ये मस्जिद मलेशिया के मलंग शहर ईस्ट जावा में स्थित है ऐसा कहा जाता है के इस मस्जिद को जिनो ने सिर्फ एक रात में बना दिया था और ये वाकिया 1991 में हुआ था ।
मस्जिद में प्रयुक्त किये गए एसे एसे पत्थर जिका वजन 2 कुंटल से लेकर 5 कुंटल के पत्थर उठाकर तीस फीट ऊंचाई दीवार बनाना नामुमकिन है।
1991 को बीते अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, जिन लोगो के सामने ये मस्जिद बनी थी वो आज भी मौजूद हैं, पूरा इलाका जानता है की ये मस्जिद अलियंज ने बनाई थी, इसके बनाने के पीछे उनका क्या मकसद हो सकत है ये जांच का विस्श्य है।
मस्जिद की खूबसूरती आप देख सकते हैं. जबकि वहां में मक़ामी लोग कहते हैं के इसे बनाने में किसी आर्किटेक्ट की मदद नही ली गई थी. वैसे ये एक हमेशा से चर्चा का विषय है के इसे जिन की फ़ौज ने बनाया है लेकिन उस बात से कोई इंकार नही कर सकता के ये सिर्फ एक रात में ही बन कर तैयार होगई थी।
जी हाँ जैसा की आप मस्जिद के लेआ,उट और तरह तरह के व्यूज़ देखकर ही अंदाजा लगा सकते है की ये मस्जिद कोई साधारण मस्जिद नहीं है बल्कि इसके पीछे कोई न कोई रहस्य जरूर छिपा हुआ है, स्थानीय लोगो का साफ़ कहना है की ये मस्जिद जब हम लोग सुबह सोस्कर उठे तो ये मस्जिद बनी हुई मिली थी
मस्जिद में की गयी नक्काशियां भी बता रहीं हिंकी ये कोई साधारण बिल्डिंग नहीं है बल्कि इसका इंटीरियर और औतार किसी अच्छे आर्किटेक्चर का भी नहीं बल्कि दूसरी दुनिया के लोगो का लगता है, मस्जिद इतनी खूबसूरत है की जो बन्दा इसमें फज्र की नमाज़ पढने जाता है वो ईशा की नमाज़ पढ़कर निकलता है
इस मस्जिद का पुरसुकून माहौल आपको इस मस्जिद में ठहरने के लिए मना लेगा और आप शांति को देखकर यही कहोगे काश मैं सारी जिंदगी इसी मस्जिद में झाड़ू लगता रहता. लोगो ने बताया किन्माज़ पढने जाने वाले लोगो को इस मस्जिद में इतना आएआम मिलता है नींद के झोंके आने लगते हैं।
ये मस्जिद देखर ही साफ़ जाहिर हो रहा है की ये किसी आर्किटेक्चर का काम नहीं बल्कि इसके पीछे कोई अद्रश्य ताक़त है, इस मस्जिद से पहले भी कई मस्जिद हम्मने देखि हिं जिनको जिन्नात ने तामीर करवाया है, गंगा किनारे यूपी के जिला बुलंदशहर का एक गाँव जिका नाम आहार है।
में भी एक ढाई सो साल पुरानी मस्जिफ बताई जाती है जिसे रातो रात जिन्नात ने तैयार की थी, मैं खुद उस मस्जिद में गया हूँ, काफी पुरानी उस मस्जिद में नमाज़ पढने का चांस नहीं बन पाया, या यूँ कहिये अल्लाह ने उस मस्जिद में हमारे सजदे क़ुबूल न करने थे।
आप क्या अंदाजा लगायेंगे इस मस्जिद का यही न की इतनी अच्छी कारीगरी और नक्काशी दुनिया में नहीं मिलते है, एक मशहूर स्थान है जिसे शाह पीर गेट नाम से जाना जाता है, शाहपीर गेट दरगाह के लिए प्रसिद्द्ध है।
कहा जाता है की एक बार मस्जिद की किल्लत हुई तो जिन्नातों ने शःपीर की दरगाह पर मस्जिद की चिनाई चालू कर दी, कहते हैं की जब आखिर में तामीर का काम चल रहा था तब गुम्बद पर काम चल रहा था।
सिर्फ गुम्बद काखिरी टाप तामीर होने से बच गया था, जैसे भी फज्र की आवाज़ हुई जिन्नात जो काम जैसा था वैसा ही छोड़कर भाग गये, आज भी उस होल से बरसात का पानी भी नहीं टपकता।