विगत दिनों आमिर खान ने एक साक्षात्कार के दौरान कही की मेरी पत्नी कहती है की भारत में असहिष्णु ता इतनी बढ गई है कि देश छोडने का मन करता है। इस पर चारों ओर बवाल मच गया आमिर खान के निवास पर हिन्दू सेना सहित अन्य कट्टर वादी संगठनों ने हमला कर दिया। ग़ौरतलब है की असहिष्णुता के विषय पर कई लोगो ने ब्या न दिये, पुरस्कार लौटा ये, प्रदर्शन किये। लेकिन आमिर खान के विरूद्ध में जो हंगामा हो रहा है उसके कुछ महत्वपूर्ण कारण है।
पहला ये की वे एक अंतराष्ट्रीय स्तर के अभिनेता है उनकी कही गई बात को पूरा विश्वछ समुदाय नोटिस करता है। दूसरा उनकी छबी एक प्रख्यात समाज सेवक की भी है नर्मदा बचाओं आंदोलन, अन्ना आंदोलन तथा सत्य मेव जयते में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस लिए एक खास विचार धारा के लोगो को लगता है की आमिर के इस कथन से देश (संकुचित अर्थ में कहा जाय तो मोदी) की छबी घूमिल हो रही है।
असहिष्णुता पर इस प्रकार का बयान इस सरकार के कार्यकाल के दौरान कोई नया नही है। बालीवुड कलाकार, साहित्यकार, तर्कशील कार्यकर्ताओं ने देश में असहिष्णुता पर बयान दिया और अपने पुरस्कार लौटा ये । और तो और भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी, खुद भा जा पा के सांसद तक ऐसे बयान दे चुके है। भाजपा के वरिष्ठ नेता सांसद और संस्थापक श्री लाल कृष्ण् आडवाणी स्वयं यह कहते है की भारत में एमरजेन्सी। से बदतर हालात है। तो भी ऐसा हंगामा नही बरपाया गया। न ही उनके घर में हमले हुये न ही उनका पुतला जलया गया। बाक़ी मुआमलों में सरकार लिपा पोती करती दिखी।
दरअसल बात सिर्फ हंगामे की नही है ऐसे सारे लोग जो ये दावा करते है की भारत में सहिष्णुता है वे ही ऐसे बदम बार बार उठाते है जिससे ये पुष्टि होती है की भारत मे सहिष्णुता खत्म हो चुकी है। आमिर खान के निवास पर हमला इस द़ष्टि कोण से महत्वैपूर्ण है। आईये जाने असहिष्णुता क्या है?
मीडिया में असहिष्णु त शब्दा को इस प्रकार बेजा इस्ते।माल कर रही है माने ये शब्द कोई अपराधिक शब्दे हो। लेकिन सच्चाई ये नही है। असहिष्णुता का सीधा अर्थ है असहनशील। क्या भारत सहनशील है या असहन शील। अंग्रेजी में इन्हीं अर्थो में Intolerance शब्द का प्रयोग किया जाता है।
यहां पर सहनशील भारत का अर्थ है एक समतावादी भारत, एक भाईचारे का भारत। हिन्दू मुसलमानों की उपस्थिति को सहर्ष स्वीरकारे, मुसलमान हिन्दुओं की। सारे ऊंचनीच जाति भेद लिंग भेद को तोड़कर एक भेद मुक्ति भारत की कल्पना ही सहिष्णु भारत है। यह बात सही है की वे सारी घटनाएँ जो आज घट रही है मोदी सरकार के पहले भी घटीत होती रही है। वही ब्यान बाती भी होती रही है। तो ये प्रश्न ये है की तबका भारत सहिष्णु था तो अब का असहिष्णु कैसे?
यहां बताना जरूरी है कि भारत के प्रधान मंत्री ने शपथ लेते ही भारत में एक सहिष्णु भारत की कल्पना की थी और उन्होने कहा था की हर धर्म संप्रदाय जाति को अपने ढंग से जीने की आज़ादी होगी। बावजूद इसके सरकार के ही मंत्रियों, सांसदों ने ही धार्मिक असहिष्णुता एवं उन्माद फैलाने वाले ब्यान देते रहे।
कुछ बयान पर गौर करे
1 गाय हमारी माता है जिसे गाय खाना है वह मुसलमान पाकिस्तान चले जाये।
2 मुसलमानों के बच्चों को पिल्ला कहा गया।
3 दलित बच्चो की हत्या पर उन्हे कुत्ता बताया गया।
4 शंकराचार्य ने कहा की शूद्रों को मंदिर प्रवेश नही करने देना चाहिए।
ऐसे बयानों की एक लंबी फ़ेहरिस्त है जो की भारत में धार्मिक एवं जातिगत असहिष्णुाता बढ़ाने में मदद की है। पर इन सभी में सबसे आश्चर्य जनक तथ्य है की भारत सरकार ने या मोदी ने इनके किसी भी बयानों का खंडन नही किया है न ही ऐसे बयान देने वाले सांसद मंत्रियों संस्थाओं पर कोई कार्यवाही की गई। मोदी द्वारा इन लोगो पर कार्यवाही न किया जाना ही सबसे बड़ा कारण है कि भारत में एक बड़ा जनसमूह धार्मिक अल्पसंख्यक एवं दलित आदिवासी पिछडा वर्ग भय में जीवन गुजार रहा है।
ऐसे लोगो पर तो तलवार लटकी हुई है जो तर्कशील है, अंधविश्वास विरोधी है, सच्चाई के साथ है। कलबूर्जी और पांसारे की हत्या के बाद जिस प्रकार से कट्टरवादी ताक़तों ने इसकी ज़िम्मेदारी ली है और प्रो भगवान को हत्या की धमकी दी गई है। उससे अंदाजा लगाया जा सकता है की भारत में तर्कशील प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष लोगो की मन: स्थिति क्या होगी? उन्हे लगता है की उनका नंबर भी आ सकता है दादरी में मुसलमान को गौमांस खाने के शक में हत्याकांड, फरीदाबाद के सुनपेड में दलित बच्चों की हत्या। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ती की आशंका को बढाते है।
इस बीच प्रधान मंत्री के धकापेल विदेश दौरे वहां से लाईव शो का मीडिया द्वारा सीधा प्रसारण। फिर उस पर तयशुदा चेहरो द्वारा बेतुके अंतहीन बहस से आम आदमी ऊब गया है। उसे लगता है की मीडिया भी अब अपनी बोली लगा चुका है। ऐसे समय जरूरत इस बात की है कि असहिष्णुता के मुद्दे पर मोदी सरकार कदम उठाये। देश को धार्मिक कट्टरवाद जातिवाद की ओर धकेलने वाले ताक़तों संगठनों पर नकेल कसे, प्रतिबंध लगाये। देश की 85 प्रतीशत आबादी को ये विश्वास दिला ये की ये भारत उनका है। उन्हें भी इस देश में जीने का हक है। तभी भारत विकास की ओर बढ सकेगा विश्व मे अपनी पहचान बना पायेगा।
लेखक:- संजीव खुदशाह
Sanjeev Khudshah
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