उत्तर प्रदेश के कासगंज में गणतंत्र दिवस के दिन हिंसा भड़क उठी। इसके बाद दो समुदायों की ओर से फायरिंग हुई। 22 साल का अभिषेक गुप्ता (चंदन) जो बी.कॉम फाइनल ईयर का छात्र था, इस हिंसा की भेंट चढ़ गया।
दूसरी तरफ, लखीमपुर-खीरी में हार्डवेयर स्टोर चलाने वाले 35 वर्षीय अकरम हबीब को हिंसा में अपनी एक आंख गंवानी पड़ी। वह अपनी बेटी को दोनों आंखों से देख नहीं सके, जो हिंसा के अगले दिन इस दुनिया में आई।
रविवार (28 जनवरी) को अभिषेक के पिता, सुशील गुप्ता अपने घर के बाहर बैठ टीवी चैनल्स की कॉल्स का जवाब देते रहे। उनके घर नेता आते-जाते रहे। एक हाथ में बेटे की तस्वीर थी, जो पढ़ाई के लिए यूपी से बाहर जाने की तैयारी कर रहा था। किसी दक्षिणपंथी संगठन से अभिषेक के जुड़ाव से इनकार करते हुए सुशील ने कहा, ”तीन बच्चों में सबसे छोटाा था, मगर बिगड़ैल नहीं था। वह सोशल वर्क में एक्टिव था और अभी इधर एक एनजीओ शुरू कर लोगों की मदद कर रहा था। उसकी संस्था सर्दियों में कंबल बांटती और रक्तदान शिविर भी लगाती।”
गुप्ता ने कहा, ”जिंदगी के बहुत कम मकसद बचे हैं।” अभिषेक का शव तिरंगे में लपेटकर घर लाया गया और तब से परिवार उसे शहीद का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहा है। हालांकि पुलिस अधिकारियों ने कहा है कि अभी इस बात की पुष्टि नहीं हुई है कि अभिषेक हिंसा भड़काने वाली भीड़ का हिस्सा था या नहीं।
अलीगढ़ के जेएन मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में अपनी चोट सहला रहे हबीब कहते हैं कि वह और उनकी बेगम अभी तक अपनी बच्ची का नाम तक नहीं सोच सके हैं। हबीब गणतंत्र दिवस के दिन अपनी ससुराल, कासगंज आया था क्योंकि उसकी पत्नी अनम (27) की अगले दिन डिलीवरी होनी थी। हिंसा के बाद, उन्होंने अपनी कार में गांव के रास्ते निकलने की सोची ताकि भीड़ से सामना न हो।
हबीब ने बताया, मैंने कुछ लोगों से रास्ता पूछा। उन्होंने मेरी दाढ़ी देखी और मुझे मुसलमान जानकार पत्थरों और लाठियों से बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया। मेरे सिर पर बंदूक रख दी। उन्होंने मेरी जान केवल इसलिए बख्श दी क्योंकि उन्हें मेरी गर्भवती बीवी और मुझपर तरस आ गया। वह (अनम) इस दौरान चिल्लाती रही।” हबीब ने दावा किया कि पुलिस ने मदद नहीं की और उसे घायल होने के बावजूद अपनी पत्नी को खुद कार चलाकर अस्पताल पहुंचाना पड़ा।
हबीब ने कहा, ”मैंने कार की खिड़की के बाहर सिर निकाला और गाड़ी चलाने लगा। (जल रही संपत्तियों से उठता धुआं दृश्यता कम कर रहा था।) मुझे बड़ी मुश्किल से कुछ दिख रहा था। उस समय, मैं बस अपनी पत्नी को सही-सलामत बाहर निकाल ले जाना चाहता था।”
हबीब से उनकी बेटी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ”मैं खुश हूं कि मैं उसका चेहरा देख सका। और कुछ मायने नहीं रखता। मैं उनके लिए भी बद्दुआ नहीं देता जिन्होंने मुझ पर हमला किया।