गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और पाटीदार अनामत आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल के बीच फिलहाल सहमति तो बन गई है, लेकिन इस आंदोलन की सबसे प्रमुख मांग पाटीदार आरक्षण को लेकर अभी कांग्रेस ने अपना रुख साफ नहीं किया है और यही मसला कांग्रेस और हार्दिक दोनों के लिए मुश्किल का सबब बन सकता है। तमाम संवैधानिक और अन्य मजबूरियों की वजह से राज्य में पटेलों को आरक्षण देना इतना आसान नहीं है और सबकी नजर इस बात पर है कि आखिर कांग्रेस इस मुख्य मसले पर क्या रुख अपनाती है और कांग्रेस के रुख के बाद हार्दिक पटेल क्या कदम उठाते हैं?
रैली का न समर्थन न विरोध
आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस के रुख को लेकर अल्टीमेटम देने के बाद हार्दिक पटेल अब नरम पड़ गए हैं। हार्दिक पटेल ने कहा है कि 3 नवंबर को सूरत में होने वाली कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की जनसभा का वह न ही समर्थन करेंगे, न ही विरोध।
हार्दिक पटेल ने कहा कि कांग्रेस ने इस मसले पर जो कानूनी राय का इंतजार करने की बात कही है, वह भी उसका इंतजार करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि पाटीदार 7 नवंबर तक आरक्षण पर कांग्रेस के प्लान का इंतजार करेंगे। हार्दिक ने ये भी कहा कि राहुल गांधी खुद इस मामले में बात करना चाहते हैं तो हम जाकर बात करेंगे।
5 में से 4 मुद्दों पर बनी है बात
दरअसल, हार्दिक पटेल ने चेतावनी दी थी कि अगर कांग्रेस ने पाटीदार समाज के आरक्षण पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया तो उसका विरोध किया जाएगा। जिसके बाद सोमवार को पाटीदारों के साथ कांग्रेस नेताओं ने मीटिंग की। मीटिंग के बाद हार्दिक ने बताया कि पटेल समाज के पांच में से 4 मुद्दों पर कांग्रेस से सहमति बन गई है। इसमें पहला पहला मुद्दा यह है कि आरक्षण आंदोलन में हिंसा के बाद पाटीदार समाज के लोगों के खिलाफ दर्ज केस वापस होंगे।
कांग्रेस ने वादा किया है कि आरक्षण आंदोलन के दौरान दर्ज 590 में 290 से वापस लिए जाएंगे। साथ ही राजद्रोह के केस भी वापस होंगे। इसी प्रकार कांग्रेस ने वादा किया है कि सरकार बनने पर पाटीदार हिंसा पीड़ित परिवारों को 35 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी जाएगी। साथ ही परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी भी दी जाएगी।
पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान गोलीबारी और लाठीचार्ज करने वालों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन भी कांग्रेस ने दिया है। कांग्रेस ने कहा है कि सरकार बने पर इस संबंध में जांच समिति बनाई जाएगी और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी। कांग्रेस ने सरकार बनने पर 600 करोड़ रुपये के आयोग को 2 हजार करोड़ तक ले जाने का वादा किया है। इस आयोग को संवैधानिक आधार पर लागू किया जाएगा, जिसे केंद्रीय दर्जा दिया जाएगा।
आसान नहीं पटेलों को आरक्षण
पटेलों की मुख्य मांग आरक्षण को लेकर कांग्रेस ने सोमवार की मीटिंग में कोई वादा नहीं किया है। कांग्रेस ने आरक्षण के मुद्दे को टेक्निकल बताते हुए इस पर कानूनी राय लेने की बात कही है। कांग्रेस ने वकीलों और जजों से इस संबंध में चर्चा कर जल्द की पार्टी का रुख स्पष्ट करने का आश्वासन पाटीदारों को दिया है। यही ऐसा मसला है जिस पर हार्दिक और कांग्रेस के लिए कोई रास्ता निकालना सबसे मुश्किल काम है।
गौरतलब है कि संविधान के मुताबिक 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता। अगर किसी जाति को ओबीसी श्रेणी में शामिल किया जाना है, तो उस जाति की ओर से ओबीसी आयोग में एक आवेदन देना चाहिए। अनुशंसा के बाद ही किसी जाति को उस श्रेणी में जगह मिल सकती है। इसलिए पाटीदारों को आरक्षण ओबीसी को मिलने वाले कोटा के भीतर ही दिया जा सकता है। लेकिन इसको लेकर दूसरे समुदायों में विरोध शरू हो जाएगा।
हाल में ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। अल्पेश वही नेता हैं, जो पटेलों को आरक्षण देने का विरोध करते रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस प्रमुख भरत सिंह सोलंकी कहते हैं कि वे लोग अनारक्षित कोटे से 20 प्रतिशत आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों को आरक्षण के तौर पर देंगे। इसके कारण ओबीसी, एससी, एसटी को दिए जाने वाले 49 प्रतिशत का कोटा भी नहीं बदलेगा और दूसरी ओर आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों को आरक्षण का लाभ भी मिलेगा। उनका कहना है कि वे ओबीसी कोटे से पटेलों को आरक्षण नहीं देंगे। लेकिन यह भी आसान नहीं है। इसके पहले भाजपा सरकार ने पाटीदारों के दबाव के बाद ईबीसी के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की थी, लेकिन गुजरात हाईकोर्ट ने पिछले अगस्त में इसके ऊपर रोक लगा दिया।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। केवल संविधान में संशोधन करके ही उच्च जाति के लोगों को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जा सकता है। संविधान विशेषज्ञ कहते हैं कि पटेलों को ओबीसी कोटा का फायदा देना किसी भी पार्टी के लिए बहुत मुश्किल है। आर्थिक आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान संविधान में नहीं है। पाटीदारों को आरक्षण देने का केवल एक ही रास्ता है कि उन्हें राज्य सरकार ओबीसी की सूची में डाल दे।
पाटीदारों के आंदोलन के समय गुजरात सरकार ने भी कहा था, ‘संविधान और उच्चतम न्यायालय के फैसलों के अनुसार हम अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के लिए आरक्षण के ढांचे में कोई बदलाव नहीं कर सकते, न ही हम 50 फीसदी से अधिक आरक्षण दे सकते हैं। विभिन्न समयावधि पर विभिन्न राज्य सरकारों ने संविधान और उच्चतम न्यायालय के फैसलों के खिलाफ आरक्षण दिया है। हम वैसा नहीं करना चाहते हैं। राज्य सरकार झूठे वादे करने में विश्वास नहीं करती है।’ हालांकि पाटीदार समुदाय के आरक्षण की मांग के लिए राज्य की कैबिनेट ने एक आयोग बनाने को मंजूरी दे दी है।
कांग्रेस की दुविधा
पाटीदार समाज को ओबीसी कोटे में समायोजित करने के प्रयास से ओबीसी कोटे का बड़ा वोट बैंक कांग्रेस से छिटक सकता है। गुजरात में ओबीसी कोटा के मतदाताओं की संख्या तकरीबन 54 प्रतिशत है। ऐसे में सवाल ये है कि राहुल गांधी हार्दिक पटेल के समर्थन के लिए इतने बड़ा वोट बैंक छिटकने का रिस्क लेंगे? राहुल गांधी पाटीदार समाज के लिए अलग से कोटा देने का वादा भी नहीं कर सकते, क्योंकि यह संवैधानिक रूप से संभव नहीं है।
हार्दिक की मुश्किल
अगर राहुल गांधी ने पाटीदार समाज को आरक्षण दिलाने का वादा नहीं किया तो यह सबसे ज्यादा हार्दिक पटेल के लिए मुश्किल का सबब हो सकता है। हार्दिक पटेल के भाजपा को समर्थन देने के दूर-दूर तक आसार नहीं हैं। अब अगर हार्दिक चुनाव से दूरी बनाते हैं तो पाटीदार नेता के रूप में उनके वजूद पर भी सवालिया निशान लग जाएगा। हार्दिक के एजेंडे में फिर चुनाव के बाद जो भी सरकार आएगी, उस पर पाटीदार समाज के लिए आरक्षण का दबाव बनवाने की ही होगी।
आरक्षण की मांग क्यों?
पाटीदार समुदाय गुजरात में डॉमिनेंट है और उद्योग, कृषि और यहां तक की कई एजुकेशन सेक्टर में भी खड़े हुए हैं, वे समृद्ध हैं। ये वो लोग हैं, जिन्होंने नकदी फसलों से पैसा कमाया और उसे लघु, मझोले उद्योगों में डाला, लेकिन आरोप यह है कि मोदी के शासनकाल में केवल बड़े उद्योगों की ओर ध्यान दिया और ये सभी छोटे उद्योग बंद होते चले गए।
सरकार के आलोचकों के अनुसार तकरीबन 60 हजार उद्योग बंद हो गए और उसका असर पटेल समुदाय पर ज्यादा हुआ। तरह साउथ गुजरात में डायमंड इंडस्ट्री में गिरावट आई और उसका भी प्रभाव इन पर हुआ, यही वजह है कि ये लोग जो आरक्षण मांग रहे हैं। आरक्षण समर्थक कहते हैं कि पटेलों में एक ऐसा बड़ा वर्ग है जो मजदूरी कर रहा है, उनके पास शिक्षा नहीं है, नौकरियां नहीं है, लिहाजा उनकी यह मांग जायज है।