अहमदाबाद : पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने बुधवार को कहा कि पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (पीएएएस) ने कांग्रेस द्वारा पाटीदार समुदाय को ओबीसी श्रेणी के तहत नौकरियों में आरक्षण देने के फार्मूले को औपचारिक तौर पर स्वीकार कर लिया है।
पटेल ने मीडिया से कहा, “कांग्रेस ने हमारे आरक्षण की मांग को एक फार्मूले के साथ स्वीकार कर लिया है। इसके तहत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व ओबीसी के मौजूदा 49 फीसदी आरक्षण में बगैर छेड़छाड़ के संवैधानिक तौर पर पटेल समुदाय को ओबीसी के समकक्ष फायदे दिए जाएंगे।” उन्होंने कहा, “हम आपको बता रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी ने जो हमे फार्मूला दिया है, उसे हम स्वीकार कर रहे हैं।
बुधवार को पत्रकारों से बातचीत में हार्दिक पटेल ने यह जरूर कहा कि 50 फीसदी की आरक्षण की सीमा को पार किया जा सकता है, लेकिन यह आसान नहीं होगा। हार्दिक के मुताबिक कांग्रेस ने भरोसा दिलाया है कि वह एक गैर-आरक्षित वर्गों को लाभ देने के लिए विधेयक लेकर आएगी। असल में हार्दिक और कांग्रेस की नजर 9वीं अनुसूची के तहत बिल लाने की है ताकि सुप्रीम कोर्ट इसमें दखल न दे सके, लेकिन 2007 में आए शीर्ष अदालत के एक फैसले से इसमें मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
11 जनवरी, 2007 को सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि 24 अप्रैल, 1973 के बाद संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किए गए किसी भी कानून की न्यायिक समीक्षा हो सकती है। ऐसे में यदि कांग्रेस सरकार ऐसा कोई विधेयक लाती भी है तो सुप्रीम कोर्ट की ओर से उसे खारिज किया जा सकता है। हरियाणा, आंध्र प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों की ओर से आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से अधिक किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।
सिर्फ तमिलनाडु में मिल रहा है 50 फीसदी से अधिक आरक्षण
सुप्रीम कोर्ट ने भले ही अविभाजित आंध्र प्रदेश के 4 फीसदी मुस्लिम आरक्षण समेत राजस्थान में गुर्जर और हरियाणा में जाट आरक्षण देने के फैसले पर रोक लगा दी हो, लेकिन तमिलनाडु इस मामले में अपवाद है। यहां आरक्षण की सीमा 69 फीसदी है। इसके तहत 30 फीसदी ओबीसी आरक्षण (26.5% गैर-मुस्लिम ओबीसी और 3.5% मुस्लिम ओबीसी) शामिल हैं। 20 फीसदी आरक्षण अति पिछड़ा वर्ग को है। 18 फीसदी आरक्षण अनुसूचित जातियों को मिल रहा है, जबकि एक फीसदी हिस्सेदारी जनजातियों की है। तमिलनाडु सरकार ने 9वीं अनुसूची के तहत 1993 में विधेयक पेश करके 69 फीसदी आरक्षण का रास्ता साफ किया था।
9वीं अनुसूची में भी दखल दे सकता है सुप्रीम कोर्ट
भले ही तमिलनाडु ने 9वीं अनुसूची के तहत 69 फीसदी आरक्षण दिया हो और संविधान के अनुच्छेद 31 (B) के तहत उसे वैधता मिली हो। लेकिन शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु के आरक्षण को लेकर केस की सुनवाई के दौरान कहा था कि अनुच्छेदों के कवच के जरिए किसी भी ऐक्ट की वैधता तय नहीं की जा सकती। इस मामले में शीर्ष अदालत का फैसला आना अभी बाकी है। संविधान की मूल भावना के विपरीत जाने वाले किसी भी ऐक्ट की समीक्षा की जा सकती है।
तेलंगाना के आरक्षण पर पेच, गुजरात में कैसे मिलेगा?
चंद्रशेखर राव की लीडरशिप वाली टीआरएस सरकार ने पिछले दिनों विधानसभा से मुस्लिमों को 12 फीसदी आरक्षण का विधेयक पारित कराया था। लेकिन, इसे भी सुप्रीम कोर्ट की ओर से खारिज किया जा सकता है। यही वजह है कि उन्होंने दिल्ली के जंतर-मंतर पर आकर आरक्षण की सीमा को बढ़ाए जाने की मांग के लिए आंदोलन का फैसला लिया है। इसी तरह यदि गुजरात की ओर से भविष्य में पटेलों को आरक्षण देने के लिए 50 फीसदी की सीमा को पार किया जाता है तो वह कैसे लागू हो पाएगा, इस पर संशय है।