जम्मू कश्मीर में नई गठबंधन सरकार बनाने के पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस एवं कांग्रेस पार्टी के मंसूबों पर राज्यपाल सत्यपाल मालिक ने पानी फेर दिया। गत जून में राज्य में जब भाजपा ने मेहबूबा मुफ़्ती सरकार से समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा दी थी तब से जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शासन लगा हुआ था, जिसकी अवधि अगले माह समाप्त होने जा रही थी। इसे देखते हुए उक्त तीनो दलों आपस में गठजोड़ कर गठबंधन करने में जुटे हुए थे। मेहबूबा मुफ़्ती ने तो 56 विधायकों का समर्थन होने का दावा भी कर दिया था ,परन्तु राज्यपाल सत्यपाल मालिक ने नए गठबंधन को मौका न देकर राज्य विधानसभा को भंग कर चुनाव का मार्ग प्रशस्त करना उचित समझा। राज्यपाल के इस कदम का विरोध तीनो ही दल कर रहे थे। हालाँकि यह अलग बात है कि जून में राज्यपाल शासन के बाद से ही नेशनल कांफ्रेस ने विधान सभा को भंग कर नए चुनाव कराने की मांग की थी। इधर कांग्रेस ने भी पीडीपी से किसी भी संभावित गठबंधन को सिरे से नकार दिया था ,लेकिन विगत दिनों उक्त तीनों दलों ने सत्ता के लिए अपने मतभेदों को भुलाने का मन बना लिया था लेकिन राज्यपाल सत्यपाल मालिक के इस कदम के बाद यह परवान चढ़ने से रह गया। अब देखना यह है कि क्या 6 माह के अंदर जब नए चुनाव होने तब यह तीनों ही दलों के बीच स्थापित हुई दोस्ती रह पाएगी।
इधर राज्यपाल का फैसला पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी , नेशनल कांफ्रेंस एवं कांग्रेस पार्टी को अभी तक रास नहीं आ रहा है। दरअसल राज्यपाल के इस फैसले ने तीनों ही दलों को हक्का बक्का कर दिया है। उन्हें पूरी उम्मीद थी कि राज्यपाल उन्हें सरकार बनाने का मौका देंगे लेकिन राज्यपाल ने विधायकों की कथित खरीद फरोख्त एवं उन्हें डराने धमकाने की ख़बरों को आधार बनाते हुए विधानसभा भंग कर दी। पीडीपी मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ़्ती की सरकार बनाने के उनकी पार्टी के दावें को नकारने के लिए राज्यपाल ने अपने कार्यालय की फेक्स मशीन के ख़राब होने का बहाना बनाया है। इधर राज्यपाल का कहना है कि ईद की छुट्टी होने के कारण उनके कार्यालय की फेक्स मशीन बंद थी। बहरहाल सच क्या है यह तो राज्यपाल ही जानते है किन्तु इससे तीनों दलों का काम जरूर बिगड़ गया।
गौरतलब है कि गत जून में अपनी सरकार के पतन के बाद से ही पीडीपी की मुखिया मेहबूबा मुफ़्ती के खिलाफ उनकी ही पार्टी में विरोध के स्वर उठने लगे थे। इस दौरान मुफ़्ती ने तो भाजपा पर ही उनकी पार्टी में असंतोष भड़काने का आरोप लगाया था। राज्य में सज्जाद लोन के नेतृत्व वाली पीपुल्स कांफ्रेस एवं भाजपा के बीच पनपने वाले मदुर संबंधों ने भी मेहबूबा को चौकन्ना कर दिया था। इधर पीडीपी के सरकार बनाने के दांवे के बाद सज्जाद लोन भी भाजपा और अन्य दलों के 18 विधायकों समर्थन का दावा कर रहे थे ,जिसमे कुछ विधायक पीडीपी के भी शामिल होने की आशंका मेहबूबा को थी। उनकी यह आशंका विधानसभा भंग होने के शीघ्र बाद सच साबित हुई जब उनकी पार्टी के वरिष्ठ सदस्य एवं पूर्व मंत्री इमरान अंसारी ने पीपुल कांफ्रेस में जाने की घोषणा कर दी। इससे पीडीपी को विधानसभा की तीन सीटों से हाथ धोना पड़ सकता था।
इस आशंका ने भी मेहबूबा की घबराहट को बढ़ा दिया उनके कुछ विधायक चुनाव नजदीक आते आते पार्टी से नाता तोड़ सकते है। इसी असंतोष को ध्यान में रखते हुए मेहबूबा ने कांग्रेस एवं नेशनल कांफ्रेस के साथ बनने वाले गठबंधन का नेतृत्व पूर्व मंत्री अल्ताफ बुखारी को सौपने का मन बना लिया था ,परन्तु अल्ताफ बुखारी के हाथों में मुख्यमंत्री की बागडौर तब आती जब राज्य पाल उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते। राज्यपाल के मन में तो कुछ और ही चल रहा था ,जिसका अंदाजा तीनों ही दल नहीं लगा पाए। वे सरकार बनाने गुपचुप मंत्रणाए करते रहे और इधर राज्यपाल विधानसभा भंग करने के लिए उचित समय की प्रतीक्षा करते रहे और यह समय तब आया जब राज्यपाल के कार्यालय की फेक्स मशीन बंद थी।
यह भी आश्चर्य का विषय है कि पीडीपी एवं नेशनल कांफ्रेस के मुखिया अब राज्यपाल के इस कदम का स्वागत कर रहे है। उनके रुख में इस परिवर्तन की वजह राज्यपाल का वह बयान है जिसमे उन्होंने कहा कि वे यदि दिल्ली के इशारे पर काम करते तो राज्य में सज्जाद लोन की सरकार बनती जिसे भाजपा समर्थन कर रही होती। मलिक ने कहा कि अगर सज्जाद लोन को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा देते तो इतिहास में उन्हें एक बेईमान इंसान के रूप में याद किया जाता। राज्यपाल के इस बयान की अपेक्षा पीडीपी ओर नेंका को कतई नही रही होगी इसलिए वे आश्चर्यचकित तो अवश्य है किंतु खुश भी कम नही है।महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल के फैसले को राज्य में लोकतंत्र के इतिहास में अभूतपूर्व कदम करार दिया है तो उमर अब्दुल्ला ने भी राज्यपाल को शुभकामनाएं दे डाली। ऐसा प्रतीत होता है कि राज्यपाल के बयान ने मानों दोनो दलों के सारे गिले शिकवे दूर कर दिए हो।
बहरहाल राज्यपाल ने विधानसभा भंग करने का फैसला स्वविवेक से लिया हो अथवा इसके लिए केंद्र सरकार से विचार विमर्श किया हो परंतु उनके इस फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए। उमर अब्दुल्ला भी अब मानते है कि राज्य में यदि गठबन्धन की सरकार बनती तो यह खरीद फरोख्त व पैसे के दम पर बनने वाली सरकार होती। महबूबा को भी इस बात का संतोष होना चाहिए कि उनकी पार्टी में संभावित बगावत का खतरा अब टल गया है।
जम्मू कश्मीर की नई विधानसभा के गठन हेतु अगले साल मई के पूर्व चुनाव कराने होंगे। अगले साल मई में ही लोकसभा के चुनाव कराए जाना है। हो सकता है चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव के साथ ही जम्मू कश्मीर विधान सभा के चुनाव सम्पन्न कराए। हालांकि मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा है कि चुनाव की तारीखों का फैसला सभी पहलुओं पर विचार करके ही किया जाएगा। जून में जब राज्यपाल का शासन लागू कर विधानसभा को निलंबित किया गया था तब नेशनल कांफ्रेंस ने जल्द से जल्द चुनाव कराने की मांग की थी। इससे ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि नेंका इस चुनाव में सबसे बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब होगी। 87 सदस्यीय सदन के पिछले चुनाव में पीडीपी ने 27 सीटों पर जीत हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी बनने में सफलता पाई थी जबकि भाजपा 25 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही थी।
नेशनल कांफ्रेंस एवम कांग्रेस को क्रमशः तीसरा व चौथा स्थान प्राप्त हुआ था। विगत दिनों भले ही सत्ता की खातिर पीडीपी , नेंका व कांग्रेस ने आपस मे गठजोड़ करना मंजूर कर लिया था लेकिन उनका असली मकसद तो केवल अनुच्छेद 35A के पक्ष में मोर्चाबंदी करना था। अब देखना है कि यह है कि आगामी चुनाव में ये तीनों दल आपस मे गठबन्धन दिखाने में कितनी दिलचस्पी दिखाते है। नेशनल कांफ्रेंस पहले ही कह चुकी है कि वह अकेले ही चुनाव लड़ना पसंद करेंगी। कांग्रेस ने अभी रुख साफ नही किया है। गौरतलब है कि कांग्रेस पहले भी पीडीपी के साथ सत्ता में भागीदारी कर चुकी है। इधर पीडीपी में जिस तरह बगावत हो रही है उससे यह कहा नही जा सकता है कि वह पूर्व की भांति प्रदर्शन कर पाएगी। कांग्रेस को यहां नुकसान उठाना पड़ सकता है जिसने अभी तक अपनी निश्चित राह तय नही की है। भाजपा की शक्ति यथावत रहने की संभावना है ,लेकिन उसे दोबारा सत्ता मिलेगी यह देखना भी दिलचस्प होगा।
@कृष्णमोहन झा
(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)