नैनीताल : उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अंतत: एक याचिका पर बलि के बकरों को नैना देवी मंदिर में ले जाने की अनुमति दे दी, लेकिन मंदिर के अंदर बकरे की बलि पर प्रतिबंध जारी रखा। यह जानकारी शुक्रवार को एक अधिकारी ने दी।
मौजूदा समय में नैनीताल में 113वां नैना देवी मेला चल रहा है। उच्च न्यायालय के पहले के फैसले के खिलाफ एक जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल की गई थी। न्यायालय ने अपने पूर्व के एक फैसले में मंदिर परिसर के अंदर बकरे की बलि पर प्रतिबंध लगा दिया था।
न्यायमूर्ति वी.के. बिस्ट और न्यायमूर्ति यू.सी. ध्यानी की खंडपीठ ने गुरुवार को इस जनहित याचिका का निपटारा किया और अपने आदेश में कहा कि बलि के बकरे को ‘पूजा’ के लिए मंदिर परिसर में ले जाने की अनुमति है, लेकिन वहां बलि नहीं दी जाएगी।
मंदिर के अधिकारियों और याचिकाकर्ता ने वचन दिया कि उच्च न्यायालय के निर्देश का अक्षरश: पालन किया जाएगा।
एक अधिकारी ने आईएएनएस से कहा, “हम यह सुनिश्चित करेंगे कि निर्देश लागू किया जाए, इसके लिए सिर्फ एक प्रवेश द्वार होगा और बलि वाले जानवर का मंदिर में प्रवेश टोकन प्रणाली से होगा। प्रवेश करने वाले भक्तों की सीसीटीवी से निगरानी की जाएगी।
नैनीताल में, नैनी झील के उत्त्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है। आपको बता दें कि नैनी देवी मंदिर का शुमार प्रमुख शक्ति पीठों के रूप में भी होता है। ज्ञात हो कि 1880 में भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था। बाद में इसे दुबारा बनाया गया। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
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