रेल यात्री सुविधा का जो हाल आज है वह इसके पहले कभी इतना बुरा नहीं रहा। एक ओर जहां एनडीए सरकार रेलवे में अंधाधुंध निवेश लाकर बुलेट ट्रेन, सेमी हाईस्पीड ट्रेन और हाई स्पीड ट्रेन चलाने की बातें कह रही है वहीं दूसरी ओर ट्रेनों की समयबद्धता, सुविधाओं का टोटा, स्वच्छता की कमी, गंदे बेड रोल, घटिया खानपान, कम और स्तरहीन भोजन सामग्री, निजी वेंडर माफिया पर निर्भरता के अलावा गंदे बेड रोल को बढिय़ा पैकेज में दिखाकर यात्रियों के साथ धोखा किया जा रहा है।
दूसरी ओर रेलवे का अपना रेलनीर ट्रेनों में नहीं मिलता और प्राइवेट कंपनियों के गंदे और स्तरहीन पानी उपलब्ध कराया जा रहा है। यहा मामला रेलवे की हालत को अच्छी तरह बयां कर रहा है। घटिया व स्तरहीन पानी बोतलों की बिक्री में रेलवे के ऊपर से लेकर नीचे तक के कर्मी लिप्त हैं। आखिर कैसे होगी रेलवे की आय में वृद्धि?
यह मंजर आंखो देखी का है और स्वयं भुगत चुके का हाल-ए-बयां है जो रेलवे के पूर्व प्रवक्ता की हालिया देश के विभिन्न भागों में रेल यात्रा की कहानी है। देश के विभिन्न कोनों उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम और पश्चिम से पूर्व तक की यात्रा कर चुके इस यात्री को किसी भी क्षेत्र में रेलवे की हालत में कोई अंतर नहीं दिखा। इन लाइनों पर गैर राजधानी और गैर शताब्दी ट्रेनों में यात्री सुविधाओं का नितांत अभाव देखा गया।
उदाहरण के लिए आप रेल नीर को ही ले लीजिए 2004 में रेलवे द्वारा शुद्ध और स्वच्छ पेयजल रेल यात्रियों के लिए लाया गया था लेकिन आज की तारीख में राजधानी और शताब्दी ट्रेनों को छोडक़र किसी भी ट्रेन में रेल नीर नहीं बिकता। इसके पीछे कौन काम कर रहा है? यहां तक कि स्टेशनों पर भी रेल नीर उपलब्ध नहीं है। राजधानी और शताब्दी ट्रेनों में भी पहली बार ही रेल नीर दी जाती है उसके बाद के ऑर्डर पर घटिया कंपनी की स्तरहीन पेयजल पकड़ा दिया जाता है। ट्रेनों के साथ ही स्टेशनों से रेल नीर के गायब होने के पीछे बड़े खिलाडिय़ों का हाथ होना लाजिमी है। स्तरहीन और घटिया गैर ब्रांडेड पानी की बिक्री में रेलवे के बड़े अधिकारियों से लेकर कर्मियों तक को अच्छे कट और कमीशन जो मिलते हैं?
कहना न होगा कि उत्तर रेलवे में रेल नीर के महाघोटाले में मुख्य वाणिज्य प्रबंधक चौलिया और साइलस पकड़े भी गए थे जो अपने फायदे के लिए सरकारी खजाने को चूना लगाने में सहयोग कर रहे थे। इस मामले में 28 करोड़ रूपये भी बरामद हुए थे। रेलवे का सख्त आदेश है कि रेल नीर की बिक्री ही रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों में की जाएगी लेकिन इस आदेश की धज्जियां बखूबी उड़ाई जा रही है।
2016 के रेल बजट में सुविधा ट्रेनों को लेकर रेल मंत्री ने जो सुविधाएं और खूबियां गिनाईं थी उसका कहीं पता ही नहीं है। कहा गया था कि सुविधा ट्रेनों में लिंक हॉफमन बुश जर्मन कोच लगाए जाएंगे और इसकी रफ्तार राजधानी और शताब्दी के बराबर 160 किलोमीटर प्रति घंटे होगी। लेकिन सुविधा ट्रेन में यात्रा के दौरान यह देखने को मिला कि इस ट्रेन को समयबद्ध परिचालन की अभी आदत भी नहीं लग पाई है यह नियत समय पर यात्रियों को पहुंचा कहां से पाएगी? खानपान सेवा माफिया के हवाले है। घटिया और स्तरहीन भोजन अल्युमिनियम फॉयल में तो दिया जाता है लेकिन उसकी मात्रा के बारे में कोई जांच परख नहीं है। यदि कोई यात्री शिकायत करना चाहे तो खाना देने के साथ ही वेंडर पैसे लेते हैं और चले जाते हैं उसके बाद कौन रेलवे अधिकारी दौरा करके यह जानने की कोशिश करता है कि जो भोजन 160 रूपये में दिया गया है उसका मानक क्या है? कितने यात्री संतुष्ट हैं?
यहां तक कि सुविधा ट्रेन के एसी सेकेंड क्लास टॉयलेट में हाथ धोने के लिए लिक्विड नहीं है? हां, लिक्विड रखने वाला बर्तन बहुत ही करीने से सजाकर हुआ रखा रहता है। सुविधा ट्रेनें दो से दस घंटे तक लेट चलती हैं यही हाल राजधानी और शताब्दी ट्रेनों का भी है। कहना न होगा कि रेलवे रिजर्वेशन सिस्टम में अनियमितता का बोलबाला है।
तत्काल टिकट तो अनियमितता का सबसे बड़ा तंत्र बन गया है। पता ही नहीं चलता कि तत्काल सुविधा यात्रियों के लिए है या दलालों के लिए? रेलवे के बड़े अधिकारियों की मिलीभगत के बिना आरक्षण काउंटर पर बैठे कर्मी अनियमितता बरत नहीं सकते क्योंकि अरबों के खेल में सभी शामिल हैं। आरक्षण काउंटर पर बैठे कर्मियों की दलालों से मिलीभगत के कारण सरकार की सभी घोषणाएं मिट्टी में मिल जाती हैं और अरबों का खेल घंटों में हो जाता है इसे ही तत्काल सिस्टम कहा जा सकता है।
अब भी यदि नरेंद्र मोदी सरकार अपने को भ्रष्टाचार मुक्त और पारदर्शी सरकार होने का दावा करती है तो उसे शायद रेलवे आरक्षण में जारी धंधलेबाजी को देखने की फुर्सत नहीं है, जहां लाखों यात्री रोज ठगे जा रहे हैं और सरकार अपने को सुशासन की सरकार कहने का दंभ भर रही है। सरकार को सबसे पहले रेलवे प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहिए क्योंकि यह जनता से सीधा जुड़ा हुआ सेवा तंत्र है जिसमें एक छोटी सी छूट दलालों और अधिकारियों के बीच पनपे जाल को और ज्यादा गहरा बना सकती है जो न केवल देश के लिए बल्कि रेलवे के लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है। मोदी जी, सबसे पहले रेलवे प्रशासन के अंदर फैले भ्रष्टाचार के जाल को काटिए करोड़ों लोगों की दुआएं रोज मिलेंगी।
लेखक @ एम.वाई. सिद्दीकी
पूर्व प्रवक्ता रेल मंत्रालय
अंग्रेजी से अनुवाद- शशिकान्त सुशांत, पत्रकार