक में पेट्रोलियम उत्पादों और शराब के साथ साथ तंबाकू को भी प्रभाव क्षेत्र से बाहर रखा गया है।
– संशोधित विधेयक में पांच साल तक एक फीसदी अतिरिक्त कर लगाने का प्रावधान है। इसका उपयोग उस राज्य को अतिरिक्त मुआवजा देने के लिए होगा, जहां किसी वस्तु का उत्मादन होत है। मूल विधयक में इसकी व्यवस्था नहीं थी।
– मूल विधेयक में वित्त मंत्री की अध्यक्षता में गठित होने वाले जीएसटी परिषद की गणपूर्ति के लिए एक-तिहाई अनुपात रखा गया था। इस अनुपात को संशोधित विधेयक में बढ़ाकर सदस्यों का आधा कर दिया गया है।
परिषद की बैठक में मतदान के विषय में संशोधित विधेयक में कहा गया है कि एक -चौथाई सदस्यों के समर्थन से भी फैसले हो सकते हैं, जबकि मूल विधेयक में आम सहमति से फैसला लिए जाने की व्यवस्था थी।
– मूल विधेयक को संविधान के 115वें संशोधन के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, जबकि संशोधित विधेयक को संविधान के 122वें संशोधन के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
– मूल विधेयक में विवाद निपटारे के लिए सर्वोच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश या किसी अन्य न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित किए जाने का प्रावधान था। संशोधित विधेयक में इस प्रावधान को हटा दिया गया है और विवाद निपटारा का काम परिषद के हवाले कर दिया गया है। [एजेंसी]