भोपाल : जिस भारत भवन के निर्माण में एक मजदूर ने सिर पर ईंटे ढोई थीं, उसी भारत भवन की 39वीं वर्षगांठ समारोह में वह मुख्य अतिथि बनेंगी। वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर जब भूरी बाई भारत भवन पहुंचीं तो वहां की दीवारों को देखकर भावुक हो गईं। भारत भवन की गैलरी में घूमते हुए अचानक भूरी बाई एक फोटो के सामने रुक गईं। फोटो को देखकर वह भावुक हो उठीं। यह फोटो फरवरी 1982 की है। जब भारत भवन का शुभारंभ करने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आई थीं। फोटो में इंदिरा के साथ जे स्वामीनाथन और भूरी बाई नजर आ रही हैं। भूरी बाई के एक हाथ में एक पत्र है और दूसरे हाथ में उनका बेटा है। मजदूर से कलाकार बनीं आदिवासी कलाकार भूरी बाई को पद्मश्री से सम्मानित करने की घोषणा हुई है। भूरी बाई से दैनिक भास्कर ने उस खत की कहानी पर बातचीत की।
‘जब भारत भवन बनकर तैयार हो गया था। इंदिरा गांधी भारत भवन का उद्घाटन करने आई थीं तो स्वामीनाथन जी ने मुझे एक चिट्ठी देते हुए कहा था कि इसे इंदिरा जी को दे देना। मैं जब इंदिरा जी से मिली तो चिट्ठी देना भूल गई। उस वक्त इंदिरा जी ने मुझसे पूछा था कि भूरी तुमने अपने बेटे का क्या नाम रखा है। यह फोटो उसी समय का है, जिसे विजय रोहतगी सर ने खींचा था। मुझे भारत भवन की सब बात याद आ रही हैं जब मैंने भारत भवन में माल ढोया, ईंटे उठाईं। इस भारत भवन के हर कोने पर मेरा पसीना गिरा। इसी भारत भवन में मेरी पेंटिंग भी लगी हुई है। इस भारत भवन ने मेरे मजदूर से कलाकार बनने की यात्रा देखी है।
आज मैं भारत भवन के स्थापना दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बन रही हूं। मैं उस छत के नीचे खड़ी हूं, जिस छत के नीचे मेरे गुरु स्वामीनाथन ने अंगुली पकड़कर कला का रास्ता दिखाया था। वहीं कपिल तिवारी ने मुझे दूसरा जीवन दिया। मुझे कपिल सर के साथ पद्मश्री मिलेगा। मुझे लगता है आज भारत भवन में अतिथि बनना पद्मश्री या दुनिया के किसी भी पुरस्कार से बड़ा है, क्योंकि भारत भवन पहुंचकर मुझे वो सारी बातें आ गईं, जब मैं यहां ईंटे ढोती थीं। पेड़ के नीचे बैठकर रोटी खाती थी। एक दाढ़ी वाले बाबा मेरे गुरु स्वामीनाथन आए। उन्होंने मुझे मजदूर से कलाकार बना दिया। आज उन सब बातों को याद करके मेरी आंखों में पानी है। मैं स्वामी जी को बहुत ही याद कर रही हूं।’