मध्यप्रदेश विधानसभा के झाबुआ निर्वाचन क्षेत्र के लिए इस माह होने वाले उप चुनाव हेतु सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी एवं विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी का प्रचार अभियान जोर-शोर से प्रारंभ हो गया है। कांग्रेस ने यहां पूर्व प्रदेशाध्यक्ष एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया को प्रत्याशी बनाया है ,जो वरिष्ठ आदिवासी नेता है, जबकि भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें चुनौती देने के लिए भानु भूरिया जैसे युवा चेहरे पर दांव लगाया है।
मुख्यमंत्री कमलनाथ एवं पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नामांकन दाखिले के समय अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर यह संकेत दे दिया है कि दोनों के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है। कांग्रेस के टिकट के लिए पहले यहां जेवियर मेडा दावेदारी पेश कर रहे थे ,परंतु कांग्रेस ने वरिष्ठता एवं अनुभव को तरजीह देते हुए कांतिलाल भूरिया को उम्मीदवार बनाया है। नामांकन रैली में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने अगल बगल में भूरिया और जेवियर मेडा को बिठाकर यह संदेश देना चाहा की मेडा के मन में टिकट न मिलने से कोई असंतोष नहीं है ,इसलिए मेडा को कांतिलाल भूरिया का प्रस्तावक बनने के लिए भी राजी किया गया।
कांग्रेस के लिए यह उपचुनाव कितना महत्वपूर्ण है ,इसका अंदाजा भी इसी बात से लगाया जा सकता है कि कांतिलाल भूरिया के नामांकन रैली में कमलनाथ सरकार के 9 मंत्री ने उपस्थिति दर्ज कराई। कांग्रेस पार्टी चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए सत्ता और संगठन की पूरी ताकत झोंकने का मन बना चुकी है। कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ प्रदेश सरकार के आदिवासी मंत्रियों बाला बच्चन ,सुरेंद्र सिंह हनी बघेल ,पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह एवं केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल किया गया है।
हालांकि एक आदिवासी मंत्री उमंग सिंघार को पार्टी ने ने इससे दूर रखा गया है। ज्योतिराज सिंधिया के गुट के मंत्रियों को भी स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल नहीं किया गया है। गौरतलब है कि उमंग सिंगार ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ हाल ही में जो बयान बाजी की थी ,उसे मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पसंद नहीं किया था। उमंग सिंगार को इस तरह की बयानबाजी न करने के लिए ताकीद कर दिया गया था। उमंग सिंगार को चुनाव प्रचार से दूर रखने का यह अर्थ निकाला जा रहा है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ अभी भी उनसे प्रसन्न नहीं है।
भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी भानु भूरिया को जिताने की जिम्मेदारी पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने कंधों पर उठा ली है। भाजपा ने भी झाबुआ सीट पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए तगड़ी व्यूरचना की है। पूर्ववर्ती शिवराज सरकार के तीन मंत्री अंतर सिंह आर्य, पारस जैन तथा अर्चना चिटनिस के साथ ही रंजना बघेल सहित कई वरिष्ठ नेता भी भानु भूरिया की जीत पक्की करने के लिए झाबुआ में डेरा जमा चुके हैं। मध्य प्रदेश भाजपा विधायक दल के नेता गोपाल भार्गव एवं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ने भानु भूरिया की नामांकन रैली में अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर यह संदेश दे दिया है कि इस सीट को पार्टी अपनी प्रतिष्ठा की लड़ाई के रूप में देख रही है।
यहां यह बात विशेष उल्लेखनीय है कि कांग्रेस पार्टी तो जेवियर मेडा को कांतिलाल भूरिया का प्रस्तावक बनवा कर यह संदेश देने में सफल रही है कि पार्टी में पूरी एकजुटता है और जेवियर मेडा टिकट मिलने से कतई संतुष्ट नहीं है, परंतु भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार बनने के अभिलाषी रहे कल्याण सिंह डामोर बागी तेवर बरकरार है। पार्टी उन्हें नाम वापसी के लिए राजी करने में असफल रही है। दो अन्य असंतुष्ट नेता शांतिलाल बिसवाल और गोविंद अजनार को भी पार्टी भानु भुरिया की नामांकन रैली में शामिल होने के लिए मना नही पाई है। भाजपा अब इस चिंता में डूबी हुई है कि इन असंतुष्ट नेताओं की नाराजगी भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी भानु भुरिया की जीत की संभावनाओं पर ग्रहण ना लगा दे।
चुनाव में विवादास्पद टिप्पणियां हमेशा ही सुर्खियों का विषय बनती रही है ,परंतु विधानसभा में विपक्ष के नेता गोपाल भार्गव की एक कथित टिप्पणी ने अभी से विवाद खड़ा कर दिया है। भानु भुरिया के नामांकन रैली में भाग लेने आए गोपाल भार्गव ने कथित तौर पर उपचुनाव को हिंदुस्तान-पाकिस्तान का चुनाव बताते हुए कांग्रेस को पाकिस्तान के पक्ष में बताकर विवाद खड़ा कर दिया। कांग्रेस पार्टी की शिकायत पर भार्गव के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज हो चुकी है। हालांकि गोपाल भार्गव का कहना है कि उनके बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है और वे इसके खिलाफ हाईकोर्ट जाएंगे। उधर कांग्रेस अपने आरोप पर कायम है।
कांग्रेस पार्टी को अगर झाबुआ सीट जीतने में कामयाबी मिलती है तो निश्चित रूप से मुख्यमंत्री कमलनाथ और ताकतवर बनकर उभरेंगे। इससे पार्टी का मनोबल भी बढ़ेगा। इससे सदन में कांग्रेस की सदस्य संख्या में केवल एक सीट का इजाफा भर नहीं होगा ,बल्कि इससे शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता पर भी सवाल उठना स्वाभाविक हो जाएगा। चुनाव में वर्तमान एवं पूर्व मुख्यमंत्री दोनों की लोकप्रियता का इंतिहान होना है।
कांग्रेस अगर यह सीट जीतने में सफल होती है तो उसे कमलनाथ सरकार के कामकाज पर जनता की मोहर के रूप में प्रचारित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखेगी, लेकिन अगर बाजी भाजपा के हाथ में रहती है तो शिवराज सिंह चौहान का कद और बढ़ेगा और उन्हें यह दावा करने से कोई नहीं रोक सकेगा कि वे अभी भी प्रदेश में पार्टी के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता है। इसलिए झाबुआ सीट के लिए हो रहे उपचुनाव को भूरिया बनाम भूरिया के बजाय कमलनाथ बनाम शिवराज के रूप में देखा जा रहा है। यह ऐसा उपचुनाव है, जो कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष की ताजपोशी को भी तय करेगा। कांग्रेस को अगर हार का मुंह देखना पड़ा तो पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष पद पर ज्योति राजे सिंधिया की नियुक्ति के लिए उनके समर्थकों का अभियान जोर पकड़ सकता है, जो सीएम कमलनाथ एवं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के लिए ठीक नही कहा जा सकता है।।
कृष्णमोहन झा
(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)