शहर में हो रही वर्तमान पत्रकारिता पर मुझे 10 वर्ष पूर्व एक किन्नर को दिया मशवरा याद आ रहा है। नकली और असली को लेकर शहर में किन्नरों के बीच रोज विवाद होते थे। गुरु हाजी मीना, किन्नर, रेखा, पूनम वगैरह नकली किन्नरों से आए दिन परेशान होते थे। चूंकि मामला उनकी साख और वसूली से जुड़ा था। नकली का भड़कीला लिबास हाथ में मोबाइल और ऊँची कर्कश ध्वनि देख- सुन उन्हें आसानी से नेक मिल जाया करता था। शहर में वर्षों से रह रहा असली किन्नरों का एक धड़ा नकली परेशान था। नकली किन्नर भी अपनी कबिलियत के दम पर पीछे हटने को तैयार नहीं थे। ये मामला मुझ तक आया मैंने वास्तविक के हक़ में ख़बरे भी प्रकाशित की। फलस्वरूप नकलियों ने खबर प्रसारित होने पर ऑफिस में आके नंगाई दिखाकर आक्रोश व्यक्त किया।
कभी असली कभी नकली का आवगमन कार्यालय में जारी रहता। दोनों टीम लीडर से हमने कहा अब किसी भी पक्ष की ख़बर हम नहीं छापेंगे। इस बात से असली किन्नर नाराज हो गए। नकलियों को बढ़ावा मिल गया। अब वे उग्र और उत्साहित होकर रेलवे के अलावा सराफा बाजार, बुधवारा और पॉश कॉलोनियों में जमकर वसूली करने लगे। अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे किन्नर गुरु ने एक दिन मुझसे मुलाक़ात की और अपना व साथियों का दुखड़ा सुनाया। अंततः मैंने उन्हें एक ही मशवरा दिया जिसे गुरु के साथ ही चेलों ने भी अमल में लाकर दिखा दिया कि हम ही असली किन्नर है। उन्होंने बड़ी “मर्दानगी” के साथ बीच बाजार नकली किन्नरों की जमकर धुनाई की और उन्हें नंगा करके उनका नकली चेहरा सरे बाजार बेनकाब कर दिया। आशय यह है कि मेरे उपरोक्त मशवरे के बाद काफी दिनों तक अपनी बेइज्जती देख नकली किन्नर शहर से पलायन कर गए।
इसी तरह आज कुछ परजीवी पत्रकार ! भी आकर्षक जैकेट, चश्मा, पेन, डायरी और एंड्रॉयड मोबाइल रखकर वास्तविक पत्रकारों को चुनौती देने का अकल्पनीय दुस्साहस कर रहे हैं। सम्मानीय साथियों आज फिर उपरोक्त प्रसंग की पुर्नावृति होने की जरुरत है। ताकि पत्रकारिता की सुचिता पर अतिक्रमण न हो और पत्रकार शब्द एक वचन से हटकर बहुवचन के रूप में न सिर्फ स्थापित हो बल्कि एक सम्पूर्ण संस्था के रूप में जाना जाए। असली नकली को एक्सपोज कर इनके प्रहार और प्रयास को सार्वजनिक किया जाये। ऐसे उज्जवल स्वस्थ मिशन के लिए हम सब प्रतिबद्ध हों।
यह लेख Sadaqat Pathan की फेसबूक वॉल से लिया गया है
लेखक एक दैनिक समाचार पत्र में क्राइम रिपोर्टर है।