बेंगलुरू – लीबिया के सिर्ते शहर से चार भारतीयों को अगवा करने वाले खूंखार आतंकी संगठन आईएस (इस्लामिक स्टेट) ने पहली बार रहम दिखाते हुए उनकी जिंदगी बख्शने का भरोसा दिलाया है । यह बात आईएस के चंगुल से बच कर आए 56 वर्षीय विजय कुमार ने बताई। सिर्ते यूनिवर्सिटी में शिक्षक विजय ने पूरी कहानी बयां करते हुए बताया, ‘हम चारों को एक छोटे से अंधेरे कमरे में रखा गया था। जहां काफी दूर से वाहनों के आवाजाही की आवाज सुनाई देती थी। खौफ के मारे मेरी जान हलक में अटक गई थी।’
कर्नाटक के कोलार के रहने वाले विजय, रायचुर के उनके साथी लक्ष्मीकांत रामकृष्ण और हैदराबाद के रहने वाले दो अन्य शिक्षकों को आईएस आतंकियों ने बुधवार को अगवा कर लिया था। जिनमें से दो लोगों को कुछ घंटों बाद ही छोड़ दिया था। लक्ष्मीकांत ने कहा, ‘आतंकियों ने जब हमें बंधक बनाया, तब मेरे दिमाग में वह तस्वीरें चल रही थीं, जैसा आईएस अन्य बंधकों के साथ करता है।’
लक्ष्मीकांत के मुताबिक हालांकि आतंकियों के तेवर उस वक्त पूरी तरह बदल गए, जब उन्हें यह पता चला कि हम चारों शिक्षक हैं। लक्ष्मीकांत के मुताबिक, ‘एक आदमी कमरे में आया और हमारा नाम, धर्म और पेशा पूछा। लेकिन जब हमने बताया कि हम शिक्षक हैं, तो पूरा माहौल ही बदल गया।’
विजय कुमार ने बताया, ‘शेख नाम के व्यक्ति ने किसी से फोन पर बात की और बताया कि हम शिक्षक हैं, इसके बाद वहां से क्या जवाब आया, यह हमें पता नहीं, लेकिन तब से उस शेख की बॉडी लैंग्वेज काफी चेंज हो गई।’ पहली बार आईएस की रहमदिली का जिक्र करते हुए विजय ने बताय, ‘शेख ने फोन पर कहा, ओके, हम उन्हें कोई नुकसान हीं पहुंचाएंगे और पूरी देखरेख करेंगे।’
विजय के मुताबिक, ‘फोन पर बातचीत के बाद शेख ने कहा कि हम टीचरों की बेहद इज्जत करते हैं। आपने लीबिया के बच्चों को कुछ न कुछ सिखाने में मदद की है। हम न तो आपकी आंखों पर पट्टी बांधेंगे और ही सिर कलम करेंगे।’
विजय कुमार के मुताबिक, ‘जब हम सालाना छुट्टी बिताने के लिए भारत वापस आ रहे थे, तभी एपरपोर्ट के रास्ते पर एक चैकपोस्ट पर हमारी टैक्सी को रूकवा लिया गया, जहां नकाबपोश बंदूकधारियों ने हमें गाड़ी से उतारा और दूसरे वाहन में बिठाकर ले गए। हमें एक अज्ञात स्थान पर ले जाया गया।’
गौरतलब है कि हैदराबाद के टी. गोपीकृष्ण और बलराम किशन अब भी आईएस के कब्जे में ही हैं। जिन्हें छुड़ाने के लिए विदेश मंत्रालय की ओर से प्रयास जारी हैं।
:-एजेंसी