आजकल टीपू सुल्तान का नाम विवादों में घिरा हुआ है। कोई उन्हें सांप्रदायिक कह रहा है तो कोई विकास पुरुष। टीपू विवाद में अलग- अलग तरह के तथ्य दिए जा रहे हैं लेकिन इन सबके बीच एक बात तो तय है कि इतिहास के पन्नों से टीपू का नाम मिटाना असंभव है। टीपू के सांप्रदायिक होने या न होने पर छिड़ी बहस एक बड़ा रूप ले चुकी है लेकिन टीपू के द्वारा किए गए सकारात्मक कामों पर बहस की कोई गुंजाइश नहीं है। आइए धर्म का चश्मा हटाकर इतिहास के चश्मे से जानने की कोशिश करते हैं, टीपू से जुड़ी कुछ खास बातें…
टीपू के सांप्रदायिक होने या न होने पर बहस छिड़ी है लेकिन उसके एक कारनामे को लेकर बहस की कोई गुंजाइश नहीं है लंदन के मशहूर साइंस म्यूज़ियम में मैंने टीपू के कुछ रॉकेट देखे. ये उन रॉकेट में से थे जिन्हें अंग्रेज़ अपने साथ 18वीं सदी के अंत में ले गए थे ।
ये दिवाली वाले रॉकेट से थोड़े ही लंबे होते थे. टीपू के ये रॉकेट इस मायने में क्रांतिकारी कहे जा सकते हैं कि इन्होंने भविष्य में रॉकेट बनाने की नींव रखी ।
भारत के मिसाइल कार्यक्रम के जनक एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी किताब ‘विंग्स ऑफ़ फ़ायर’ में लिखा है कि उन्होंने नासा के एक सेंटर में टीपू की सेना की रॉकेट वाली पेंटिग देखी थी ।
कलाम लिखते हैं, “मुझे ये लगा कि धरती के दूसरे सिरे पर युद्ध में सबसे पहले इस्तेमाल हुए रॉकेट और उनका इस्तेमाल करने वाले सुल्तान की दूरदृष्टि का जश्न मनाया जा रहा था. वहीं हमारे देश में लोग ये बात या तो जानते नहीं या उसको तवज्जो नहीं देते।
1. टीपू सुल्तान का पूरा नाम ‘सुल्तान फतेह अली खान शाहाब’ था। ये नाम उनके पिता ने रखा था।
2. टीपू सुल्तान एक बादशाह बन कर पूरे देश पर राज करना चाहता था लेकिन उनकी ये इच्छा पूरी नही हुई।
4. टीपू ने 18 वर्ष की उम्र में अंग्रेजों के विरुद्ध पहला युद्ध जीता था।
5. टीपू सुल्तान को “शेर-ए-मैसूर” इसलिए कहा जाता हैं, क्योंकि उन्होनें 15 साल की उम्र से अपने पिता के साथ जंग में हिस्सा लेने की शुरूआत कर दी थी। पिता हैदर अली ने अपने बेटे टीपू को बहुत मजबूत बनाया और उसे हर तरह की शिक्षा दी।
6. मराठा सरदार रघुनाथ राव पटवर्द्धन द्वारा श्रृंगेरी मठ उजाड़ने के बाद टीपू ने वहां के शंकराचार्य को सुरक्षा प्रदान की थी और भगवती शारदा अम्मनवरु को सजाने के लिए स्वर्ण जड़ित साड़ी-ब्लाउज भेजा था। उसकी राजकीय सूझबूझ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह 156 मंदिरों को हर साल दान देता था।
7. ‘टाइगर ऑफ मैसूर’ कहे जाने वाले टीपू सुल्तान का प्रतीक चिन्ह बाघ था जो उनसे जुड़ी चीजों पर प्रमुख रूप से अंकित मिलता है। टीपू ने ‘आधुनिक कैलेण्डर’ की शुरुआत करने के साथ साथ सिक्का ढुलाई तथा नाप-तोप की नई प्रणाली का प्रयोग किया।
8. टीपू सुल्तान की तलवार पर रत्नजड़ित बाघ बना हुआ था। बताया जाता हैं कि टीपू की मौत के बाद ये तलवार उसके शव के पास पड़ी मिली थी। टीपू सुल्तान की तलवार का वजन 7 किलो 400 ग्राम है. आज के समय में टीपू की तलवार की कीमत 21 करोड़ रूपए हैं।
9. टीपू ने अपने पत्रों में इस बात का जिक्र किया है कि उसने धर्म परिवर्तन कराया लेकिन उसके इस काम से उसे पूर्ण रूप से हिंदू विरोधी करार देना गलत होगा। टीपू सुल्तान के राज्य में खजांची कृष्णा राव ,शामैय्या आयंगार, पूर्णैय्या के साथ साथ प्रधान पेशकार जैसे महत्वपूर्ण पद पर भी सुब्बा राव नामक एक हिंदू व्यक्ति ही था। इसके अलावा बादशाह शाह आलम द्वितीय के मुगल दरबार में मूलचंद और सुजन राय नामक हिंदू उसके मुख्य प्रतिनिधि थे।
10. टीपू सुल्तान दुनिया के पहले राॅकेट अविष्कारक थे। ये राॅकेट आज भी लंदन के एक म्यूजियम में रखे हुए हैं। अंग्रेज इन्हें अपने साथ ले गए थे।
11.टीपू की एक सोने की अंगूठी को मई 2014 में लंदन में नीलाम किया गया था। क्रिस्टीज़ नीलामीघर ने सोने की इस अंगूठी को एक लाख 45 हजार पाउंड में बेचा था। इस अंगूठी की सबसे खास बात यह थी कि इस पर ‘राम’ लिखा था।
माना जाता है कि उनकी मौत के बाद एक ब्रिटिश जनरल ने ये अंगूठी उनके शव से निकाल ली थी। क्रिस्टी की वेबसाइट के मुताबिक, 41 ग्राम की यह अंगूठी अनुमानित मूल्य से दस गुना ज्यादा कीमत पर सेंट्रल लंदन में नीलाम की गई। शर्तों के मुताबिक इसके खरीददार की पहचान उजागर नहीं की गई थी। नीलामी सूची में अंगूठी के बारे में लिखा था, ‘हैरानी की बात है कि एक महान मुस्लिम योद्धा राजा हिन्दू भगवान के नाम की अंगूठी पहनता था।’
12. सन् 1799 में अंग्रेजों के खिलाफ चौथे युद्ध में मैसूर की रक्षा करते हुए टीपू सुल्तान की मौत हो गई।
13. 12 बच्चों में से टीपू सुल्तान के सिर्फ़ दो बच्चों के बारे में पता चल पाया है, जबकि 10 बच्चों की जानकारी आज भी किसी के पास नहीं हैं।
14 . टीपू सुल्तान को दुनिया का पहला मिसाइल मैन माना जाता है. बीबीसी की एक खबर के मुताबिक, लंदन के मशहूर साइंस म्यूजियम में टीपू सुल्तान के रॉकेट रखे हुए हैं. इन रॉकेटों को 18वीं सदी के अंत में अंग्रेज अपने साथ लेते गए थे ।
15 . टीपू द्वारा कई युद्धों में हारने के बाद मराठों एवं निजाम ने अंग्रेजों से संधि कर ली थी. ऐसी स्थिति में टीपू ने भी अंग्रेजों से संधि का प्रस्ताव दिया. वैसे अंग्रेजों को भी टीपू की शक्ति का अहसास हो चुका था इसलिए छिपे मन से वे भी संधि चाहते थे. दोनों पक्षों में वार्ता मार्च, 1784 में हुई और इसी के फलस्वरूप ‘मंगलौर की संधि’ सम्पन्न हुई ।
16 ‘पालक्काड किला’, ‘टीपू का किला’ नाम से भी प्रसिद्ध है. यह पालक्काड टाउन के मध्य भाग में स्थित है. इसका निर्माण 1766 में किया गया था. यह किला भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण के अंतर्गत संरक्षित स्मारक है ।