ब्रिटेन में ग्रेजुएट सेंकेड ईयर की छात्रा एलिस इरविंग में नहीं थीं कि अपनी सहमति ज़ाहिर कर पाएं, लेकिन पुलिस और यूनिवर्सिटी ने बलात्कार की उनकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया।
उनका कहना है कि हालांकि बाद में पुलिस ने बाद में मामले की जांच ना कर पाने के लिए माफ़ी मांगी। एलिस इरविंग अब एक विश्वविद्यालय में क़ानून की लेक्चरर हैं और बलात्कार पीड़ितों के बेहतर इलाज के लिए अभियान चला रही हैं।
पांच साल पहले की उस रात के बारे में बताते हुए उन्होने कहा कि उन्होंने ज़रूरत से ज़्यादा शराब पी ली थी। उनके दोस्तों ने उन्हें उनके घर के पास छोड़ा था लेकिन वो अपना घर नहीं ढूंढ़ पा रही थीं। उनका कहना है कि उस अनजान आदमी ने बताया कि जब वो मिलीं थी तो भटक गईं थीं और ठंड से ठिठुर रही थीं। वो उन्हें अपने घर ले गया और उनके साथ यौन संबंध बना लिया।
एलिस का कहना है कि उन्हें सिर्फ धुंधली सी याद है कि वो इस स्थिति में नहीं थीं कि अपनी सहमति दे सकें। लेकिन उनसे जिस पुलिस अधिकारी ने बात की थी उन्होंने इसे ”पछतावे के साथ सेक्स” बताया और विश्वविद्यालय के काउंसलर ने इस बात पर ध्यान केन्द्रित किया कि उन्होंने कितनी शराब पी थी।
कई साल बाद उन्होंने शिकायत दर्ज कराने की हिम्मत जुटाई और पुलिस से दोबारा जांच के लिए केस खोलने को कहा। वो कहती हैं, ” मुझे पहली बार जिस तरह की प्रकिक्रियाएं मिली थीं वो बहुत नकारात्मक और तकलीफ़देह थीं। ”
”मेरी एक दोस्त थी जो लगातार मुझे याद दिलाती रही कि ये ठीक नहीं था, और मुझे सच के साथ चलना चाहिए ना कि इस बात से सहमत होकर कहना चाहिए कि ‘हां तुम सही हो मेरी ही ग़लती थी, मैं बेवकूफ़ हूं। ‘ अब ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी के लिए बने नए दिशानिर्देशों में यौन हिंसा और उत्पीड़न के मामले को बर्दाश्त ना करने पर ज़ोर दिया गया है।
यूनिवर्सिटीज़ यूके टास्कफोर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सभी विश्वविद्यालयों को कहा गया है कि वो छात्रों से किस तरह के व्यवहार की उम्मीद रखते हैं इसे लेकर स्पष्टता रखें। हाल के दिनों में मीडिया में रिपोर्ट आई हैं कि ब्रिटिश विश्वविद्यालयों की ‘युवा संस्कृति’ में यौन हिंसा और उत्पीड़न आम बात है।
विश्वविद्यालय के परिसर में युवा महिलाओं के साथ होने वाले यौन शोषण या उत्पी़ड़न के कोई आधिकारिक आंकड़ें नहीं हैं। लेकिन मोटे तौर पर ये ज़ाहिर हुआ है कि कि इस उम्र की महिलाओं के साथ यौन आपराध के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है।
यौन हिंसा को लेकर अभी तक ब्रिटेन में ‘ज़ेलिक’ के नाम से 1994 में बने दिशानिर्देश लागू होते हैं, जिसके अनुसार कोई भी विश्वविद्यालय तब तक अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं कर सकता जब तक पीड़िता पुलिस में मामला दर्ज नहीं करा देती।
यूनिवर्सिटीज़ यूके टास्कफोर्स का कहना है कि ये विश्वविद्यालय का कर्त्तव्य है कि वो समानता अधिनियम 2010 के अंतरगत अपने छात्रों की सुरक्षा करे।
ब्रिटिश यूनिवर्सिटीज के मुख्य कार्यकारी अधिकारी निकोला डांड्रिज कहती हैं कि यूनिवर्सिटी प्रशासन के सामने ये बात हमेशा स्पष्ट रही हैं कि शैक्षणिक कैंपसों में यौन हिंसा, यौन उत्पीड़न या फिर घृणित अपराध की कोई जगह नहीं है। [एजेंसी]