लगातार मीट के बढ़ते उपभोग की वजह से अब दुनिया के कुछ महत्वपूर्ण इलाके तबाही की ओर बढ़ रहे हैं। एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि पशुओं को चारा मुहैया करवाने के लिए बहुत ज्यादा जमीन की जरूरत पड़ने की वजह से अब हिमालय और कॉन्गो जैसे क्षेत्र बर्बाद हो रहे हैं।
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के मुताबिक, पश्चिमी देशों के भोजन में मांस और डेयरी उत्पाद ज्यादा होते हैं। इतनी बड़ी संख्या में मांस और दुग्ध उत्पाद उपलब्ध कराने के लिए यूरोपियन यूनियन के आकार से भी डेढ़ गुना बड़े इलाके को चारागाह बनाने की जरूरत है। वह भी तब जब पशु उत्पादों के वैश्विक उपभोग को सिर्फ पोषण संबंधी जरूरतों तक सीमित कर दिया जाए।
‘ऐपिटाइट फॉर डिस्ट्रक्शन’ नाम की नई रिपोर्ट के मुताबिक पशु उत्पादों के उपभोग के बढ़ने से अब बड़ी मात्रा में भूमि का इस्तेमाल फसल के लिए किया जा रहा है। इससे ऐमजॉन, कॉन्गो बेसिन और हिमालय जैसे इलाको को भी खतरा बढ़ गया है, जहां जल और अन्य संसाधन पहले से ही बहुत ज्यादा दबाव झेल रहे हैं।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की रिपोर्ट के मुताबिक, पशु उत्पादों का बहुत ज्यादा उपभोग धरती पर जैव विविधता में 60 प्रतिशत गिरावट का जिम्मेदार है।
इतना ही नहीं यूके की इंडस्ट्री अकेले 33 प्रजातियों की विलुप्ति के लिए जिम्मेदार है।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के फूड पॉलिसी मैनेजर डंकन विलियमसन ने एक बयान में कहा, ‘दुनिया भर में लोग जरूरत से ज्याद पशुओं से मिलने वाला प्रोटीन ले रहे हैं और इसका वन्यजीवन पर विनाशकारी असर पड़ रहा है।’
विलियमसन ने बताया, ‘हमें पता है कि बहुत से लोग इस बारे में जागरूक हैं कि मांस आधारित भोजन का जल और भूमि पर असर पड़ता है और यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की वजह भी बनता है लेकिन कुछ ही लोगों को इन पशुओं को चारा मुहैया करवाने के लिए फसल उगाने की जमीन की जरूरत की वजह से पड़ने वाले बड़े प्रभावों के बार में पता है।
‘ रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2010 तक सोया का उत्पादन इतनी बड़ी मात्रा में होता था कि ब्रिटिश लाइवस्टॉक (पशु) इंडस्ट्री को यॉर्कशर शहर जितने बड़े क्षेत्र में पशुओं को खिलाने के लिए सोया उत्पादन करने की जरूरत थी। मीट के उपभोग बढ़ने की वजह से सोया का उत्पादन भी साल 2050 तक 80 फीसदी बढ़ने की उम्मीद है।