बेंगलुरु : कर्नाटक में नई बीजेपी सरकार ने टीपू सुल्तान के जयंती समारोह पर रोक लगा दी है। सोमवार को हुए कैबिनेट बैठक में टीपू जयंती नहीं मनाने का फैसला लिया गया। मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से कन्नड़ संस्कृति विभाग को रोक से संबंधित आदेश भी जारी कर दिया गया है। प्रदेश में 2015 में सिद्धारमैया सरकार ने बीजेपी के विरोध के बाद भी टीपू जयंती पर कार्यक्रम आयोजित कराने का फैसला किया था। राज्य सरकार की तरफ से जारी आदेश में कहा गया है कि प्रदेश में टीपू जयंती मनाने की कभी परंपरा नहीं रही है और इसलिए हमने इसे नहीं मनाने का फैसला किया। उधर, सिद्धारमैया ने बीजेपी सरकार के इस फैसले का विरोध किया है।
कडगु के विधायक के. जी. बोपैय्या ने मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि टीपू जयंती मनाने पर रोक लगनी चाहिए। पत्र में उन्होंने लिखा था कि कडगु के स्थानीय निवासी टीपू जयंती का विरोध करते रहे हैं। विधायक के पत्र के अनुसार, ‘कडुग लोगों के खिलाफ टीपू सुल्तान ने बिना किसी कारण के युद्ध शुरू किया था। इस युद्ध में बड़ी संख्या में कडगु लोग मारे गए थे।’
कांग्रेस ने राज्य सरकार के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि यह बीजेपी के भगवाकरण की राजनीति का असर है। कांग्रेस ने कहा है कि वह अपने स्तर पर जयंती मनाते रहेंगे। टीपू सुल्तान देश के सच्चे सपूत थे और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया था। कर्नाटक के पूर्व सीएम सिद्धारमैया ने कहा, ‘हम हमेशा से टीपू जयंती मनाते रहे हैं, कर्नाटक की जनता भी टीपू जयंती मनाती है। टीपू ने अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ी। मेरे हिसाब से वह देश के पहले स्वतंत्रता सेनानी थे। वह ऐतिहासिक पुरुष हैं। इसकी कारण हम यह मनाते थे। बीजेपी अल्पसंख्यकों के खिलाफ है। हम सरकार के फैसले का विरोध करते हैं।’
बता दें कि कांग्रेस के शासनकाल में पूर्व सीएम सिद्धारमैया ने 2015 में टीपू जयंती मनाने की शुरुआत की थी। उस वक्त भी बीजेपी समेत कई राजनीतिक-सामाजिक संगठनों ने जयंती मनाने का विरोध किया था। बीजेपी शुरू से ही टीपू जयंती मनाने के खिलाफ है। अंग्रेजों के खिलाफ 4 युद्ध लड़नेवाले टीपू सुल्तान की जयंती को लेकर काफी राजनीतिक विवाद होता रहा है। येदियुरप्पा ने टीपू जयंती मनाने की विपक्ष में रहते हुए आलोचना की थी और अब सरकार बनाते ही उन्होंने जयंती नहीं मनाए जाने का फैसला लिया।
18वीं सदी में मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान का जन्म 10 नवंबर 1750 को हुआ था। टीपू की राजनीतिक विरासत को लेकर एक राय नहीं है। अंग्रेजों के खिलाफ 4 युद्ध लड़ने के कारण एक वर्ग टीपू का समर्थन करता है। बीजेपी और अन्य कई दक्षिणपंथी संगठन टीपू सुल्तान को मुस्लिमपरस्त और हिंदूविरोधी शासक के तौर पर पेश करते हैं। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार में टीपू सुल्तान की जयंती मनाने पर जमकर राजनीतिक बवाल हुआ था। टीपू के समर्थक वर्ग का यह भी कहना है कि बतौर शासक उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अंग्रेजों से लोहा लिया था।
कर्नाटक की सियासत में टीपू सुल्तान का रहा है स्थान बीजेपी टीपू सुल्तान जयंती और उनके नाम पर होनेवाले कार्यक्रमों का हमेशा ही विरोध करती रही है। दूसरी तरफ कांग्रेस और जेडीएस सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती पिछले साल मनाई थी। कर्नाटक की राजनीति में टीपू सुल्तान हमेशा किसी न किसी कारण चर्चा में रहे हैं। टीपू की जयंती मनाने के फैसले को भी बीजेपी ने एक समुदाय विशेष को खुश करने की कवायद करार दिया था। कांग्रेस का आरोप है कि टीपू जैसे देशभक्त और सामाजिक सुधारों के नायक को बीजेपी धार्मिक पहचान के कारण निशाना बनाती है।