मंडला – भारत वर्ष अपनी आजादी का 70 वां जश्न मना रहा है। आजादी के सात दशक पूरे होने पर पूरे देश में जश्न का माहौल है। जश्न के इस माहौल में लोग अपने उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान को याद कर रहे हैं जिनके कड़े संघर्ष त्याग और बलिदान की वजह से आज हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं।
देश को आजादी दिलाने में लाखों अनगिनत शहीदों ने कुर्बानियां दी हैं जिनमे से कुछ के नाम इतिहास में सुनहरे हरफों में दर्ज हैं लेकिन अनेक ऐसे लोग भी हैं जिनका इतिहास में जिक्र नहीं है। 1857 का संग्राम जिसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन माना जाता है तब से लेकर देश के आजाद होने तक आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले के लोगों का भी जंग ए आज़ादी में उल्लेखनीय योगदान रहा है।
शासकीय महिला महाविद्यालय मंडला में इतिहास के प्राध्यापक प्रोफ़ेसर शरद नारायण खरे बताते है कि गोंड राजाओं की राजधानी रहे गढ़ा मंडला का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अद्वितीय योगदान रहा है। वनांचल से भरे डेढ़ सौ वर्ष से पुराने इस आदिवासी बाहुल्य जिले ने स्वतंत्रता संग्राम को न सिर्फ नजदीक से देखा बल्कि भारत की आजादी के लिये अपने कई बेटे भी कुर्बान कर दिये। 1857 की क्रांति में मंडला के आदिवासियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था।
अपने क्षेत्र के लोगों में आजादी और राष्ट्रीयता की भावना को पैदा करने के लिये यहाँ के राजा शंकर शाह और उनके बेटे रघुनाथ शाह को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। अंतिम गोंड शासक शंकर शाह और रघुनाथ शाह को अंग्रेजी हुकूमत ने जबलपुर में तोप के मुंह से बाँधकर गोले से उड़ा दिया था। देश में किसी राजा की शहादत की ऐसी मिशाल शायद ही कहीं और देखने को मिले।
इनकी शहादत ने मंडला में जंग ए आजादी की ऐसी शम्मा रोशन की जो मुल्क की आज़ादी तक जारी रही। इनकी शहादत के बाद मंडला में स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर पहुँच गया। यह कोई अकेला वाक्या नहीं है जहाँ मंडला के लोगों ने आजादी के लिये अपनी जान न्यौछावर की हो। महात्मा गांधी के सभी आंदोलनों में मंडला वासियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाये गये भारत छोड़ो आंदोलन में स्कूली छात्र भी किसी से पीछे नहीं रहे।
मंडला जिले के अमर शहीद उदय चन्द्र जैन विरोध प्रदर्शन कर रहे थे और जब अंग्रेजों ने उन्हें आंदोलन से हटाने के लिये चेतावनी दी तो 14 साल का यह बालक उदय चंद्र अपनी कमीज की बटन खोलकर अंग्रेजी सैनिकों को ललकारने लगा। अंग्रेजी सेना ने बालक के सीने में गोली मारकर उसे शहीद कर दिया। महज 14 साल की उम्र में देश की आजादी के लिये अपनी जान कुर्बान कर उदय चन्द्र भारत के इतिहास में हमेशा लिये अमर गये।
यहाँ के नौजवानों ने भारत छोड़ो आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, जंगल सत्याग्रह, डांडी यात्रा सभी आंदोलनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। छुआछूत के विरुद्ध चलाये जा रहे आंदोलन के दौरान जब गांधी जी मंडला के ऐतिहासिक गांधी मैदान में सभा को सबोंधित करने पहुंचे तो डिंडोरी पैदल चलकर सैंकड़ों नौजवान इसमें शामिल शामिल हुये।
इतिहासकार बताते हैं कि नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने भी जंग ए आजादी दौरान मंडला का दौरा किया। मंडला के बड़ चौराहा में आज भी वह ऐतिहासिक बरगद का पेड़ मौजूद है जिसमे अंग्रेजी हुकूमत की दमनकारी नीति के चलते भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अनेक शूरवीरों ने इसके फंदे में झूलकर अपनी जान न्यौछावर कर दी।
मंडला के गोंड राजाओं व स्वतंत्रता संग्राम पर अनेक किताब लिख चुके वयोवृद्ध इतिहासकार गिरिजाशंकर अग्रवाल बताते हैं कि जंग ए आजादी में मंडला का योगदान किसी से कम नहीं रहा है। मंडला में अंग्रेजों के विरुद्ध चलाये गये हर आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है। बड़ चौराहा के ऐतिहासिक बरगद के पेड़ पर सबसे पहले गोंड 2 आदिवासियों को राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार करने के लिए फांसी पर लटकाया गया था। इसके बाद इसी पेड़ पर 22 लोगों को फांसी दी गई। 1857 की ग़दर के बाद भी इस पेड़ पर अंग्रेजी हुक़ूमत जंग ए आज़ादी के सिपहसालारों को फांसी देती रही है। अंग्रेजी हुकूमत आज़ादी के परवानों को मंडल जेल में रखती थी। कुछ को जबलपुर और नागपुर जेल में भी रखा गया था। #70 वां स्वतंत्रता दिवस
रानी दुर्गावती की इस भूमि से हजारों लोगों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी का बिगुल बजाया जिनमे से बड़ी तादात में लोगों के नाम उजागर नहीं हो सके बावजूद इस जिले के 212 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम उनकी फोटो और विवरण सहित आज भी नर्मदा तट पर स्थित गोंडी पब्लिक ट्रस्ट की लाइब्रेरी में ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में संरक्षित है। 1858 में रामगढ़ की रानी के विरुद्ध मुकदमा चलाने का आदेश वाला डिप्टी कमिश्नर, वाडिंगटन का पत्र भी इस संग्रहालय में संरक्षित है।
जिले में जीवित बचे अंतिम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी माधव प्रसाद चौरसिया जब जंग ए आजादी में अपनी भागीदारी को याद करते हैं तब उनके आँख की चमक देखते ही बनती है। माधव प्रसाद ने जबलपुर में किस तरह अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध विद्रोह किया था। जबलपुर के तुलाराम चौक में अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध चलाये जा रहे आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया करते थे।
यह एक अजीब विडंबना है कि मंडला में सरपंच, जनपद अध्यक्ष, विधायक, सांसद और जिला पंचायत अध्यक्ष सभी पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित होने के बावजूद जिले के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में आदिवासियों के अदुतीय योगदान के बावजूद इनका इतिहास संरक्षित करने कोई ठोस कार्य नहीं किया गया। @सैयद जावेद अली