आतंकवाद के खिलाफ सारी दुनिया जिस तरह से एक हो रही है, पिछले 20-25 साल में कभी नहीं हुई। संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करके सभी सदस्य-राष्ट्रों से कहा है कि आतंकवाद से लड़ने के लिए वे दुगुनी ताकत लगा दें और जो भी तरीका वे अपनाना चाहें, अपनाएं।
इस प्रस्ताव पर रुस और चीन ने भी मुहर लगा दी है। प्रायः देखा यह जाता है कि जिन प्रस्तावों को अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस पेश करते हैं, उनका रुस और चीन या तो विरोध कर देते हैं या तटस्थ हो जाते हैं। पेरिस-कांड ने अब राष्ट्रों को अपने राजनीतिक मतभेद भुलाने के लिए बाध्य कर दिया है। अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने मुस्लिम देशों में आतंकवादियों को सबसे ज्यादा मदद की और उन्हें इसलिए खड़ा किया कि वे अपने-अपने देशों या पड़ौसी देशों की सरकारों को गिरा दें।
अफगानिस्तान, इराक और लीबिया जैसे देशों में तख्ता पलट करने के लिए अमेरिका ने इन आतंकवादियों का जमकर इस्तेमाल किया। पश्चिमी देश इन एशियाई राष्ट्रों में या तो उनकी खनिज संपत्ति पर काबू करना चाहते थे या उनके बहाने रुसी प्रभाव को खत्म करना चाहते थे। रुस-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा ने ही सीरिया में तीन लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
रुसी प्रभाव से लड़ने के लिए ही अमेरिका ने अफगानिस्तान में पहले मुजाहिदीन, फिर तालिबान और अलक़ायदा की भी पीठ ठोकी। चीन के उइगर मुसलमानों से भी अमेरिका ने अपनी विदेश नीति के लक्ष्य सिद्ध करवाए। उसने ही नजीबुल्लाह, सद्दाम हुसैन और मुअम्मर कज्जाफी के खिलाफ आतंकवादी ताकतों की खुली और सीधी मदद की।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तुर्की के जी-20 सम्मेलन और आसियान सम्मेलन में आतंकवाद-विरोधी विश्व मोर्चा बनाने की अच्छी पहल की है लेकिन मोदी को किसी भुलावे में नहीं रहना चाहिए। पश्चिमी राष्ट्र सिर्फ उन्हीं आतंकवादियों के खिलाफ कमर कसेंगे, जो उनके खिलाफ हैं। जो भारत और चीन के खिलाफ हैं, उन आतंकवादियों की वे अभी तक अनदेखी करते रहे हैं बल्कि वे घुमा-फिरा कर उनकी मदद करते रहे हैं।
पश्चिमी राष्ट्रों की तोपों के लिए मुसलमान लोग सबसे सस्ती बारुद बन गए हैं। बेरोजगार, अशिक्षित और गरीब मुसलमान नौजवानों को इस्लाम के नाम पर बहकाना बहुत आसान है ये बहके हुए नौजवान सबसे ज्यादा अपने ही मुसलमानों को मार रहे हैं। पश्चिमी राष्ट्रों में वे यदा-कदा हमले कर पाते हैं। वे इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं। पश्चिमी राष्ट्रों ने ही इस आतंकवाद को पैदा किया है। अब ये ही इसकी दवा करेंगे।
लेखक:- डॉ. वेदप्रताप वैदिक