भारतवर्ष को धर्म प्रधान तथा विभिन्न धार्मिक रीति रिवाजों का अनुसरण करने वाले देश के रूप में भी चिन्हित किया जाता है। यहाँ विभिन्न धर्मों के एक से बढ़कर एक भव्य एवं आकर्षक धर्मस्थान व उपासना स्थल हैं। भारत में अनेक दरगाहें,ख़ानक़ाहें,रौज़े,समाधि स्थल व मक़बरे भी हैं जहाँ अनेकानेक संतों,पीरों,फ़क़ीरों की क़ब्रें व समाधियां हैं। ऐसा ही एक समाधिस्थल राम दरबार, चंडीगढ़ में भी है जहाँ क़लन्दरी परंपरा का परचम बुलंद करने वाली मर्द-ए-क़लंदर माता राम बाई जी ‘अम्मी हुज़ूर’ शहनशाह तथा सख़ी सरवर ख़ादिम बाबा सख़ी चंद जी की समाधियां जलवा अफ़रोज़ हैं। मर्द-ए-क़लंदर माता राम बाई जी ‘अम्मी हुज़ूर’ शहनशाह का जन्म 1932 में हुआ था वे बचपन से ही उच्च कोटि के संतों फ़क़ीरों के सानिध्य में रहा करती थीं। माता राम बाई जी अम्मी हुज़ूर द्वारा ही 1966 में चंडीगढ़ में राम दरबार की स्थापना की गई। राम दरबार की स्थापना में संत रुकनुद्दीन शाह उर्फ़ कुंडे वाली सरकार ( जालंधर),व सूफ़ी संत मोहम्मद शाह जी, चकवाल, पाकिस्तान की भी प्रेरणा,सानिध्य व आशीर्वाद रहा।
अपनी स्थापना के प्रारंभ से ही महान सूफ़ी संतों के इस स्थान पर निरंतर पधारते रहने व उनकी तपस्थली होने की वजह से ही राम दरबार अपने अनुयाइयों व हर ख़ास-ो-आम की मन्नतें-मुरादें पूरी करने वाले धर्म स्थान के रूप में भी जाना जाने लगा। अम्मी हुज़ूर के व्यक्तित्व व उनके वैभव के चलते फ़िल्म जगत के बड़े से बड़े अभिनेताओं से लेकर अनेकानेक नेताओं व नौकरशाहों के यहां आने का सिलसिला हमेशा क़ायम रहता था। 1983 में माता राम बाई जी ‘अम्मी हुज़ूर’ शहनशाह के जन्नत नशीन होने के बाद उनके सहयोगी सख़ी सरवर ख़ादिम बाबा सख़ी चंद जी ने दरबार की परंपराओं को क़ायम रखने का प्रयास किया। परन्तु 1991 में सख़ी चंद जी के साकेतवासी हो जाने के बाद देखभाल व रखरखाव के अभाव के कारण इस स्थान की परंपराओं व रीति रिवाजों का सिलसिला बाधित हो गया।
इसकी सबसे मुख्य वजह यह थी कि पप्पू सरकार जिन्हें मर्द-ए-क़लंदर माता राम बाई जी ‘अम्मी हुज़ूर’ शहनशाह व सख़ी सरवर ख़ादिम बाबा सख़ी चंद जी द्वारा संयुक्त रूप से इस गद्दी का वारिस व गद्दी नशीन बनाया गया तथा यहाँ की परंपराओं व रीति रिवाजों की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी वे अपना गृहस्थ जीवन निभाने के लिए युवावस्था में ही अमेरिका जा बसे।अम्मी हुज़ूर व सख़ी चंद जी दोनों की इच्छा थी कि पप्पू सरकार अमेरिका जाने के बजाए यहीं रहकर दरबार की विरासत व ज़िम्मेदारियाँ संभालें। परन्तु एक होनहार व स्वाभिमानी शिष्य होने के नाते शहज़ादा पप्पू सरकार के दिल में हमेशा यही तमन्ना रहती थी कि वे दरबार पर आश्रित रहकर अपना व अपने परिवार का जीवन बसर करने के बजाए अपने पीर-ो-मुर्शिद का आशीर्वाद लेकर स्वयं आत्म निर्भर बनें और अपने व अपने परिवार के जीविकोपार्जन की व्यवस्था स्वयं करें। और आख़िरकार किसी तरह पप्पू सरकार जिन्हें ‘अम्मी हुज़ूर’ शहनशाह प्यार से शहज़ादा कहकर पुकारती थीं अम्मी हुज़ूर व सख़ी चंद जी को इस बात के लिए राज़ी कर पाने में कामयाब हुए कि उन्हें आत्मनिर्भर बनने का अवसर दिया जाए। और पहली बार स्वयं अम्मी हुज़ूर व सख़ी चंद जी ने ही अपने हाथों से भरपूर दुआओं के साथ राम दरबार से अपने शहज़ादे पप्पू सरकार को कुछ इस अंदाज़ से बिदा किया जैसे बारात के साथ दूल्हे को बिदा किया जाता है।
बहरहाल,शहज़ादा पप्पू सरकार ने अमेरिका जाने के बाद कड़ी मेहनत-मशक़्क़त कर तथा पूरी ज़िम्मेदारी व ईमानदारी के साथ अपने हर ज़िम्मेदारियों को अंजाम देते हुए स्वयं को अमेरिका में स्थापित कर लिया तथा विभिन्न व्यवसाय स्थापित किये। परन्तु उन्होंने हमेशा ही इस बात को शिद्दत से महसूस किया कि वे आज जिस बुलंदी पर भी हैं उसकी ख़ास वजह उनके पीर-ो-मुर्शिद अम्मी हुज़ूर व बाबा सख़ी चंद जी का आशीर्वाद ही है। और आख़िरकार वह वक़्त भी आया जबकि रामदरबार की गद्दी के असली वारिस शहज़ादा पप्पू सरकार ने अपनी गद्दी का रुख़ किया। और साथ ही उन्होंने यह भी ठाना कि अपने गुरुओं की गद्दी,उनकी समाधि तथा इस पूरे दरबार परिसर का जीर्णोद्धार किया जाए और दरबार से जुड़ी सभी परंपराओं को पुनः पूरी शान-ो-शौकत के साथ शुरू किया जाए। चूँकि राम दरबार अपनी स्थापना के समय से ही सर्व धर्म समभाव का अनुसरण करने,अंध विश्वास का विरोध करने,लंगर वितरित करने,शिक्षा का प्रचार प्रसार करने, उदारवादी व प्रगतिशील विचारों को बढ़ावा देने,तथा धर्म जाति के भेद भाव के बिना परस्पर सहयोग की भावना को बढ़ावा देने वाले स्थान के रूप में प्रसिद्ध रहा है लिहाज़ा वही परंपराएं आज भी शहज़ादा पप्पू सरकार की निगरानी व उनके संरक्षण में बख़ूबी निभाई जा रही हैं। राम दरबार धर्म जाति व संप्रदाय की सीमाओं से ऊपर उठकर प्रेम,शांति,सद्भाव तथा परस्पर भाईचारा बनाए रखने का संदेश देता है ।
रामदरबार के गद्दीनशीन शहज़ादा पप्पू सरकार ने दरबार परिसर में अपने गुरुओं मर्द-ए-क़लंदर माता राम बाई जी ‘अम्मी हुज़ूर’ शहनशाह व सख़ी सरवर ख़ादिम बाबा सख़ी चंद जी की समाधि स्थल पर एक भव्य विशाल भवन का निर्माण लगभग 20 करोड़ रूपये की लागत से करवाया है। यह दरबार भवन अपनी डिज़ाइन व कला कृति के लिहाज़ से अनूठा भवन है। केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में वैसे तो अनेक धर्मस्थल व उपासना स्थल हैं परन्तु दिल्ली-चंडीगढ़ मुख्य मार्ग पर चंडीगढ़ में प्रवेश करते ही हल्लोमाजरा चौक से ही नज़र आने वाले इस विशाल भवन की गुंबद अपना अलग ही आकर्षण रखती है। यह विशाल भवन जो गत 10 वर्षों से निर्माणाधीन था गत 14से 20 जनवरी के दौरान प्रत्येक वर्ष दरबार में आयोजित होने वाले वार्षिक उर्स के दौरान भक्तजनों व आम जनता को लोकार्पित कर दिया गया। देश में शायद ही ऐसी कोई मिसाल हो जहाँ किसी शिष्य ने अपनी मेहनत की निजी कमाई से अपने गुरु स्थान के जीर्णोद्धार पर इतने पैसे ख़र्च किये हों और आगे भी करता जा रहा हो। इस स्थान के और भी कई भक्त ऐसे हैं जो अपने जीवन की सफलता का कारण अम्मी हुज़ूर के आशीर्वाद को ही मानते हैं। वे सभी दरबार के पुनर्निर्माण व इसकी शान-ो-शौकत को बनाए रखने के लिए न केवल फ़िक्रमंद रहते हैं बल्कि हर संभव सहयोग भी करते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि दरबार का नया भवन चंडीगढ़ की शान में भी इज़ाफ़ा करेगा।
:-निर्मल रानी