मंडला – कान्हा टाइगर रिज़र्व वन और वन्य प्राणियों के संरक्षण के साथ – साथ अनाथ बाघ शावकों की परवरिश कर उन्हें रे वाइल्ड बनाने में भी महारत हासिल कर चुका है। बाघ के साथ हुई लड़ाई में घायल हुई मादा बाघ की मौत के बाद उसके शावक के लालन पालन की जिम्मेदारी पार्क प्रबंधन उठा रहा है। पेंच से भी एक अनाथ शावक कान्हा लाया गया है जिसकी भी तीमारदारी पार्क प्रबंधन कर रहा है। बैक तो वाइल्ड कांसेप्ट शुरू करने साथ ही कान्हा प्रबंधन ने इसमें महारत भी हासिल कर ली है। यहाँ से तैयार होकर फिर जंगल में दहाड़ते है टाइगर।
ऐसे खोजा अनाथ शावक –
कान्हा टाइगर रिज़र्व प्रबंधन अपने वन प्राणियों के प्रति कितना सचेत है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपने एक यतीम शावक को ढूँढ़ने पूरा पार्क महकमा जुट जाता है।
मामला मुक्की परिक्षेत्र का है जहाँ एक बाघिन 10 अप्रैल अपने शावक के साथ देखी गई थी। इस बाघिन की मौत हो जाने से पार्क प्रबंधन उसके शावक की सुरक्षा को लेकर चिंतित हो उठा। यदि शावक को जंगल में ही खुला छोड़ दिया जाता है तो उसी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होती है। ऐसे में पार्क प्रबंधन उस शावक की खोजने में जुट जाता है।
18 अप्रैल से एक अभियान की तरह शावक को खोजने का सिलसिला शुरू होता है। कान्हा टाइगर रिज़र्व के संचालक जसबीर सिंह चौहान बताते है कि इस काम में सेकड़ो मजदूर और पार्क के कई अधिकारी कर्मचारियों के साथ – साथ 4 हाथियों की भी मदद ली गई। परसाटोला, मुक्की, समनापुर, लालपुलिया आदि बीटों में शावक की तलह होती है।
शावक फोटो कैमरा में ट्रैप भी होता है, उसके पग मार्क्स भी मिलते है लेकिन वो हाथ नहीं आता। यदि कभी नार आ भी जाए तो अपनी चंचलता व फुर्तीलेपन के चलते पलक झपकते ही आँखों से ओझल हो जाता है। शावक को खोजने का सिलसिला अल सुबह शुरू होता और सूरज डूबने तक चलता।
आखिरकार पार्क प्रबंधन की मेहनत रंग लाई और करीब 8 दिन बाद शावक पकड़ में आ गया। शावक को सकुशल पकड़ कर विशेषज्ञों क्वारेन टाइम हाउस में रख गया है जहाँ उसके खान – पान के साथ साथ उसकी सेहत का भी ख्याल रखा जायेगा। इसके बाद उसे घोरेला में निर्मित विशेष बाड़े में रखा जायेगा जहां उसे प्राकृतिक रूप से शिकार के लिए भी तैयार किया जायेगा। यह विशेष प्रयोग केवल कान्हा टाइगर रिज़र्व में ही होता है।
क्या है घोरेला बाड़ा –
दरअसल कान्हा के घोरेला बीट में बाघों को शिकार के लिए तैयार करने की विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। ऐसे अनाथ शावक जिनकी माँ की मौत हो जाती है, उन्हें विशेष देखरेख में पार्क प्रबंधन रखता है।
विशेष बाड़े में इन बाघ शावकों को प्राकृतिक वातावरण में रखा जाता है। बड़े होने पर इन्हे शिकार के लिए भी तैयार किया जाता है। बैक तो वाइल्ड कांसेप्ट पर यहाँ रह चुके बाघ पन्ना टाइगर रिज़र्व में बाघों की वंश वृद्धि में सहयोग कर बाघ के पुनर्स्थापना में उल्लेखनीय भूमिका निभा रहे है। इस विशेष बाड़े में प्रशिक्षित बाघ को सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व व वन विहार भोपाल भी भेज जा चुका है। घोरेला बीट में प्रशिक्षित करने के बाद एक नर और एक मादा शावक को कान्हा के जंगल में ही स्वतंत्र विचरण के लिए छोड़ दिया गया था।
इस तरह का प्रयोग करने वाला कान्हा टाइगर रिज़र्व अकेला पार्क है। कान्हा और पेंच से आये दोनों शावकों को यहाँ री वाइल्ड बनाने तैयार किया जायेगा ताकि आग चलकर जब इन्हे जंगल में छोड़ा जाये तो ये खुद को जंगल के नियमों के मुताबिक ढाल सके। कान्हा में निर्मित घोरेला बाड़े के पहले ऐसे अनाथ शावकों की ज़िंदगी काफी कष्टदयाक होती थी और उन्हें सर्वाइव कर भी मुश्किल होता था। उम्मीद की जा रही है कि पूर्व शावकों की तरह ये शावक भी यहाँ से बड़े होकर बाघों ने संख्या बढ़ने में अपना योगदान दे सकेंगे।
@सैयद जावेद अली