अमेठी- देश व प्रदेश की सरकारें कुपोषण से मुक्ति के लिए लगातार प्रयासरत हैं लेकिन सरकारों के इन प्रयासों को अमेठी में अभी तक पंख नहीं लग पा रहे हैं। कभी बजट का अभाव रहता है तो कभी अन्य समस्याएं उत्पन्न रहती हैं। जिसके कारण यह योजना परवान नहीं चढ़ पा रही हैं और अमेठी के बच्चे अभी भी कुपोषण से जूझने को मजबूर हैं।
हौसला पोषण योजना के ‘हौसले पस्त’-
अमेठी के मुसाफिरखाना तहसील अंर्तगत कुछ आंगनबाड़ी केंद्रों में सरकार द्वारा कुपोषण को रोकने के लिए सिर्फ वजन दिवस व पंजीरी के सहारे ही कवायद की जा रही है। जिस तरह से प्रयास किए जा रहे हैं उनसे न हीं लगता है कि कुपोषण से बच्चों को मुक्ति मिलेगी। अतिकुपोषित बच्चों के लिए शुरु की गई हौंसला पोषण योजना कुछ ही महीने में दम तोड़ गई है। आवाज आ रही है कि बजट न होने के कारण आंगनबाड़ी केन्द्रों पर बच्चों को न तो देशी घी दिया जा रहा है और न ही मौसमी फल के साथ स्नैक्स उपलब्ध कराए जा रहे हैं विभाग के द्वारा सिर्फ पंजीरी खिलाकर ही अपने दायित्वों को निभाया जा रहा है
जिस तरह से कुपोषण से जंग लड़ने की कवायद चल रही है उससे नहीं लगता कि जिले को कुपोषण से मुक्ति मिल सकेगी।
शशिकला निगम [सीडीपीओ मुसाफिरखाना] ने कहा कि किन्ही कारणों से पराग द्वारा दूध की सप्लाई बन्द कर दी गयी है जनवरी और फरवरी का बिल भी पेन्डिंग रह रहा है । जब दूध इत्यादि की आपूर्ति होने लगेगी तब मेनू के मुताबिक दूध मौसमी फल आदि का वितरण करवाया जायेगा ।
जननी सुरक्षा योजना का भी टूट रहा दम-
सुरक्षित प्रसव और प्रसव के बाद जच्चा-बच्चा की उचित देखभाल को सरकार ने योजनाएं तो तमाम बनाईं, लेकिन अमेठी जिले में सरकारी अस्पतालों की अव्यवस्थाएं इन पर भारी हैं। प्रसुताओं को इंतजाम नहीं भा रहे, तो निर्धारित समय तक वह अस्पताल में रुकने से कतरा रही हैं।
गर्भवती महिलाओं, प्रसुताओं और नवजात शिशुओं के लिए सरकार ने जननी सुरक्षा योजना और जननी-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम संचालित कर रखे हैं। जिसके तहत प्रसव से पहले सरकारी अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं की निश्शुल्क जांच की जाती है।
वहीं प्रसव कराने पर आर्थिक मदद भी दी जाती है, जबकि प्रसव के बाद महिलाओं और नवजात शिशुओं को दो दिन अस्पताल में रखते हुए जच्चा-बच्चा की निगरानी किए जाने का प्रावधान है इस दौरान प्रसूताओं को भोजन आदि भी मुहैया कराया जाता है। लेकिन इन सब पर अस्पतालों के नाकाफी इंतजाम लोगों का मोह भंग कर रहे हैं।
अमेठी के शुकुलबाज़ार, जामो और जगदीशपुर के स्वास्थ्य केंद्र पर महिलाएं जब प्रसव को पहुंचती हैं तो पता लगता है कि अस्पताल में कोई डॉक्टर ही नहीं है। नर्सिंग स्टाफ के भरोसे ही प्रसव होगा। गड़बड़ी पर कोई जिम्मेदारी नहीं, जबकि प्रसव के बाद अस्पताल के वार्ड में रुकना तो मानो सजा के समान ही है। न तो साफ-सफाई के उचित इंतजाम और न ही ठंड या गर्मी से राहत के लिए कोई व्यवस्थाएं। ऐसे में तमाम महिलाएं प्रसव के बाद ही अस्पताल से किनारा कर लेती हैं। पड़ताल करने पर पता चला की कुछ शारीरिक महिलाएं तो प्रसव के बाद निर्धारित दो दिनों तक अस्पताल में रुकीं और घरों को चली गईं। और इनमें से कई महिलाओं ने तो सरकार की आर्थिक मदद में भी रुचि नहीं ली।
बोले जिम्मेदार –
डॉ सन्दीप [सीएचसी जामो अमेठी] बोले चिकित्सकों की कमी एक बड़ी समस्या है। बावजूद इसके सुरक्षित प्रसव और अस्पताल में सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है।
रिपोर्ट- @राम मिश्रा ]