इलाहाबाद- उत्तर प्रदेश में लोकआयुक्त विवाद बढ़ता जा रहा है। राज्यपाल राम नाईक के सामने अखिलेश सरकार की ज़िद नहीं चल नहीं पा रही है। राज्यपाल ने आज चौथी बार लोकआयुक्त नियुक्ति की फाइल वापस भेज दी है। न्यायमूर्ति रविन्द्र सिंह को लोकआयुक्त के पद पर नियुक्त करने को लेकर अखिलेश सरकार की संस्तुति पर अपनी असहमति जताते हुए, राज्यपाल ने लोकआयुक्त की फाइल फिर एक बार वापस, शासन को भेज दी है।
राज्यपाल ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद उच्च न्यायालय, न्यायमूर्ति डाॅ0 डी0वाई0 चन्द्रचूड़ व नेता विपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्या को पत्र भेजते हुए अपेक्षा की है कि नये लोक आयुक्त की नियुक्ति हेतु उच्चतम न्यायालय के आदेश को ध्यान में रखते हुए न्यायमूर्ति रविन्द्र सिंह (अवकाश प्राप्त) के अतिरिक्त किसी अन्य उपयुक्त नाम पर विचार-विमर्श की प्रक्रिया पूरी करते हुए शीघ्रातिशीघ्र प्रस्ताव भेंजे।
श्री नाईक द्वारा राजभवन से वापस भेजी गई पत्रावली के साथ पत्र में कहा गया है कि, लोक आयुक्त चयन प्रक्रिया में विचार-विमर्श की वैधानिक आवश्यकता कानूनी तौर पर पूरी नहीं की गई है। नेता विपक्ष के अनुसार चयन समिति के तीनों सदस्यों ने एक साथ बैठकर या विचार-विमर्श से एक नाम पर न ही सहमति प्रदान की है और न ही सदस्यों को इस तथ्य की जानकारी है कि आपस में तीनों सदस्यों में क्या पत्राचार/विचार-विमर्श हुआ।
मुख्य न्यायाधीश इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति रविन्द्र सिंह के बारे में अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा है कि प्रदेश के सत्ताधारी दल की सरकार से नजदीकियों के कारण लोक आयुक्त का कार्य प्रभावित हो सकता है।
इसलिए न्यायमूर्ति रविन्द्र सिंह का नाम प्रस्तावित करना उपयुक्त नहीं होगा। लोक आयुक्त की नियुक्ति के संबंध में मंत्री परिषद की बैठक में लिये गये निर्णय को मानने के लिए राज्यपाल बाध्य नहीं हैं क्योंकि लोक आयुक्त चयन की अपनी एक निर्धारित प्रक्रिया है जिसमें मंत्रि परिषद की कोई भूमिका नहीं होती है।
रिपोर्ट :- शाश्वत तिवारी