घर से बहार निकलते हमारा मन चाहता है सड़कों पर जाम न हो , सड़कें साफ़ सुथरी हों , लोग अपनी लाइन में चल रहे हो और सबसे अनोखी हवा , धुप और जरूरत परने पर पानी मिलती रहे. लेकिन क्या कभी हमने सोचा है की जिन सड़कों पर हम चलते है अगर उसी सड़क पर नागरिक दुकान लगा लें, सब्जियों की ठेलियां लग जाएँ , जूस, चाय और पान की दुकानें लग जाय या सड़कों का किनारा गप्पें मारने का अड्डा बन जाये तो क्या होगा हमारा और इन सड़कों पर चल रहे यात्रियों का, या कोई गाड़ी तेज़ रफ़्तार में आए , अधिकतम गति सीमा के अन्दर भी हो और किसी कारण बस बैलेंस ख़राब होजाए या अचानक ब्रेक लगानी पर जाए और गाड़ी का बैलेंस ख़राब हो जाय तो सड़क के किनारे बैठे या गप्पे मरते व्यक्ति का क्या होगा? एन सी आर बी ( नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्योरो ) के मुताबिक सन 2014- 2015 में केवल बिहार झारखण्ड में सड़क दुर्घटना में मरने वालो की संख्या 15927 ( बिहार – 10613 और झारखण्ड 5314) जो पिछले साल की तुलना में 1.3% अधिक है. जानकार बताते हैं की सड़क दुर्घटना की एक मुख्य वजह है सड़कों का अतिक्रमण. सड़कों के अतिक्रमण को समझाने के लिए मोबाइल वाणी के माध्यम से हमने बिहार -झारखण्ड के 200 से अधिक व्यक्ति जान्ने का प्रयास किया क्या सड़कों का अतिक्रमण निजी फायदे के लिए किया जाता है , क्या प्रशासन को इस बात की खबर नहीं होती , या प्रशासन के मिली भगत से सड़कों का अतिक्रमण किया जाता है ? जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना परता है .
मुझे यकीन है की आप में से अधिकतर लोगों का कभी न कभी पटना या रांची जाना हुआ होगा, जब भी पटना जाता हूँ रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते ही हनुमान मंदिर और दूसरी तरफ मस्जिद की गुम्बद दिखाई देती है . हनुमान मंदिर से आगे की ओर बढ़ते हैं तो हम पाते हैं की सड़क के दोनों किनारे अतिक्रमण का नज़ारा. ऑटो रिक्शा, जूस, फल, कपरे और ना जाने क्या क्या सभी दुकानें सड़कों पर सजी होती हैं आप कई बार तो यह सोचने पर मजबूर होजाएंगे की सडक है किस तरफ जहाँ से जाया जाए. स्टेशन से टेलीफोन दफ्टर तक की दूरी जो एक किलोमीटर भी नहीं आप को तय करने में 10 मिनट से भी जयादा लग जायेंगे. सड़कों का अतिक्रमण केवल बड़े शहरों में नहीं है, छोटे शहर हों या गली मोहल्ले या गाँव की सड़कें आप को अतिक्रमण का सामना हर जगह करना पड़ सकता है.
इसी क्रम में बिहार झारखण्ड के कुछ लोगों से बात की आइए जानते हैं क्या कहना है उनका : झारखण्ड के हजारीबाग जिले से असरार अंसारी बताते हैं की हजारीबाग के शहरी और ग्रामीण छेत्रों में सड़कों के अतिक्रमण का नज़ारा खूब देखा जा सकता, कई बार स्थानीय लोगों द्वारा सड़कों के अतिक्रमण के खिलाफ आबाज़ उठाई भी गयी लेकिन अतिक्रमणकारी चूँकि धनबल बल में स्थानीय जनता से बेहतर होते हैं इसलिए स्थानीय लोगों पर ही उलटे मुकदमा दर्ज कर फंसा दिया जाता है जिस कारन लोगों अतिक्रमण के खिलाफ आवाज़ उठाने से भी डरते है नतीजा तो आप कूद निकाल सकते है.
अनिश कुमार बिहार के मुंगेर जिले के बरियारपुर प्रखंड से बताते हैं की बरियार पुर रेलवे स्टेशन से चौक तक सड़कें जर्जर, कई बार प्रशासन को भी इस मुद्दे से अवगत कराया गया लेकिन इस ओर उनकी निगाह नहीं गयी, इनका यह भी कहना की इसी रोड पर सप्ताह में दो बार हाट लगता है, और यह हाट तो सड़कों पर ही लगता है जिससे आने जाने वाले लोगों को काफी परिशानी का सामना करना पड़ता है, यहाँ के ग्रामीणों के अथक प्रयास के बाद भी हाट को सड़कों पर न लगाकर किसी ऐसी जगह लगाने की मांग की गयी किन्तु प्रशासन द्वारा आज तक इस ओर धयान नहीं दिया गया .
समाज सेवी पंकज कुमार पश्चमी चंपारण बेतिया नैना टांड से बताते हैं सड़क अतिक्रमण इन दिनो आम बात हो गयी है। सूदूर देहाती क्षेत्र हो या फिर बाजार व शहर हर जगह सड़क पर अतिक्रमण का नजारा है। अतिक्रमणकारीयो की कुदृष्टि सड़क की भूमि पर टीकी है. बावजूद प्रशासन बेपरवाह है, प्रशासन की लापरवाही इतनी की शिकायत का भी कोई परवाह नही . इसका नमुना मैनाटाड प्रखण्ड के सगरौवा पंचायत है , जहाँ बलथर से नरकटियागंज जाने वाली सड़क अतिक्रमण की बली चढ़ गयी है , सगरौवा गाँव व चौक से पूरब रेलवे क्रासिंग तक सड़क अतिक्रमण के कारण पतली हो गयी है . इसके बावत सगरौवा के सामाजिक कार्यकर्ता सुरेन्द्र प्रसाद कुश्वाहा ने अनुमण्डल से जिला मुख्यालय तक अधिकारियों से शिकायत दर्ज कराया ,किन्तु कोई देखा तक नही, फिर इसकी शिकायत राज्य स्तर पर ऑनलाइन शिकायत किए एक माह से अधिक बीत गये ,लेकिन अभी तक हालात जस का तस है ,सुरेन्द्र प्रसाद ने कहा की यहाँ सड़क 50 फीट चौड़ी थी ,वहीं अब महज बारह फीट बची है दोनों तरफ से अतिक्रमण कर लिया गया है , जिसकी वजह से बराबर सड़क दुर्घटना होती रहती है.
झारखण्ड के बोकारो से एक साथी बताते हैं की हमारे राज्य की आबादी बढ़ी है , आबादी अगर नज़र में रखते हुए हमें अपने सड़कों की चौराई बढ़नी चाहिए ना की कम , देखा यह जारहा है सड़कों पर गाड़ियों की संख्या तो दिनों दिन बढती जारही है लेकिन सड़कों की चौराई कम हो रही है नतीजा सड़क दुर्घटनाएं . सरकार से अपील करते हैं की माननिये सुप्रीम कोर्ट ने सडक के अतिक्रमण के लिए जो अध्यादेश जारी किया था राज्य सरकार उस पर पहल करेगी.
19 अप्रैल 2016 को सुप्रीम कोर्ट के 2 जज जस्टिस अरुण मिश्र और गोपाल गोवडा की पीठ नी सभी राज्य सरकारों को फटकार लगते हुए कहा था की सभी राज्यों की सर्कार सड़कों के अतिक्रमण पर रोक लगाने के लिए क्या काम किया इस की रिपोर्ट अदालत में हलफनामा दर्ज करें की राज्य द्वारा क्या कदम उठाया गया है और अगर ऐसा वह नहीं करते तो अदालत खुद सभी राज्यों का समन जारी करेगा. उच्च न्यायालय ने राज्यों मैं सड़कों पर धार्मिक स्थान , मूर्ति , सड़क के किनारे फूट पाथ पर निजी व्यक्ति द्वारा किये गए कब्जे के विरुद्ध किसी प्रकार की उचित कार्य न करने के लिए लिए दिया गया था, जिसके बाद यह माना जारहा था की कोर्ट के इस फैसले से निगम और सरकार के दुसरे विभागों को मदद मेलेगी.
भारत जैसे विकासशील देश में 48,65,394 किलोमीटर सड़कें हैं जो यहाँ की अर्थव्यवस्था को बनाये रखने में मदद करती है, एक राज्य से दुसरे राज्य और राज्य के अन्दर भी राज्य मार्ग द्वारा सामानों व खुद नागरिकों को एक जगह से दूसरी जगह आवाजाही का मुख्य मार्ग राज्य मार्ग ही है . इसलिए तो भारत के बहुचर्चित विकास शील पत्रकार पी साई नाथ अपने किताब तीसरी फसल में लिखते हैं की किसी भी ग्राम या समुदाय का विकास तब तक संभव नहीं जब तक उस गाँव को सड़क या राज्य मार्ग से न जोड़ा जाये . अपने इसी कितिब मैं लिखते हैं की अगर किसी गाँव में पीने की पानी या सडक की जरूरत हो तो इन दोनों में पहले किसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए – इनके अनुसार सडक को , क्यों की समुदाय के लिए सड़क पहली प्राथमिकता है . गाँव और शर से जोड़ने के लिए , विकट परिस्थिति या आपातकाल में सड़क ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा किसी भी प्रकार शहर पहुंचा जा सकता है और जरूरत की चीजें मिल सकती है, अपनी उपज को बाजार तक पहुँचाने के लिए भी सड़क की जरूरत है. इसलिए सड़कों का अतिक्रमण एक चिंताजनक विषय है और इस पर नगर निगम, कोर्पोरेशन, हाएवे अथोरिटी इस मुद्दे को गंभीरता से लेनी चाहिए. सड़कों के अतिक्रमण उत्तर पूर्व के राज्यों में खासकर सर्दियों के दिनों में धुंध की वजह से सड़क दुर्घटना का मुख्या कारन माना जाता है इसे भी कम किया जासकता है,
(लेखक – सुल्तान अहमद- लेखक एमकाम मीडिया फीचर सर्विस से जुड़े हैं और वर्तमान में मोबाइल वाणी सामदायिक मीडिया के राष्ट्रीय प्रभारी है)