खंडवा – ओम्कारेश्वर डूब प्रभावितों का जल सत्याग्रह 16 वे दिन भी पैरो से खून और खुजली व् बदन दर्द स्वास्थ्य में गिरावट आने के बाद भी पूरे उत्साह से जारी रहा है।
एनबीए ने कहा की मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का यह बयान कि नर्मदा बचाओ आन्दोलन विकास विरोधी है, पूरी तरह से झूठा और दुर्भावनापूर्ण है नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने कभी विकास का विरोध नहीं किया परन्तु इन विकास परियोजना से प्रभावित होने वाले लोगो को भिखारी बनने से बचाया। उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद से भारत में ऐसी विकास परियोजनाओ से लगभग 5 करोड़ लोग प्रभावित हुए है और विस्थापन के बाद इन्हें पूरी बर्बादी झेलनी पड़ी है। नर्मदा घाटी में श्रंखलाबद बन रहे बांधो से उजड़ने वाले लाखो लोगो के हको की लड़ाई नर्मदा बचाओ आन्दोलन पिछले 30 सालो से लड़ रहा है, जिसके कारण तमाम विस्थापितों को उनके हक़ मिले हे और तमाम अन्य विस्थापितों के हकों की लड़ाई जारी हे।
उदहारण के लिए ओम्कारेश्वर बांध का निर्माण 2006 में पूरा हो गया था.सभी प्रभावितों का पुनर्वास बांध निर्माण के 1वर्ष पूर्व 2005 में पूरा हो जाना था,परन्तु पुनर्वास निति का पालन नहीं किया गया,और प्रभावितों का पुनर्वास नहीं किया गया जिस कारण बांध में पानी नहीं भरा जा सका। सर्वोच्च न्यायालय ने सन 2011 के अपने आदेश में स्पष्ट कहा है कि पुनर्वास निति के प्रावधानों का पालन नहीं किया है।
लोगो का निति अनुसार पुनर्वास न करने का एक महत्वपूर्ण कारण बांध बना रही सरकारी कंपनी नर्मदा हाइड्रो इलेक्ट्रिक कंपनी को लाभ पहुचाना है। उल्लेखनीय है कि गत वर्षो में इस कंपनी ने लगभग 4000 हजार करोड़ रूपये का शुद्ध लाभ कमाया है।
अब प्रश्न यह है कि यदि शिवराज सरकार द्वारा पिछले दस सालो में विस्तापितो का पुनर्वास न कर पाने के कारण बांध को भरा नहीं जा सका और इस कारण लाभ क्षेत्र के किसानो को सिचाई का लाभ नहीं मिल सका तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है। क्या शिवराजसिह चौहान स्वयं इसके जिम्मेदार नहीं, क्या वो विकास विरोधी नहीं है।
नर्मदा घाटी में यदि विस्थापितों ने नर्मदा बचाओ आन्दोलन के तहत संघर्ष नहीं किया होता तो ये हजारो लाखो विस्थापित बर्बाद होकर भिखारी बन गए होते।