अहमदाबाद: गुजरात में वर्ष 2002 में हुए दंगों की जांच के लिए बने नानावती आयोग ने बुधवार को अपनी 2,500 पन्नों की रिपोर्ट दे दी। इस रिपोर्ट में आयोग ने लंबे समय से गोधरा दंगों को लेकर विपक्ष के निशाने पर रहे गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी गई है। नानावती आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय के कुछ धड़ों के बीच पनपी नफरत की गहरी जड़ों की वजह से गुजरात में दंगे हुए। आयोग ने मोदी पर दंगे भड़काने के आरोप को खारिज कर दिया और कहा कि ये आरोप मोदी की छवि को खराब करने के लिए लगाए गए थे।
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘गोधरा की घटना की वजह से बड़ी संख्या में हिंदू समुदाय का एक बड़ा वर्ग गुस्सा हो गया और उन्होंने मुस्लिमों तथा उनकी संपत्तियों पर हमला किया। इस बात के कोई साक्ष्य नहीं हैं कि इन दंगों को राज्य के किसी मंत्री या धार्मिक या राजनीतिक दल या संगठन ने प्रेरित किया या भड़काया या सहयोग दिया।’ आयोग ने अपनी रिपोर्ट का दूसरा हिस्सा सौंपा है। इसका पहला हिस्सा वर्ष 2008 में आया था।
इस रिपोर्ट में आयोग ने मोदी पर अपने विभिन्न फैसलों, जैसे जली हुई बोगियों का दौरा करने, रेलवे यार्ड में शव के पोस्टमॉर्टम की जांच करने, पुलिस जांच की दिशा बदलने आदि के जरिए सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के आरोप को खारिज कर दिया। आयोग ने कहा, ‘ये अनुमान सही नहीं हैं और इसे मुख्यमंत्री की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए लगाए गए।’ नानावती आयोग ने स्पष्ट किया कि लोगों की भावनाओं को भड़काने के लिए कारसेवकों के जली हुई लाशों को अहमदाबाद की सड़कों पर प्रदर्शित नहीं कराया गया था जैसा कि आरोप लगाया गया था।
नानावती-मेहता आयोग ने तीन पूर्व आईपीएस अधिकारियों के बयानों और साक्ष्यों को खारिज कर दिया और साथ ही उनके खिलाफ सख्त टिप्पणियां कीं। तीन वरिष्ठ पूर्व आईपीएस अधिकारी- संजीव भट्ट, आर बी श्रीकुमार और राहुल शर्मा- ने फरवरी-मार्च 2002 में हुए दंगों को लेकर बीजेपी सरकार को घेरा था। इन दंगों में कुल 1,025 लोग मारे गए थे जिनमें से ज्यादातर मुस्लिम थे। बड़े पैमाने पर हुए ये दंगे 27 फरवरी, 2002 को गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के दो डिब्बे जलाने के बाद भड़के थे जिसमें 59 लोग मारे गए थे। इनमें से ज्यादातर कारसेवक थे।
उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जीटी नानावती की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय समिति ने कहा कि राज्य खुफिया विभाग के तत्कालीन उपायुक्त संजीव भट्ट की सरकार और उच्च अधिकारियों के खिलाफ निजी रंजिश थी। गुजरात उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश अक्षय मेहता न्यायिक आयोग के अन्य सदस्य थे। आयोग ने कहा कि तत्कालीन एडीजीपी श्रीकुमार ने गुजरात सरकार की छवि धूमिल करने के लिए उसके खिलाफ झूठे आरोप लगाए क्योंकि वह एक असंतुष्ट अधिकारी थे।
अहमदाबाद नियंत्रण कक्ष में तैनात तत्कालीन पुलिस उपायुक्त शर्मा के संबंध में समिति ने पाया कि वह सच नहीं बता रहे थे और सीडी के रूप में उनके साक्ष्य को भरोसे लायक और सही नहीं माना जा सकता। इन सीडी में दंगों के शुरुआती दिनों के दौरान की कॉल डिटेल्स थीं। संजीव भट्ट ने दावा किया था कि वह 27 फरवरी, 2002 को मुख्यमंत्री कार्यालय में हुई एक बैठक में शामिल थे जहां उन्होंने मोदी को पुलिस एवं राज्य प्रशासन को बहुसंख्यक समुदाय के सदस्यों को अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ गुस्सा जाहिर करने की अनुमति देने और उनके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं करने का निर्देश देते हुए सुना था।
आयोग ने कहा कि बैठक में संजीव भट्ट को बुलाने की कोई वजह नहीं थी क्योंकि यह सरकार के शीर्ष स्तर के अधिकारियों की बैठक थी। भट्ट कोई उच्च रैंक वाले अधिकारी नहीं थे कि उन्हें उस बैठक में शामिल होने के लिए कहा जाता। आयोग ने कहा कि भट्ट द्वारा किया गया दावा कि वह बैठक में मौजूद थे, गलत लगता है। समिति ने ये सारी बातें अपनी रिपोर्ट में कहीं जो बुधवार को राज्य विधानसभा में पेश की गई थी।
इसके अलावा आयोग ने एक फैक्स संदेश को भी सही दस्तावेज मानने से इनकार कर दिया जिसके बारे में कहा गया कि भट्ट ने 27 फरवरी, 2002 को वह भेजा था ताकि वह अपना दावा साबित कर सकें कि वह बैठक में शामिल हुए थे। आयोग ने पाया कि भट्ट ने सरकार और उच्च अधिकारियों के खिलाफ निजी रंजिश की वजह से 27 फरवरी की बैठक के संबंध में अपने ही एक संस्करण के साथ सामने आए ताकि वह मुख्यमंत्री और सरकार की छवि धूमिल कर सकें। साथ ही आयोग ने श्रीकुमार के एक हलफनामे को भी खारिज कर दिया कि मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को मौखिक तौर पर कई अवैध निर्देश दिए थे।
रिपोर्ट के मुताबिक, दंगों के दौरान हुई हिंसा से जुड़े सबूतों पर विचार करने के बाद आयोग ने पाया कि पुलिस की अनुपस्थिति या उनकी अपर्याप्त संख्या की वजह से हिंसा पर उतारू भीड़ बेकाबू हो गई। आयोग ने कहा कि राज्य सरकार पुलिस बल की मजबूती को सुनिश्चित करने के लिए तुरंत खाली पड़े पदों को भरे। आयोग ने पुलिस व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने की सिफारिश की है। रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पुलिस थानों में पर्याप्त अधिकारियों और पुलिसकर्मियों की तैनाती हो और वे संचार, वाहन और हथियारों से पूरी तरह लैस हों।
आयोग ने कहा कि पुलिस अधिकारियों को बचाने का मोदी पर लगाया गया आरोप आधारहीन है। नानावती आयोग ने पाया कि वीएचपी और बजरंग दल के कुछ स्थानीय सदस्य हिंसा के लिए जिम्मेदार थे। आयोग ने कहा कि तीन से चार जिलों में कुछ बीजेपी कार्यकर्ताओं ने भी हिंसा में हिस्सा लिया। हालांकि आयोग ने शांति के लिए आगे आने के लिए बीजेपी कार्यकर्ताओं की प्रशंसा भी की। रिपोर्ट में कहा गया है कि एनएचआरसी द्वारा गुजरात सरकार की शुरू में की गई आलोचना अधूरी सूचना पर आधारित थी। आयोग ने कहा कि राज्य सरकार ने एनएचआरसी की सिफारिशों को लागू करने में कोई लापरवाही नहीं बरती।