मून्दी: संसार में मनुष्य जो चाहता है वो उसे नहीं मिलता। जो आप बाटेंगे वह आपको मिलेगा। आपको अगर सुख चाहिए उससे पहले उसे आपको बाटना होगा। आनंद, प्रसन्नता,शांति सबके लिए है। हो सकता है सत्ता, सम्पत्ति, संतान सबके लिए नहीं हो। हर संत चाहता है सर्वे भवन्तु सुखिनः ,सर्वे सन्तु निरामया। मनुष्य दुःख देकर सुख चाहता है यह संभव नहीं है। दुःख पाप के कारण है और पाप का नाश गुरु शरण में जाकर दूर होता है। केवल चाहत से बात नहीं बनती।
उक्त बात राष्ट्रिय संत माँ कनकेश्वरी देवी ने बुखारदास बाबा मेला मैदान पर आयोजित सात दिवसीय भागवत महापुराण कथा के दुसरे दिन कही। उन्होंने कहा कि नैमीषारण्य में सूत जी ने 88 हजार ऋषियों को कथा सुनाई है। यह नैमीषारण्य मनुष्य का शारीर है। क्यूंकि इस शरीर का जीवित रहना एक निमिष अर्थात एक पल के झपकने जितना है। एक सांस के बाद हम दूसरी सांस ले पाएंगे की नहीं ये जरुरी नहीं है।
मृत्यु का भय महारोग है ये भागवत से दूर होता है। हमारा शारीर पञ्च तत्व से बना है ये पञ्च तत्व नियत समय पर अपने घर परमात्मा के यहाँ जाते है तो उन्हें विश्राम मिलता है। उनको प्रसन्नता होती है परन्तु मन को दुःख होता है। हम मन को यह समझा दे की इन पांच देवताओं को एक ना एक दिन अपने घर जाना ही है । यह अपने घर नहीं जाए। उसके पहले ही हे मन तू भगवान की शरण में पहुँच जा ताकि तू दुःख से बच जाए।