आखिर कुुछ तो है कि निर्जला रहने के बाद भी न तो उत्साह में कोई कमी दिखलाई देती है न ही चेहरे पर सिकन बाबजूद इसके चांद की तरह दमकता चेहरा एवं उत्साह होता है दोगुना जी हां हम बात कर रहे है करवा चौथ पर्व की जिसमें उक्त स्थिति में किसी भी भारतीय स्त्री को देखा जा सकता है। इसमें छिपा होता है प्यार,सर्मपण एवं त्याग जिसके कारण बिना जल के सेवन के भी महिलायें इस दिन एकदम तरो -ताजा दिखलाई देती हैं।
प्राय:हर उम्र की सौभाग्यवती स्त्री एक नई नवेली दुल्हन की तरह सजते संवरते हुये सौलह सिंगार करती है तो लजाना ,शर्माने के साथ अन्य महिलाओं के साथ हंसी ठिठोली का क्रम चलता ही रहता है। करवा चौथ के पर्व को वैसे तो देश के पंजाब,उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश का मुख्य त्यौहार माना जाता है परन्तु पिछले कु छ बर्षों से सारे देश में महिलायें अति उत्साह के साथ इसे मनाती हैं। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाये जाने वाले उक्त त्यौहार में सुहागिन महिलायें अपने पति के जीवन के रक्षार्थ, दीर्घायु एवं सुखी जीवन की कामना करते हुये संध्या के समय गौधूली बेला में अर्थात् चन्द्रोदय के पूर्व पूर्ण विधिविधान के साथ प्रथम पू’य भगवान श्री गणेश एवं गौरी,शिव पार्वती तथा चौथ की मुख्य देवी अम्बिका का पूजनार्चन करती हैं।पौराणिक कथाओं मे भगवान शिव एवं पार्वती को एक आर्दश युगल बतलाया गया है।
वैसे तो देखा जाये तो हरितालिका तीज,मंगला गौरी ,जया पार्वती जैसे व्रत भी निर्जला रहकर स्त्रियां मनाती हैं। करवा चौथ में प्रयोग होंने वाले प्रमुख पात्र को करवाा कहते हैं। जो प्राय:मिट्टी के कलश नुमा एक लघु घट के समान होता है इसमें सिर्फ एक लम्बी नलकी लगी होती है । कुछ क्षैत्रों में तांबे,पीतल एवं चांदी के घट का प्रयोग भी महिलायें करती हैं परन्तु इनकी संख्या कम है। मान्यता है कि करवा का मुख श्री गणेश के समान होता है एवं नलकी का आकार सूंड के समान होता है। चन्द्रमा भगवान शिव के मस्तक पर शोभित रहता है इसी कारण उसे अर्क देने का विधान बतलाया गया है। दिन भर व्रत के साथ उक्त पूजन सम्पन्न करने के पश्चात् चांद के निकलने का इंतजार ओर दिल में अजीब सी हलचल पिया को चांद के साथ निहारने की लिये महिलायें दुल्हन के रूप में सुसज्जित आसमान की ओर टकटकी लगाये आस में निहारती रहती हैं।
चांद के निकलने पर प्रारंभ होता है पूजन का क्रम जिसमें सुहागिन महिला चांद का पूजन कर उसे करवा से अर्क देते हुये उसे चलनी से निहारने के साथ-साथ पति को निहारती है। पूजन के साथ वह भगवान भालचंद्र से सुखमय जीवन,पति-प्रेम पारिवारिक सुख समृद्धि एवं पति के उज्जवल भविष्य के साथ लंबी उम्र के लिये प्रार्थना करती है। फिर पति के हाथ से जल का सेवन कर अपना व्रत तोडती है। भारतीय नारी के त्याग एवं सर्मपण के कारण ही उसे विश्व मेें एक महत्वपूर्ण स्थान मिला है एवं उसे देवी शक्ति के रूप में मान्यता मिली है।देखा जाये तो धार्मिक,समाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यों के कारण वह संसार में एक अलग स्थान रखती है। पारिवारिक संतुलन के लिये धेर्य एवं सहनशीलता ही उन्हे पूज्जनीय बनाता है।
:- डा.हंसा वैष्णव