बेंगलुरु : Mission Gaganyaan: ISRO भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के. सिवन ने बेंगलुरु में प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि गगनयान मिशन मिशन लेकर तैयारियां चल रही हैं। इसरो के लिए यह बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित होगा। बता दें कि मोदी कैबिनेट ने हाल ही में 10 हजार करोड़ की महत्वकांक्षी गगनयान परियोजना को मंजूरी दे दी थी। अगर यह मिशन कामयाब हुआ तो अंतरिक्ष पर मानव मिशन भेजने वाला भारत दुनिया का चौथा देश होगा। इस प्रोजेक्ट में मदद के लिए भारत ने पहले ही रूस और फ्रांस के साथ करार किया है।
सिवन ने कहा कि इसरो की सबसे बड़ी प्राथमिकता गगनयान है, पहली डेडलाइन अनमैंड मिशन के लिए दिसंबर 2020 तय की गई है। दूसरी डेडलाइन अनमैंड मिशन के लिए जुलाई 2021 तय की गई है। पहले मानवीय मिशन के लिए दिसंबर 2021 का समय तय किया गया है। जीसैट-20, जीसैट-29 सैटेलाइट इस साल होंगे लॉन्च, सितंबर, अक्टूबर तक आने वाले इस सैटलाइट से हाई स्पीड कनेक्टिविटि को बल मिलेगा। डिजिटल इंडिया के सपने को पूरा करने में मदद मिलेगी।
उन्होंने बताया कि छह रिसर्च सेंटर स्थापित किए जाएंगे, ताकि भारतीय विद्यार्थियों को अभी नासा जाना पड़ता है, इस प्रोग्राम के बाद वे यहां वो सभी चीजें समझ पाएंगे। गगनयान के लिए शुरुआती ट्रेनिंग भारत में ही होगी लेकिन अडवांस ट्रेनिंग के अंतरिक्ष यात्रियों को रूस जाना पड़ सकता है।
गगनयान में जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के चयन पर इसरो प्रमुख ने कहा कि सभी क्रू मेंबर्स भारत से होंगे, भारतीय एयरफोर्स के जवान होंगे, सिविलियन भी हो सकते हैं, जो भी चयन के पैमाने पर खरा उतरेंगे वही जाएंगे, महिलाओं को भी अवसर है। चयन संबंधित फैसले सिलेक्शन कमिटी करेगी। देशभर में छह इंक्यूबेशन सेंटर बनाए जाएंगे, जो सभी प्रॉजेक्ट्स के लिए ट्रेनिंग मुहैया कराएंगे।
मोटे तौर पर इसरो का यह स्पेस अभियान तीन भारतीयों को 2022 में अंतरिक्ष में ले जाने का है। वैसे इसरो ने बीते कई दशकों में अपने रॉकेटों और उपग्रहों के अलावा मंगलयान और चंद्र मिशन से जो प्रतिष्ठा हासिल की है, उस सिलसिले में देखें तो गगनयान की जरूरत की आरंभिक वजह समझ में आ जाती है। 2022 में देश के प्रतिभावान नौजवान जब स्वदेशी अभियान की बदौलत अंतरिक्ष के भ्रमण पर होंगे तो यह उपलब्धि सिर्फ उन नौजवानों के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं होगी, बल्कि इससे भारत दुनिया का चौथा ऐसा देश बन जाएगा जो अपने नागरिकों को स्वदेशी तकनीक के बल पर अंतरिक्ष में भेज सकता है। हालांकि यह स्वाभाविक ही है कि गननयान पर 10 हजार करोड़ रुपये के खर्च को देखते यह पूछा जाए कि क्या इसके बिना अंतरिक्ष में हमारी हैसियत को कोई बट्टा लगने वाला है या फिर स्पेस मार्केट का कोई दबाव है, जिसके लिए हमें यह साबित करने की जरूरत है कि भारत अपने दम पर इंसानों को स्पेस में भेज सकता है?
गौरतलब है कि अभी तक दुनिया में सिर्फ तीन देश हैं जिन्होंने अपने प्रयासों से नागरिकों को अंतरिक्ष में भेजा है। इसमें पहली उपलब्धि सोवियत संघ (आज के रूस) के नाम है, जिसने 1957 में दुनिया का पहला कृत्रिम उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ा था। इसकी सफलता से उत्साहित सोवियत संघ ने 12 अप्रैल, 1961 को अपने नागरिक यूरी एलेकसेविच गागरिन को वोस्टॉक-1 नामक यान से स्पेस में भेजा था। इसके बाद से रूस वोस्टॉक, वोस्खोड और सोयूज यानों से करीब 74 मानव मिशनों को अंतरिक्ष में भेज चुका है। इसके बाद बारी आई अमेरिका की, जिसने 5 मई, 1961 को अपने नागरिक एलन बी शेपर्ड को प्रोजेक्ट मरकरी मिशन के तहत स्पेसक्राफ्ट फ्रीडम-7 से अंतरिक्ष में रवाना किया।
इसके बाद से अमेरिकी स्पेस एजेंसी-नासा 200 से ज्यादा मानव मिशन अंतरिक्ष में भेज चुकी है। यह करिश्मा करने वालों की सूची में तीसरा देश चीन है, जिसने 15 अक्टूबर, 2003 को अपने नागरिक यांग लिवेई को शिंझोऊ-5 यान से अंतरिक्ष में भेजा था। वैसे तो इस अवधि में कई अमीर पर्यटक भी स्पेस टूरिज्म के तहत अंतरिक्ष की सैर कर चुके हैं और आने वाले वक्त में संभवत: दर्जनों लोग निजी कंपनियों की मदद से स्पेस की यात्र का आनंद ले सकेंगे, लेकिन जो बात देश का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वदेशी यानों से अंतरिक्ष में पदार्पण करने में है, उसकी तुलना नहीं हो सकती है। इस नजरिये से देखें तो 2 अप्रैल, 1984 को अंतरिक्ष में जाने वाले स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा को अंतरिक्ष में जाने वाले प्रथम भारतीय नागरिक होने का रुतबा हासिल है, लेकिन वह रूस की मदद से उसके यान सोयूज टी-11 से अंतरिक्ष में गए थे। ऐसे में अब यदि भारत स्वदेशी प्रयासों से अपने नागरिक को अंतरिक्ष में भेजने वाला चौथा देश बनना चाहता है तो इसके लिए उसे काफी तैयारियों की जरूरत पड़ेगी।