कुमार विश्वास के साथ हुए अन्याय ने पार्टी के आदर्शो, सिद्धान्तों, आदर्शवादिता, नैतिकता की पोल खोल दी है। पांच साल से अपना सब कुछ न्योछावर करके पार्टी के लिए देश मे व्यवस्था परिवर्तन के लिए निकला कार्यकर्ता आज अपने आप को ठगा हुआ सा महसूस करता है।
क्या इस दिन के लिए ही उसने अपना सब कुछ त्याग कर दिया। आम आदमी पार्टी में हुए ये बदलाव बहुत पहले से ही शुरू हो चुके थे और अब आम आदमी पार्टी के नेतृत्व का झुकाव धनबल की तरफ और धन्ना सेठो की तरफ हो गया है। राजनीतिक क्रांति, पारदर्शिता, ईमानदारी, स्वराज ये सब आम आदमी पार्टी का इतिहास होकर कही दफन हो गया है।
कुमार विश्वास के साथ जो आज हुआ है वो बहुत पहले प्रह्लाद पांडेय, अशोक शर्मा, राज मोर्य, सुयोग झवर,अक्षय हुनका और हेमन्त जोशी जैसे सेकड़ो कार्यक्रताओं के साथ हो चुका है। जब आलोक अग्रवाल पीड़ित किसानों की आवाज़ उठाने के लिए किसानों से अन्न ले रहे थे। तब केंद्रीय नेतृत्व के संजय सिंह ने इंदौर में ही कहा था कि हम पीड़ितों के पेसो से ही पीड़ितों के लिए लड़ाई लड़ेंगे। तब ही से लग गया था कि आम आदमी पार्टी में अब पैसों का और पैसे वालो का ही बोल बाला हो चुका है।
रेहड़ी पटरी और ठेले वालो की लड़ाई लड़ने वाले हरीश जमाले, शिक्षा माफिया के विरुद्ध आवाज उठाने वाले सुनील खंडेलवाल, स्वास्थ सुविधाओ को लेकर सरकार को घेरने वाले डॉ राजेन्द्र विश्वे, स्मार्ट सिटी के नाम पर लोगो को परेशान करने के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने वाले जीतेन्द्र चौहान और अशोक शर्मा, पर्यावरण हितेषी संतीश शर्मा, पन्नी बीनने वाले और सपेरों के लिए लड़ाई लड़ने वाले राज मौर्य ,गैस एजेंसियों के सब्सिडी घोटालों को उजागर करने वाले चंचल गुप्ता,पिपल्या हाना तालाब को बचाने वाली रश्मि दुबे और ऐसे कई साथियो को वर्तमान नेतृत्व ने बाहर का रास्ता दिखाया या जनहितैषी मुद्दों पर काम करने का मना किया।
क्योकि अब जनहितैषी मुद्दों पर काम करने वाले लोगो की नही ,टिकिट खरीदने वाले पैसे वाले लोगो की जरूरत पार्टी को है। समय समय पर पार्टी के सिद्धांतों का पालन करने के लिए पार्टी के नेतृत्व को कहने वाले और उनकी नीतियों का विरोध करने वालो को पार्टी सत्ता का लालची और दूसरी पार्टियों का एजेंट बोलकर उन्हें एक तरफ या पार्टी से बाहर करते गए या तो उन्हें पार्टी के नेतृत्व ने मार दिया या शहीद कर दिया।
कल हुई घटना से पार्टी के ईमानदार जमीनी कार्यकर्ता बहुत निराश है और जल्द ही नई व्यवस्था के प्रति आशावान है। अगर सबकुछ इसी प्रकार चलता रहा तो मध्यप्रदेश में भी गुजरात के समान चुनाव परिणाम आएंगे।