विश्व की सबसे बड़ी सर्च इंजन कंपनी गूगल फ्रांस में चार साल पुराने टैक्स विवाद का निपटारा करने के लिए 7600 करोड़ रुपये (96.5 करोड़ यूरो) का भुगतान करने जा रही है। पिछले साल भी कंपनी पर 34 हजार करोड़ रुपये का जुर्माना लगा था। 2011 से 2014 के बीच टैक्स संबंधी धोखाधड़ी के मामले में कोर्ट में यह समझौता हुआ। पेरिस के कोर्ट ऑफ अपील ने गूगल को 50 करोड़ यूरो का भुगतान और 46.5 करोड़ यूरो अतिरिक्त चुकाने के आदेश दिए। 2015 में गूगल के खिलाफ जांच शुरू हुई थी।
गूगल पर फ्रांस में टैक्स चोरी करने का आरोप लगा था। उसने कारोबारी गतिविधियों की जानकारी न देते हुए कहा था कि उसका सारा बिजनेस आयरलैंड से चलता है। हालांकि पहले से समझौता होने के कारण कंपनी पर आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं होगा। कई अन्य कंपनियों के खिलाफ भी इसी तरह की सख्ती बरती जा सकती है। कुछ कंपनियों से बातचीत चल रही है।
फ्रांस ने गूगल और फेसबुक जैसी दिग्गज इंटरनेट कंपनियों पर नया टैक्स लगाने को मंजूरी दे दी है। इस इंटरनेट टैक्स को गाफा (गूगल, अमेजन, फेसबुक और एपल) नाम दिया गया है। हालांकि, अमेरिका ने इस पर कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए अपने नाटो सहयोगी फ्रांस से इस विचार को त्यागने का आग्रह किया था।
यूरोपीय संघ ने प्रतिस्पर्धा कानून के उल्लंघन को लेकर गूगल पर 1.49 अरब यूरो यानि करीब 117 अरब रुपये का जुर्माना लगाया है। गूगल पर यह जुर्माना ऑनलाइन विज्ञापन में पक्षपात को लेकर लगा है। बता दें कि इससे पहले भी पिछले साल जुलाई में यूरोपीय आयोग गूगल पर इसी बात को लेकर 344 अरब रुपये का जुर्माना लगाया था जो कि गूगल पर लगने वाला सबसे बड़ा जुर्माना था।
दरअसल गूगल पर हर बार यह आरोप लगता रहा है कि वह अपने मोबाइल डिवाइस रणनीति के तहत गूगल सर्च इंजन को गलत तरीके से प्रस्तुत करता है। साथ ही आपको याद दिलाते चलें कि साल 2017 के बाद अभी तक गूगल पर लगने वाला यह तीसरा बड़ा जुर्माना है। गौरतलब है कि यूरोप गूगल, अमेजन, एपल और फेसुबक जैसी कंपनियों पर कड़ाई से नजर रखता है और नियमों के उल्लंघन होने पर जांच करता है।
गूगल पर यह भी आरोप है कि वह तमाम एंड्रॉयड डिवाइस में मौजूद अपने सर्च इंजन और ब्राउजर का गलत इस्तेमाल करता है और किसी प्रोडक्ट के सर्च होने पर विज्ञापन के रूप में अपना ही प्रोडक्ट दिखाता है। बता दें कि गूगल सभी एंड्रॉयड फोन निर्माता कंपनियों को मुफ्त में अपना एंड्रॉयड सिस्टम देता है और बदले में मोबाइल कंपनियों को गूगल के क्रोम, ब्राउजर, यूट्यूब जैसे ऐप फोन में प्री-इंस्टॉल करके देने पड़ते हैं।
गौरतलब है कि गूगल के खिलाफ अप्रैल 2015 में फेयरसर्च’ नाम के एक बिजनेस ग्रुप ने यूरोपियन यूनियन में शिकायत की थी और कहा था कि गूगल अपने एप के जरिए एंड्रॉयड स्मार्टफोन में अधिकार जमा रहा है। बता दें कि इस ग्रुप में नोकिया, माइक्रोसॉफ्ट और ओरेकल जैसी कंपनियां भी शामिल हैं।