नई दिल्ली : 17 महीनों के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार सोमवार को पठानकोट की विशेष अदालत ने जम्मू के चर्चित कठुआ गैंगरेप और मर्डर केस में अपना फैसला सुना दिया। फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने 7 आरोपियों में से 6 को दोषी माना और एक आरोपी को बरी कर दिया। कोर्ट ने सांझी राम, परवेश दोशी और दीपक खजुरिया को उम्रकैद की सजा सुनाई, जबकि हेड कांस्टेबल तिलकराज, असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर आनंद दत्ता और स्पेशल पुलिस ऑफिसर (एसपीओ) सुरेंद्र वर्मा को 5-5 साल की कैद और 50-50 हजार रुपए के जुर्माने की सजा दी। इस केस को उसकी मंजिल तक पहुंचाना आसान नहीं था। क्राइम ब्रांच की एसआईटी में शामिल अकेली महिला ऑफिसर श्वेतांबरी शर्मा ने इस बात का खुलासा किया कि केस की जांच के दौरान उनके सामने कितनी मुश्किलें आईं।
‘द क्विंट’ की खबर के मुताबिक, एसआईटी में शामिल अकेली महिला ऑफिसर श्वेतांबरी शर्मा ने बताया, ‘हमें लगता है कि उस आठ साल की मासूम बच्ची के रेप और हत्या में शामिल लोगों, उनके रिश्तेदारों और उनसे सहानुभूति रखने वालों, जिनमें बड़ी संख्या में वकील भी शामिल थे, उन्होंने इस केस की जांच को बाधित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वो लोग हमें परेशान करने के लिए अपनी पूरी हद तक गए, लेकिन हम इस केस की जांच में आखिर तक मजबूती से खड़े रहे। तमाम बड़ी मुश्किलों और बाधाओं के बावजूद हम लोगों ने केस की जांच जारी रखी। कई बार हमें निराशा हुई, खासकर उस वक्त जब हमें पता चला कि हीरानगर पुलिस स्टेशन के पुलिसकर्मियों को भी इस मामले को दबाने के लिए रिश्वत दी गई और उन्होंने सबूतों को नष्ट करने के लिए उस मासूम बच्ची के कपड़े तक धो दिए।’
जम्मू की रहने वालीं और जम्मू-कश्मीर पुलिस की क्राइम ब्रांच में डीएसपी के पद पर तैनात श्वेतांबरी शर्मा के मुताबिक, ‘इन मुश्किलों के बावजूद हमने नवरात्रों के दौरान बलात्कार और हत्या के इस रहस्य को सुलझाया। मुझे लगता है कि दोषियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने में भगवान भी हमारे साथ था। मेरा मानना है कि हमारे सिर पर मां दुर्गा का हाथ था। इस मामले में ज्यादातर आरोपी मेरी ही जाति के थे, इसलिए उन्होंने विशेष रूप से मुझे प्रभावित करने की कोशिश की। उन लोगों ने अलग-अलग तरीकों से मुझ तक ये बात पहुंचाई कि देखो हम एक ही धर्म और एक ही जाति के हैं, इसलिए मुझे उन्हें एक मुस्लिम लड़की के बलात्कार और हत्या का दोषी नहीं बनाना चाहिए।। मैंने उन्हें बताया कि जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक अधिकारी के रूप में, मेरा कोई धर्म नहीं है और मेरा एकमात्र धर्म मेरी पुलिस की वर्दी है।’
जम्मू कश्मीर पुलिस में 2012 बैच की अधिकारी श्वेतांबरी शर्मा ने आगे बताया, ‘जब उन लोगों की ये सारी रणनीतियां काम नहीं आईं तो उनके परिवार और उनसे सहानुभूति रखने वाले लोगों ने जांच को प्रभावित करने के लिए ब्लैकमेलिंग और धमकी का सहारा लिया। उन्होंने लाठियां चलाईं, नारे लगाए, तिरंगे के नीचे रैलियां कीं, गांवों में अलग-अलग सड़कों पर हमारा रास्ता रोका और आखिरकार कोर्ट में भी हमें रोकने की कोशिश की। इसके बावजूद हम लोगों ने पूरी दृढ़ता और धैर्य के साथ अपने काम को अंजाम दिया। इस केस में सबसे भयावह वक्त तब आया, जब मुझे सभी आरोपियों से उस बच्ची के बलात्कार और हत्या के बारे में पूछताछ करनी पड़ी, जो मेरे अपने बच्चे की उम्र की थी।’
डीएसपी श्वेतांबरी शर्मा ने बताया, ‘आरोपियों की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान, हम इस केस से जुड़े सबूत देने के लिए अदालत पहुंचे, तो वकीलों ने आरोपियों की तरफ से बहस करने के बजाय, 10-20 वकीलों की भीड़ के रूप में विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि हम अभियुक्तों का नाम लें, जबकि वो जानते थे कि हम ऐसा नहीं कर सकते थे। कोर्ट के बाहर हमें बार-बार हमारी दुश्मन बनी भीड़ का सामना करना पड़ा। हमने उन लोगों को कुछ नहीं कहा, केवल एसएचओ से एफआईआर दर्ज करने की गुजारिश की। जब उन्होंने एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया तो हमने अपने एसआईटी हेड के जरिए जिला मजिस्ट्रेट से संपर्क किया। उस वक्त चारों तरफ अराजकता और डर का माहौल था।’
उस मुश्किल वक्त को याद करते हुए श्वेतांबरी शर्मा ने बताया, ‘मेरी आंखों की नींद उड़ चुकी थी। मैं रात-रात भर जागती थी। मैं अपने बच्चे की भी ठीक से देखभाल नहीं कर सकी, जिसकी उस वक्त परिक्षाएं चल रहीं थी। लेकिन… भगवान का शुक्र है कि हम अपनी ड्यूटी निभाने में सफल रहे और मैं संतुष्ट हूं कि मैंने, मेरी टीम के बाकी सदस्यों के साथ उन बलात्कारियों और हत्यारों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए कुछ किया। हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। हम सभी को उम्मीद थी कि न्याय जरूर मिलेगा क्योंकि हमारी जांच पूरी तरह पुख्ता थी।’ आपको बता दें कि पिछले साल 10 जनवरी को आठ साल की बच्ची का अपहरण किया गया था। बच्ची के साथ लगातार चार दिनों तक सामूहिक बलात्कार किया गया, बाद में उसकी हत्या कर दी गई। इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पठानकोट स्थानांतरित कर दिया गया था। घटना के करीब 17 महीने बाद कोर्ट ने इस केस में फैसला सुनाया है।