एक कहावत है कि दाल –रोटी से ही गुज़ारा हो रहा है.लेकिन अब ये कहावत कहने में भी लोग डरने लगें हैं, दालों के दाम आसमान छू रहे है.खास कर तुवर जिसे हम अरहर की दाल भी कहतें है. गत एक वर्षो में अरहर की दाल की कीमतों में बेतहासा वृद्धि हुई है.पिछले साल अरहर के दाल की कीमत महज 70 रूपये किलों थी.लेकिन अब इसके दाम दोगुने से भी अधिक हो गए है. आज अरहर की दाल 200 रूपये के करीब पहुंच गई है.जिसके कारण गरीब और माध्यम वर्ग परिवार की थालियों से दाल गायब होती जा रही है।
दाल आवश्यक प्रोटीन उपलब्ध करती है,जाहिर है कि आम जनमानस दाल का इस्तेमाल संतुलित आहार के लिए करता है.जिसमें अन्य दालों की अपेक्षा अरहर की दाल में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है.इसके महंगे होने से न केवल थाली से दाल गायब है.वरन हम ये कह सकतें है कि आज गरीब तथा माध्यम वर्ग की थाली से पोषण गायब हो रहा है.इस साल बेमौसम बारिश और मानसून में आई कमी के कारण किसानों के फसल बर्बाद हो गए है.मौसम विभाग ने पहले ही इसबात की पुष्टि कर दिया था कि फसल के बर्बाद होने से खास कर दलहन और सब्जियों के उत्पाद में भारी कमी आएगी.गौरतलब है कि दालों की उत्पाद में पहले की तुलना में औसतन वृद्धि दर्ज की गई.दलहन का उपयोग दिन–ब दिन बढ़ता गया।
लेकिन उत्पाद में कोई भारी अंतर देखने को नही मिला.जिससे ये विषम परिस्थिति उत्पन्न हुई है.1960 -1961 में दालों की पैदावार 130लाख टन थी,उस समय के उपयोग अनुसार ये उत्पाद पर्याप्त था और तब दाल सबको आसानी से उपलब्ध हो जाती थी.लेकिन आज पांच दशक के बाद भी हम दालों के उत्पाद को औसतन उपयोग के आधार पर बढ़ाने में विफल रहें है. 2007 -08 के दौरान दालों के उत्पाद में पहले की तुलना में थोड़ी बढ़ोतरी दर्ज की गई थी.2007 में देश में दाल का उत्पाद लगभग 148 लाख टन हुआ था. जो 2013-14 में बढकर 198 लाख टन पहुँच गया.लेकिन 2014 -15 में दाल की उत्पाद में भारी गिरावट देखने को मिली.खरीफ फसल के दौरान कम हुई बारिश का असर दालों की उत्पाद को सीधे और पर प्रभावित किया।
जिससे उत्पादन घट कर 174 लाख टन ही रह गया.इस साल सरकार ने दाल उत्पादन का लक्ष्य 200 लाख टन रखा था लेकिन नतीजा आज हमारे सामने है.कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट में मुताबिक इस साल दाल का उत्पादन लगभग 182 -185 लाख टन रह सकता है. भारत में दाल की खपत, उत्पादन के मुकाबले कहीं ज्यादा है.जिससे हर साल भारत को दाल का आयात विदेशों से करना पड़ता है.भारत में दाल की खपत 220 से 230 लाख टन सालाना है.जिसके कारण हर वर्ष तकरीबन 30 लाख टन दालों का आयात करना पड़ता है।
लेकिन इस साल आयात के सभी आकड़ो को पीछे छोड़ते हुए सरकार अभी तक 46 लाख टन दाल का आयात कर लिया है.अभी आयात की मात्रा में बढ़ोतरी के लिए भी सरकार तैयार बैठी है.पिछले कुछ समय से जब भी किसी वस्तु की कमी से उसकी महंगाई बढ़ती है,सरकार कोई दीर्घकालीन उपाय करने के बजाय सीधे तौर पर उसके आयात को बढ़ा देती है और जैसे –तैसे उसके बढ़ी कीमतों पर काबू पा जाती है. जिसके फलस्वरूप हम उसके अन्य उपाय ढूढ़ने के बजाय आयात पर ही निर्भर हो जातें है.बहरहाल,जब आयात होने के बाद हमारे पास दाल की उपलब्धता हमारे जरूरत के हिसाब से हो गई तब भी दाल के दाम आसमान क्यों छू रहें है ? अगर बढ़े दामों के कारणों की तलाश करें तो कई बातें हमारे सामने आती है.पहला कालाबाजारी और जमाखोरी ये एक ऐसा कारण है।
जिसका हल अभी तक किसी भी सरकार ने नहीं निकाला.जब भी हमारे रोजमर्रा की वस्तुओं के दाम बढ़ते है तो सरकार जमाखोरी और कालाबाजारी का हवाला देकर अपनी पीठ थपथपा लेती है तथा अपनी जवाबदेही को यही तक सीमित कर देती है.बहरहाल, इन सब के बीच खबर आ रही है कि केंद्र के साथ कई राज्यों की सरकारों ने अधिकतम स्टाक सीमा फिक्स कर जगह –जगह जमाखोरों के यहाँ छापेमारी की कार्यवाही शुरू कर दी है.सरकारों के इस सक्रियता के परिणामस्वरूप 10 राज्यों में 2,704 जगहों पर छापेमारी के दौरान अभी तक 35,288 टन दलहनों को जब्त किया गया है.जिसमें महाराष्ट्र सरकार ने सबसे ज्यादा 23,334 टन दाल जमाखोरों से जब्त किया गया है.जिससे आने वाले कुछ ही दिनों बाद दाल में दामों में कमी देखने को मिल सकती है।
इसके लिए इन सभी राज्य एवं केंद्र सरकार की सराहना करनी चाहिएं लेकिन सवाल ये खड़ा होता है कि जब केंद्र तथा राज्य दोनों सरकारों को मालूम था कि दालों के कम उत्पाद होने से जमाखोरों एव बिचौलियों की नजर दाल पर है तो कार्यवाही करने में इतनी देरी क्यों ?अगर सरकारें यही छापेमारी कुछ माह पहले ही कर देतीं तो आज दालों के दाम स्थिर रहतें.जनता को प्याज के बाद दाल की महंगाई से तो कम से कम बचाया जा सकता था ,लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया जिससे सरकार को दाल की आयात भी बढ़ाना पड़ा और जनता को महंगाई की मार भी झेलनी पड़ी।
दूसरा सवाल ये कि क्या सरकार दाल के लिए कोई ठोस योजना बना रही ? सरकार को चाहिएं कि देश में ही दालों की पैदावार बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करें.जिस प्रकार आज हम गेहूं और चावल में आत्मनिर्भर हुए है, ठीक उसी प्रकार हमें दलहन के लिए भी आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता है.मगर इसके लिए जरूरी है कि सरकार पहले किसानों के फसल बर्बाद होने पर उचित मुआवज़ा तथा पैदावार की सही लागत मूल्य देने की घोषणा करें दलहन पर आत्मनिर्भर बनें भारत
एक कहावत है कि दाल –रोटी से ही गुज़ारा हो रहा है.लेकिन अब ये कहावत कहने में भी लोग डरने लगें हैं, दालों के दाम आसमान छू रहे है.खास कर तुवर जिसे हम अरहर की दाल भी कहतें है.गत एक वर्षो में अरहर की दाल की कीमतों में बेतहासा वृद्धि हुई है.पिछले साल अरहर के दाल की कीमत महज 70 रूपये किलों थी.लेकिन अब इसके दाम दोगुने से भी अधिक हो गए है.आज अरहर की दाल 200 रूपये के करीब पहुंच गई है.जिसके कारण गरीब और माध्यम वर्ग परिवार की थालियों से दाल गायब होती जा रही है।
दाल आवश्यक प्रोटीन उपलब्ध करती है,जाहिर है कि आम जनमानस दाल का इस्तेमाल संतुलित आहार के लिए करता है.जिसमें अन्य दालों की अपेक्षा अरहर की दाल में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है.इसके महंगे होने से न केवल थाली से दाल गायब है.वरन हम ये कह सकतें है कि आज गरीब तथा माध्यम वर्ग की थाली से पोषण गायब हो रहा है.इस साल बेमौसम बारिश और मानसून में आई कमी के कारण किसानों के फसल बर्बाद हो गए है.मौसम विभाग ने पहले ही इसबात की पुष्टि कर दिया था कि फसल के बर्बाद होने से खास कर दलहन और सब्जियों के उत्पाद में भारी कमी आएगी.गौरतलब है कि दालों की उत्पाद में पहले की तुलना में औसतन वृद्धि दर्ज की गई.दलहन का उपयोग दिन–ब दिन बढ़ता गया।
लेकिन उत्पाद में कोई भारी अंतर देखने को नही मिला.जिससे ये विषम परिस्थिति उत्पन्न हुई है.1960 -1961 में दालों की पैदावार 130लाख टन थी,उस समय के उपयोग अनुसार ये उत्पाद पर्याप्त था और तब दाल सबको आसानी से उपलब्ध हो जाती थी.लेकिन आज पांच दशक के बाद भी हम दालों के उत्पाद को औसतन उपयोग के आधार पर बढ़ाने में विफल रहें है. 2007 -08 के दौरान दालों के उत्पाद में पहले की तुलना में थोड़ी बढ़ोतरी दर्ज की गई थी.2007 में देश में दाल का उत्पाद लगभग 148 लाख टन हुआ था.जो 2013-14 में बढकर 198 लाख टन पहुँच गया.लेकिन 2014 -15 में दाल की उत्पाद में भारी गिरावट देखने को मिली.खरीफ फसल के दौरान कम हुई बारिश का असर दालों की उत्पाद को सीधे और पर प्रभावित किया।
जिससे उत्पादन घट कर 174 लाख टन ही रह गया.इस साल सरकार ने दाल उत्पादन का लक्ष्य 200 लाख टन रखा था लेकिन नतीजा आज हमारे सामने है.कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट में मुताबिक इस साल दाल का उत्पादन लगभग 182 -185 लाख टन रह सकता है.भारत में दाल की खपत, उत्पादन के मुकाबले कहीं ज्यादा है.जिससे हर साल भारत को दाल का आयात विदेशों से करना पड़ता है.भारत में दाल की खपत 220 से 230 लाख टन सालाना है.जिसके कारण हर वर्ष तकरीबन 30 लाख टन दालों का आयात करना पड़ता है।
लेकिन इस साल आयात के सभी आकड़ो को पीछे छोड़ते हुए सरकार अभी तक 46 लाख टन दाल का आयात कर लिया है.अभी आयात की मात्रा में बढ़ोतरी के लिए भी सरकार तैयार बैठी है.पिछले कुछ समय से जब भी किसी वस्तु की कमी से उसकी महंगाई बढ़ती है,सरकार कोई दीर्घकालीन उपाय करने के बजाय सीधे तौर पर उसके आयात को बढ़ा देती है और जैसे –तैसे उसके बढ़ी कीमतों पर काबू पा जाती है. जिसके फलस्वरूप हम उसके अन्य उपाय ढूढ़ने के बजाय आयात पर ही निर्भर हो जातें है.बहरहाल,जब आयात होने के बाद हमारे पास दाल की उपलब्धता हमारे जरूरत के हिसाब से हो गई तब भी दाल के दाम आसमान क्यों छू रहें है ? अगर बढ़े दामों के कारणों की तलाश करें तो कई बातें हमारे सामने आती है.पहला कालाबाजारी और जमाखोरी ये एक ऐसा कारण है।
जिसका हल अभी तक किसी भी सरकार ने नहीं निकाला.जब भी हमारे रोजमर्रा की वस्तुओं के दाम बढ़ते है तो सरकार जमाखोरी और कालाबाजारी का हवाला देकर अपनी पीठ थपथपा लेती है तथा अपनी जवाबदेही को यही तक सीमित कर देती है. बहरहाल, इन सब के बीच खबर आ रही है कि केंद्र के साथ कई राज्यों की सरकारों ने अधिकतम स्टाक सीमा फिक्स कर जगह –जगह जमाखोरों के यहाँ छापेमारी की कार्यवाही शुरू कर दी है.सरकारों के इस सक्रियता के परिणामस्वरूप 10 राज्यों में 2,704 जगहों पर छापेमारी के दौरान अभी तक 35,288 टन दलहनों को जब्त किया गया है.जिसमें महाराष्ट्र सरकार ने सबसे ज्यादा 23,334 टन दाल जमाखोरों से जब्त किया गया है.जिससे आने वाले कुछ ही दिनों बाद दाल में दामों में कमी देखने को मिल सकती है।
इसके लिए इन सभी राज्य एवं केंद्र सरकार की सराहना करनी चाहिएं लेकिन सवाल ये खड़ा होता है कि जब केंद्र तथा राज्य दोनों सरकारों को मालूम था कि दालों के कम उत्पाद होने से जमाखोरों एव बिचौलियों की नजर दाल पर है तो कार्यवाही करने में इतनी देरी क्यों ?अगर सरकारें यही छापेमारी कुछ माह पहले ही कर देतीं तो आज दालों के दाम स्थिर रहतें.जनता को प्याज के बाद दाल की महंगाई से तो कम से कम बचाया जा सकता था ,लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया जिससे सरकार को दाल की आयात भी बढ़ाना पड़ा और जनता को महंगाई की मार भी झेलनी पड़ी।
दूसरा सवाल ये कि क्या सरकार दाल के लिए कोई ठोस योजना बना रही ? सरकार को चाहिएं कि देश में ही दालों की पैदावार बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करें.जिस प्रकार आज हम गेहूं और चावल में आत्मनिर्भर हुए है, ठीक उसी प्रकार हमें दलहन के लिए भी आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता है. मगर इसके लिए जरूरी है कि सरकार पहले किसानों के फसल बर्बाद होने पर उचित मुआवज़ा तथा पैदावार की सही लागत मूल्य देने की घोषणा करें।
:- आदर्श तिवारी
लेखक :- आदर्श तिवारी (स्वतंत्र टिप्पणीकार )
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय भोपाल
के विस्तार परिसर “कर्मवीर विद्यापीठ” में जनसंचार के छात्र है ।
+917771038206