विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने राज्यसभा में वही बात कह दी, जो पिछले कई वर्षों से मैं अपने पड़ौसी देशों में कहता रहा हूं। उन्होंने नेपाल के संदर्भ में कहा कि हमारी नीति दादा की नहीं, बड़े भाई की है।
हम पड़ौसी देश के दादा नहीं, बड़े भाई हैं। याने ‘बिग ब्रदर’ नहीं, ‘एल्डर ब्रदर’! याने भाईसाहब नहीं, भाईजान! ठीक शब्द का प्रयोग कितना चमत्कारी होता है, यह मैंने लगभग सभी पड़ौसी देशों में देखा है।
जो नेता, अफसर और विदेश नीति विशेषज्ञ भारत-विरोधी होते हैं और जिनके दिल में भारत के प्रति गुस्सा भरा होता है, वे भी भाईजान शब्द सुनकर बिल्कुल सहज हो जाते हैं। उसके बाद बातचीत में उनके साथ कटुता नहीं रह जाती। ‘दादा’ में दादागीरी है। बड़े भाई में प्रेम है।
सुषमा ने नेपाल के बारे में यह शब्द तब कहा, जब राज्यसभा में उन पर आक्रमण किया गया कि वे नेपाल की घेराबंदी करके दादागीरी कर रही हैं। सुषमा ने कहा कि हम नेपाल की सहायता हर तरह से करने को तैयार हैं।
हमने उनके स्वास्थ्य मंत्री से कहा है कि आपको नेपाली नागरिकों के लिए जितनी दवाइयां चाहिए, आप भारत से ले लीजिए। उसके पैसे हम देंगे। उन्हें हम जहाज से काठमांडो भिजवाएंगे। मधेसियों द्वारा लगाई गई घेराबंदी में भारत का कोई हाथ नहीं है।
सुषमा की इस बात पर कुछ सांसदों ने संदेह व्यक्त किया और कहा कि यदि भारत की विदेश नीति सचमुच सुषमा स्वराज चला रही होतीं तो भारत-नेपाल संबंध इतने नहीं बिगड़ते। मणिशंकर अय्यर के उक्त आरोप में मुझे कुछ सच्चाई मालूम पड़ती है।
कुछ विरोधी नेताओं ने विदेश मंत्री के साथ मधेसी नेताओं की भेंट को भी अनुचित बताया है? इसमें अनुचित क्या है? यदि तथाकथित घेराबंदी को लेकर नेपाल के विदेश मंत्री कमल थापा दिल्ली आकर हमारी विदेश मंत्री से बात कर सकते हैं तो मधेसी नेता क्यों नहीं कर सकते?
इसमें शक नहीं कि भारत की नेपाल-नीति में इधर कई खामियां रहीं लेकिन नेपाल भी कोई कम खुदा नहीं है। उसने संयुक्त राष्ट्र संघ समेत अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों को भी नहीं बख्शा। भारत के खिलाफ उसने कूटनीतिक मोर्चा खोल दिया।
भारत-नेपाल नौटंकी काफी लंबी चल चुकी है। नेपाल के पहाड़ी और मधेसी, दोनों लोग काफी तंग हो गए हैं। नेपाली नेताओं को संविधान-संशोधन करने में देर नहीं लगानी चाहिए और मधेसियों को भी मध्यम-मार्ग अपनाना चाहिए।
लेखक :- वेद प्रताप वैदिक