भारत एक ऐसा राज्य है जहाँ मातृ एवं शिशु मृत्यु दर की संख्या चौकाने वाली है , कुछ अन्तराष्ट्री संथाओं की माने तो भारत में मातृ अवं शिशु मृत्यु दर विश्व मैं ४- ५ अस्थान पर है . इन चौकाने देने वाले आंकड़े ने भारत सरकार और विश्व स्तर पर हो रही भारत की फजीहत के कारन भारत सरकार ने 2005 मैं जननी सुरक्षा योजना की शुरुआत की . योजना का मुख्या उद्देश्य मां और बच्चे के जन्म के समय मृत्यु दर मैं कमी लाना था . शोध अध्यन से पता चलता है की मां और बच्चे की मृत्यु प्रसव के दौरान या प्रसव के 24 घंटे के अंदर सबसे अधिक होती है . मातृ और शिशु मृत्यु की एक खास वजह यह भी माना गया की भारत जैसे देश मैं परम्परागत तरीके से प्रसव घर पर होना , प्रसव कार्य मैं गाँव या शहरों मैं आस पास के दाई को बुलाकर प्रसव कराया जाना, दाई की उच्च श्रेणी की प्रशिक्षण नहीं होना , प्रसव के दौरान कई प्रकार की जोखिम को न संभाल पाना जिसकी वजह से मां और बच्चे के मृत्यु की सम्भावना बने रहना है .
इन बुनियादी समस्याओं को ध्यान मैं रखते हुए भारत सरकार सन 2005 मैं जननी सुरक्षा योजना की शुरुआत की .सरकार के इस महत्वकांक्षी योजना को पूरा करने मैं ढेरों राष्ट्रीय- अंतर राष्ट्रीय संस्थाओं ने आर्थिक और बोद्धिक सहायता दी. केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों से अपने अपने राज्यों मैं इस योजना के क्रियान्वयन के लिए आर्थिक ,शैक्षणिक और बौधिक सहायता देने का वादा किया . सन 2005 से ही इस योजना को जमीन पर उतारने के लिए पुर जोड़ कोशिसों चलीं , सरकारी आंकड़े बताते हैं की जहाँ भारत मैं कुल जन्म दर 21.4 है वहीँ बिहार मैं इसकी संख्या 27.6 हैं , वहीँ शिशु मृत्यु दर का अनुपात जहाँ भारत मैं 6 है वहीँ बिहार मैं इसका प्रतिशत 7 है . अब देखना यह हैं की जिस योजना के पीछे इतना बड़ा तंत्र काम कर रहा है उसकी जमीनी हकीक़त क्या है . जननी सुरक्षा योजना की हकीकत को जाने के लिए जब हमने बिहार के मुख्य जिले मधुबनी ,दरभंगा ,जमुई और मुंगेर मैं उन लाभुकों से बात की जो प्रखंड और जिले के सदर अस्पतालों मैं प्रसव या प्रसव पूर्व जांच के लिए गए तो उन्हें वहां क्या सुबिधाएं मिली .
मधुबनी की हकीकत :
संस्थागत एवं सुरक्षित प्रसव के लिए गर्भवती महिलाओं को आशाओं द्वारा देखभाल एवं समय समय पर सरकार द्वारा दिए जानेवाली सुविधाएँ , दवा एवं विभिन्न प्रकार के जाँच की सुविधाओं को लेकर मधुबनी जिले के राजनगर प्रखंड के पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ केंद्र ) के क्षेत्रों में जाकर गर्भवती महिला , आशा , पीएचसी के प्रभारी एवं डा.से सम्पर्क किया तो पाया की कई सुविधाएँ पीएचसी में उपलब्ध है तो वहीँ जाँच के लिए गर्भवती महिलाओं को सदर स्पताल मधुबनी लगभग पंद्रह किलो मीटर दूर जाना पड़ता है. जैसे एम्बुलेंस सुविधा कार्ड धारी महिलाओ को नि : शुल्क उपलब्ध है. वहीँ वजन लेना , वीपी चेक करना , आइरन की गोली देना, एक महीना के अंतराल पर टी टी के दो टिके लगवाना खून जाँच करवाना,प्रसव के लिए गर्भवती महिलाओं को स्वास्थ्य केन्द्र में लाना साथ ही प्रसव के बाद 42 दिनो तक माँ एवं बच्चे की देख भाल करना और बच्चे को नियमित टीका करण के लिए सदर अस्पताल का चक्कर काटना परता है , चक्कर काटने के बाद भी सदर अस्पतालों मैं भी कई बार सुविधा के आभाव मैं रोगी को मजबूरन निजी स्वास्थ केन्द्रों मैं सरन लेना परता है , यहाँ तक सदर अस्पतालों मैं दवा उपलध न होने पर बहार के दावा दुकान से दवा खरीद कर जिले के ग्रामवासी प्रसव कराने के लिए मजबूर हैं.
आशा अर्चना देवी,निर्मला देवी पूनम मल्लिक , संगीता कुमारी, शांति देवी , अर्चना कुमारी के साथ गर्भवती महिला सरिता देवी , नजिमा खातून , सोनी मल्लिक , गुड़िया देवी , शोभा देवी से सर्म्पक किया तो ऊन लोगों का कहना था कि सीजेरियन , खून चढ़ाने की सुविधा , हेमोग्लोबिन की जाँच, अल्ट्रासाउंड के साथ एच आई वी की जाँच पीएचसी में नही हो पाता .इन जांचों के लिये गर्भवती महिलाओं को जिले के सदर स्पताल जाना पड़ता है. विगत 5 माह से गर्भवती महिलाओ को आइरन की गोली नही दिया जा रहा .इस विषय में पीएचसी प्रभारी शिवशंकर मेहता ने बताया की विगत 5 महीने से सदर स्पताल द्वारा आइरन की गोली नही दिया गया. सिविल सर्जन मधुबनी से पूछा तो उन्होने बताया की स्वास्थ्य विभाग को आइरन की गोली का डिमांड किया गया किन्तु वहीँ से दवा मुहैया नहीं कराया गया . विभाग द्वारा दवा उपलब्ध नही कराने के कारन जिले के किसी भी प्रत्मिक स्वास्थ केंद्र में आइरन की गोली उपलब्ध नही है.
वहीँ जब जननी स्वास्थ्य योजना का उद्देश्य जानने के लिए राजनगर पीएचसी के डा.संजीव कुमार मिश्रा एवं डा.सुधाकर मिश्रा के साथ अन्य गर्भवती महिलाएँ व शिक्षित लोगों से पूछा तो उन्होने बताया की डा.आशा एवं अन्य लोगों के सहयोग से ही इसके उद्देश्य की पूर्ति की जा सकती है. जहाँ मातृ मृत्यु दर एवं शिशु मृत्यु दरमें कमी लाया जा सकता है.वहीँ जनसँख्या वृध्दि पर रोक लगाना भी इसका उदेश्य है. संस्थागत एवं सुरक्षित प्रसव के लिए जहाँ महिलाओं के खाता पर एक हजार चार सौ रुपये तीन माह बाद दिया जा रहा है. वहीँ आशा को प्रसव पूर्व देख भाल के लिए 600रु और प्रसव के बाद 250 रू 42 दिनो तक देख भाल एवं नियमित टीका करण के लिए सरकार के तरफ़ से दिया जाता है.
जब जमुई जिले के सिकंदरा प्रखंड के प्राथमिक स्वास्थ केंद्र मैं उपलब्ध स्वास्थ सुविधाओं के बारे मैं जानना चाहा तो यहाँ संसाधनों का घोर आभाव दिखाअस्पताल मैं न तो खून जांच करने की सुविधा है , गर्भा वस्था के दौरान गर्भवती माता के टीकाकरण की भी सुब्धि उपलब्ध नहीं , सामान्य टीकाकरण के लिए कार्ड धरी महिलाएं जिले के सदर अस्पताल जाने के लिए मजबूर है . हैरानी तो तब हुयी जब प्रसव के लिए आई सीमा सरमा सिकंदर की रहने वाली ,जमीला खातून और स्वेता कुमारी कहती हैं की स्वास्थ केन्द्रों मैं न तो आयरन , कैल्सियम की गोली दी जाती है ना ही सही से इलाज किया जाता है . सव के लिए दवा भी बहार से मंगानी परती है जो की दुगुने दामों मैं मिलती है .इस सन्दर्भ मैं प्राथमिक स्वास्थ केंद्र के प्रबंधक शिव कुमार ने बताया की पीछले कई माह से आयरन कैल्शियम की गोली उपलध नहीं है जब उपलब्ध होगी तब महिलाओं को दी जायेगी. स्वास्थ सुविधाओं के नाम पर स्वास्थ केंद्र मैं अम्बुलेंस की सुविधा उपलब्ध है जिसका उचित व्यय कर एम्बुलेंस का लाभ उठाया जा सकता है , जब की योजना के अनुशार कार्ड धरी महिलाओं को एम्बुलेंस की सुविधा निः शुल्क मिलनी चाहिए.
दरभंगा जिले के बहेरी प्रखंड के एक निवासी अरविन्द कुमार जब प्रखंड प्राथमिक सेवा केंद्र पर अपनी पत्नी की प्रसव के लिए गए तो उन्हें स्वास्थ केंद्र की तरफ से कोई भी दवाई उपलब्ध नहीं कराया गया बल्कि इस परिवार को 1300 रूपये की दबाई बाहर के दुकानों से खरीद कर लानी परी . अरविन्द बताते हैं की जब अस्पताल पहुंचे तो वहां पर डॉक्टर मौजूद नहीं थे , सम्पूर्ण प्रसव क्रिया के दौरान वहां की नर्स थी . इस बात से यह भी समझा जा सकता है की प्राथमिक स्वस्थ केंद्र केवल नर्स के भरोसे चलता है , अगर कोई आपतकालीन जरूरत पड़ी तो रोगी भगवान के भरोसे रहेंगी .
हद तो तब हुआ जब मुंगेर जिला के सदर अस्पताल पहुंचे . कहा जाता है की किसी भी जिला के लिए सदर अस्पताल सम्पुर्ण जिला वसियों के लिया स्वास्थ वरदान का काम करती है परन्तु जब हम सदर अस्पताल मैं प्रसव के लिए आई महिला तारा देवी एवं सुनीता देवी से बात की तो उन्हों ने बताया की दबाई बाहर के मेडिकल स्टोर से खरीदनी परी , प्रसव के दौरान खून जांच करने की जरूरत परी तो उन्हें नीजी जांच केंद्र भेजा गया और उसका भुगतान भी उन्हें खुद करना परा .
अब हम इस बात का अंदाज़ा लगा सकते हैं की जननी सुरक्षा योजना किन लोगों के लिए और कहाँ के लोगों के लिए चल रही है . क्या इन व्यवस्थाओं के माध्यम से कभी सरकार अपने उद्देश्यों को पूरा करने मैं कामयाब होगी , जननी सुरक्षा योजना के तेहत मिलने वाली राशी के सम्बन्ध मैं पूछने पर पता चला की अधिकतर अस्पतालों मैं 6-8 महीने लग जाते हैं , इस योजना के तहत प्रसव के लिए आई महिला को 1400 रुपये का अनुदान दिया जाता है लेकिन इस 1400 रुपये के अनुदान राशी को प्राप्त करने के लिए 14-15 अस्पतालों के चक्कर लगाने परते हैं और हद तो तब होगई जब जब जननी सुरक्षा योजना की राशी मैं भी अस्पताल के कर्मचारी अपना कमिशन मांगते हैं .
लेखक :–सुल्तान अहमद