मुंबई उच्च न्यायालय के फैसले से सारा देश स्तब्ध है। जो लोग सलमान खान के मुरीद हैं, वे तो खुश हैं लेकिन उनकी नज़र में भी भारत की न्याय-व्यवस्था की इज्जत दो कौड़ी भी नहीं रह गई है। यह ठीक है कि जनमत के आधार पर अदालत के फैसले नहीं किए जा सकते लेकिन इस फैसले का आधार तो यही मालूम पड़ता है।
इस फैसले ने तो खुद के गले में ही फांसी डाल ली है। फैसला लिखते समय न्यायाधीश का जो भी गणित रहा हो, यह निश्चित है कि भारत की न्यायपालिका के इतिहास में यह सर्वाधिक चर्चित कलंकों में माना जाएगा। इस तरह के कई फैसले पहले भी हुए हैं लेकिन उन मुकदमों में ढील के कई मुकाम थे, संदेह की कई गुंजाइशें थीं लेकिन इस मुकदमे में कौनसा संदेह था?
जिस कार से फुटपाथ पर सोता हुआ नुरुल्ला मारा गया और चार अन्य लोग घायल हो गए, क्या वह कार शराबखाने से खुद चलकर उस फुटपाथ तक पहुंची थी? क्या मुंबई की कारें बिना ड्राइवर के ही चलती हैं? क्या भारत में ‘ड्राइवरलेस कारें’ बनने लगी हैं?
पांच लोग हताहत हुए और कार से हुए तो उसे कोई न कोई तो चला ही रहा होगा? सलमान न सही, उसका ड्राइवर अशोक भी नहीं तो क्या यह मान लें कि वह कार आसमान से उड़कर आई और उन मजदूरों पर गिर पड़ी? यह तो ऐसा ही है, जैसा बोफोर्स के मामले में हुआ। रिश्वत पकड़ी गई, देनेवाले का पता चल गया लेकिन अदालत ने लेनेवाले को गायब कर दिया। आज इस बात पर फिर से धूल पड़ गई है कि कानून सबके लिए समान है। यदि ऐसा है तो सोनिया गांधी, राहुल और आसाराम को क्यों फंसाया जा रहा है? एक फिल्मी हीरो से तो ये लोग काफी बड़े हैं।
सलमान के बच निकलने से उसके पिता सलीम खान सबसे ज्यादा खुश होंगे। वे खुद बेहद सज्जन और संजीदा इंसान हैं। सलमान के बारे में भी कई अच्छी बातें उसके मित्र मुझे बताते रहते हैं। इस फैसले से जितना नुकसान उस जज का हो रहा है, उससे ज्यादा सलमान का होगा। यदि सलमान दुर्घटना के समय ही मर्दानगी का परिचय देते, घायलों को अस्पताल ले जाते और उनकी सेवा करते तो शायद उन पर मुकदमा ही नहीं चलता।
मान लिया कि नशे में होश नहीं रहा लेकिन यदि बाद में वे अपना जुर्म कुबूल कर लेते, हताहतों की उदारतापूर्वक सहायता करते और अदालत से दया की याचना करते तो उनकी 5 साल की सजा शायद नाम मात्र की रह जाती। वे ‘दुश्मन’ फिल्म के ड्राइवर राजेश खन्ना से कुछ सबक लेते तो वे अभी सिर्फ फिल्मों के हीरो हैं, तब वे देश के हीरो बन जाते। वे सारे संसार में प्रायश्चित के अनुपम उदाहरण बन जाते। उनके पिता सलीम खान ही नहीं, सलमान के आलोचक भी उन पर गर्व करते।
लेखक :- डॉ. वेदप्रताप वैदिक