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Saturday, November 2, 2024

 क्या मुस्लिम लड़कियों को ‘शादी शगुन’ तुष्टीकरण नहीं?

केंद्र सरकार ने मुस्लिम समुदाय से संबंध रखने वाली तथा स्नातक तक अपनी पढ़ाई पूरी करने वाली युवतियों हेतु 51 हज़ार रुपये की धनराशि ‘शादी शगुन’ के तौर पर देने की घोषणा की है। यह फैसला मौलाना आज़ाद एजुकेशन फाऊंडेशन संस्था द्वारा लिया गया है जोकि केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के अधीन चलने वाली एक संस्था है। अपनी विज्ञप्ति में फाऊंडेशन द्वारा यह बात ज़ोर देकर कही गई है कि इस योजना का उद्देश्य ‘सिर्फ और सिर्फ’ मुस्लिम लड़कियों के अभिभावकों को अपनी बेटियों को कम से कम स्नातक स्तर की शिक्षा दिलाने हेतु प्रोत्साहित करना है। इस योजना के अतिरिक्त मुस्लिम लड़कियों की छात्रवृत्ति के आबंटन को लेकर भी यह निर्णय लिया गया है कि नवीं तथा दसवीं कक्षा में पढऩे वाली मुस्लिम लड़कियों को दस हज़ार रुपये की धनराशि दी जाएगी। गौरतलब है कि पहले ग्यारहवीं तथा बारहवीं कक्षा में पढऩे वाली मुस्लिम लड़कियों को 12 हज़ार रुपये की छात्रवृति मिला करती थी। फाऊंडेशन के खज़़ांची शाकिर हुसैन अंसारी ने इस शादी शगुन योजना का पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इन शब्दों में दिया कि ‘उन्होंने सबका साथ सबका विकास’ के नारे को सच किया है।

यहां यह बताने की ज़रूरत नहीं कि जब कभी गैर भाजपाई खासतौर पर देश की कांग्रेस शासित सरकारों द्वारा कभी भी इस प्रकार का कोई भी ऐसा निर्णय लिया जाता था जिसका लाभ अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मिलता हो, उस समय यही ‘शादी शगुन’ के योजनाकार प्रेस वार्ताएं बुलाकर चिल्ला-चिल्ला कर यह कहा करते थे कि देश में मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति की जा रही है। भारतीय जनता पार्टी के संरक्षक संगठन के कुछ अति उत्साहित नेताओं द्वारा तो जनसभाओं में यहां तक कहा जाता था कि भारतवर्ष में बहुसंख्य हिंदुओं की कमाई देश के अल्पसंख्यक मुसलमानों पर लुटाई जा रही है। परंतु आज जब पिछली सरकारों पर तुष्टीकरण का इल्ज़ाम लगाने वाली भाजपा सरकार केवल मुस्लिम लड़कियों के लिए ‘शादी शगुन’ जैसी योजना शुरु कर रही है तो इसे आखिर तुष्टिकरण क्यों नहीं कहा जाना चाहिए? क्या देश में हिंदू अथवा दूसरे गैर मुस्लिम समुदाय के अभिभावकों को अपनी बेटियों के प्रोत्साहन के लिए 51 हज़ाररुपये जैसे शगुन की ज़रूरत नहीं है?आज वर्तमान केंद्र सरकार के प्रवक्ताओं तथा जि़म्मेदार मंत्रियों द्वारा बार-बार विभिन्न अवसरों पर यह बताने और जताने की कोशिश की जाती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार अल्पसंख्यकों के विकास,उन्नति तथा खुशहाली हेतु प्रतिबद्ध है। सरकार द्वारा करोड़ों रुपये खर्च कर इस आशय के अनेक विज्ञापन भी जारी किए जाते हैं।  केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के राज्यमंत्री अल्पसंख्यकों के प्रति उनकी सरकार द्वारा अपनाए जा रहे कार्यक्रमों को गिनाते नहीं थकते। वे इसे तुष्टिकरण नहीं मानते बल्कि इसे सबका साथ सबका विकास के अंतर्गत् गिनते हैं। अल्पसंख्यकों के हितों के मद्देनज़र इनकी सरकार द्वारा शुरु की गई कोई भी योजना इनके शब्दों में अल्पसंख्यकों के सशक्तिकरण तथा अल्पसंख्यकों के व्यापक विकास के लिए शुरु की जाने वाली योजनाएं हैं, तुष्टिकरण के लिए नहीं। अभी पिछले दिनों उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पूर्व पूरे देश में तीन तलाक जैसे विषय को मुस्लिम महिलाओं के प्रति अपनी हमदर्दी जताने की गरज़ से पूरे ज़ोर-शोर के साथ प्रचारित किया गया। कई ‘गोदी मीडिया’ ने भी सरकार की इस योजना में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भाजपाई इस तिहरे तलाक के विरोध में मुस्लिम महिलाओं के प्रति हमदर्दी जताते दिखाई दिए। परंतु उत्तर प्रदेश का चुनाव समाप्त होते ही तीन तलाक का मुद्दा ऐसे गायब हुआ जैसे यह कभी कोई मुद्दा था ही नहीं।

गौरतलब है कि मुस्लिम समुदाय के लोग दशकों से आपस में ही इस विषय पर एक बड़ी बहस में उलझे हुए हैं। अधिकांश मुस्लिम उलेमाओं व बुद्धिजीवियों का यह मानना है कि तिहरे तलाक की व्यवस्था कोई ऐसी सर्वमान्य तला$क व्यवस्था नहीं है जिसे पूरा का पूरा मुस्लिम समाज स्वीकार करता हो या इस पर अमल करता हो अथवा इस व्यवस्था को मान्यता देता हो। परंतु अल्पसंख्यकों के इन्हीं स्वयंभू तथाकथित हितैषियों ने महज़ मुस्लिम महिलाओं के तुष्टिकरण की खातिर तथा उन्हें यह जताने के लिए कि तिहरे तलाक जैसी व्यवस्था पर अमल कर मुस्लिम मर्द औरतों पर ज़ुल्म व अत्याचार करते हैं, इस विषय को सार्वजनिक स्तर पर इतना उछाला जैसेकि तलाक देने की व्यवस्था केवल मुस्लिम समुदाय में ही हो और वह भी असभ्य तरीके से तलाक-तलाक-तलाक कहकर अपनाई जा रही हो।  केंद्र सरकार अपनी घोषणाओं के अनुसार अल्पसंख्यकों के विकास के मद्देनज़र और भी कई योजनाएं निकट भविष्य में शुरु करने की योजना बना रही है। निश्चित रूप से प्रत्येक भारतवासी चाहे वह किसी भी धर्म-जाति अथवा समाज का सदस्य क्यों न हो उसे समस्त सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने का पूरा अधिकार है। परंतु किसी धर्म अथवा जाति विशेष का हितैषी दर्शाने से पूर्व यह भी ज़रूरी है कि जिस समाज की बेटियों को शादी शगुन देने की बात की जा रही हो सर्वप्रथम उस बेटी की तथा उसके बाप और भाई की इज्ज्ज़त व जान-माल की रक्षा की गारंटी ली जाए। आज विभिन्न संस्थाओं तथा अनेक सरकारी व $गैर सरकारी संगठनों द्वारा जारी किए जाने वाले आंकड़े यह बता रहे हैं कि देश में किस प्रकार संाप्रदायिक दुर्भावना अपने पैर पसार रही है। देश में जगह-जगह उग्र भीड़ द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर किसी न किसी बहाने से हमले किए जा रहे हैं। अनेक लोग इन हमलों में मारे भी जा चुके हैं। ऐसे परिवारों में 51 हज़ार रुपये का शगुन यदि दिया भी गया तो वह किसी मुस्लिम बेटी की शादी में काम आने के बजाए उसके परिवार के मरने वाले बाप या भाई के अंतिम संस्कार में ही काम आ सकेगा।

लिहाज़ा वर्तमान सरकार के सरबराहों को चाहिए कि वे अपने सबका साथ सबका विकास जैसे नारे पर अमल करते हुए यदि समस्त भारतवासियों को पूरी ईमानदारी व पारदर्शिता से एक ही नज़र से देखने का प्रयास करें तो इतना ही समस्त देशवासियों के लिए पर्याप्त होगा। गरीब लड़कियां शादी शगुन की ज़्यादा ह$कदार हैं बजाए इसके कि यह शादी शगुन सरकार के अनुसार ‘केवल और केवल’ मुस्लिम स्नातक लड़कियों को ही दिया जाएगा। यदि देश का मुस्लिम समाज वर्तमान सरकार के दौर में केवल इसी बात के लिए आश्वस्त हो जाए कि अपने देश में वह पूरी तरह स्वतंत्र है,उसके साथ सौतेला व्यवहार नहीं किया जाएगा, वह देश के अन्य नागरिकों की ही तरह भारतवर्ष का प्रथम दर्जे का नागरिक है तथा देश की सभी संपदाओं पर उसका भी बराबर का अधिकार है और धर्म के आधार पर उसके साथ कभी कहीं भेदभाव व अन्याय नहीं होगा,दाढ़ी-टोपी देखकर कोई उसपर हमला नहीं करेगा तो इतना ही मुस्लिम बेटियों व बेटों के लिए पर्याप्त है। और यदि ‘शादी शगुन’ देकर ही कृतार्थ करने में सरकार अपना राजनैतिक लाभ समझती है तो यह योजना देश की समस्त गरीब बेटियों हेतु लागू करनी चाहिए केवल मुस्लिम बेटियों के लिए नहीं। वर्तमान घोषित ‘शादी शगुन’योजना को तो मुस्लिम तुष्टिकरण के सिवा और कोई दूसरा नाम नहीं दिया जा सकता।
तनवीर जाफरी 

 

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