नई दिल्ली- कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस सी एस कर्णन स्वत: संज्ञान लेते हुए शुरू की गई अवमानना कार्रवाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट में पेश नहीं हुए। कर्णन और उनके वकील के शीर्ष कोर्ट में पेश नहीं होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने मामले में कार्रवाई तीन हफ्ते के लिए टाल दी। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन द्वारा शीर्ष अदालत के रजिस्ट्रार को लिखे गए पत्र को संज्ञान में लिया जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि दलित होने के कारण उनका उत्पीड़न किया गया। कोर्ट ने कहा कि उनके पेश नहीं होने के कारणों की हमें जानकारी नहीं है। इसलिए हम इस मामले में किसी भी कार्रवाई को टाल रहे हैं।
न्यायपालिका के इतिहास में यह पहला मौका है जब हाईकोर्ट के कार्यरत जज पर सुप्रीम कोर्ट अवमानना की कार्यवाही कर रहा है। इससे पूर्व सुप्रीम कोर्ट अपने ही पूर्व जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू पर कोर्ट की अवमानना की कार्यवाही चला चुका है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता में सात जजों की पीठ इस मुद्दे पर सुनवाई कर रही है।
क्या है पूरा मामला
जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट तथा हाइकोर्ट के पूर्व व मौजूदा 20 जजों को भ्रष्ट बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पिछले हफ्ते पत्र लिखा था। सर्वोच्च अदालत ने जस्टिस कर्णन के इसी पत्र पर संज्ञान लिया है। जस्टिस कर्णन ने पहले ही कोलेजियम द्वारा उनके मद्रास से कोलकोता हाईकोर्ट में किए गए स्थानांतरण को चुनौती दे रखी है। इस मामले में वह आज सुप्रीम कोर्ट में पेश होकर अपना पक्ष रखने वाले थे।
जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाले कोलेजियम ने पिछले साल मार्च में उनका स्थानांतरण कर दिया था। उन्होंने कहा है कि दलित होने के कारण उनके साथ भेदभाव किया जाता है। पहले उन्होंने स्थानांतरण का विरोध किया था और उन्होंनें आदेश पारित कर उसे स्थागित कर दिया था तथा सीजेआई को नोटिस देकर जवाब मांगा था। लेकिन बाद में वह मान गए। हालोकि उन्होंने मद्रास में अपना बंगला अब भी खाली नहीं किया है।
जस्टिस कर्णन ने पत्र में पीएम को लिखा
कर्णन ने 23 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और मद्रास हाई कोर्ट के जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। कर्णन ने पीएम को लिखे पत्र में 20 जजों के नाम भी लिखे थे और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच कराने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 8 फरवरी को कर्णन के खिलाफ नोटिस जारी किया करते हुए पूछा था कि उनके इस पत्र को कोर्ट की अवमानना क्यों न माना जाए। [एजेंसी]