खंडवा : जब दो घोडियो पर सवार होकर दो दुल्हने हाथो में तलवार थामे बारात लेकर निकली तो यह दृश्य देखकर लोग ठिठक गए।
दरअसल महिलाओं को कार, मोटरसाईकल चलाते देख लोगो को कौतुहल नहीं होता, वो इसके अभ्यस्त हो गए है लेकिन बेटियां यदि घोड़े की सवारी करे तो जरूर लोगो की नज़रे ठहर जाती है।
खण्डवा में पाटीदार समाज के लिए यह कोई नई बात नहीं ,यह उनकी परंपरा का हिस्सा है लेकिन आम लोगो के लिए जरूर यह बात नई है।
खण्डवा में साक्षी और सृष्टि पाटीदार जब कल जब दूल्हों की तरह हाथो में तलवार थामे घोड़ी पर सवार होकर अपनी बारात लेकर निकली तो यह दृश्य लोगो के लिए अज़ूबा हो गया।
दरअसल आम लोगो ने लड़कियों को सिर्फ फिल्मो में ही घोड़े की सवारी करते देखा है चाहे वो पद्मावत हो या मणिकर्णिका। इसलिए खण्डवा जैसे कस्बाई मानसिकता के शहर के लिए यह दृश्य कुछ अलग था। राहगीर यह दृश्य देखते ही रुक गए लेकिन बारातियो को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
साक्षी और सृष्टि भी इस घुड़सवारी का भरपूर आनंद लेते दिखी। वे घोड़ी बैठकर हाथो में तलवार थामे नाचती रही। ईधर बाराती भी झूमकर नाच रहे थे।
कल हमारे परिवार में दो बेटियों की शादी हुई है जिसमे एक है साक्षी जिसकी शादी आनंद पाटीदार से हुई है और दूसरी सृष्टि जिसकी शशांक पाटीदार हुई है। दोनों लड़कियों का प्रोसेशन निकाला गया तो हमारे लिए तो कुछ नया नहीं था लेकिन लोगो के लिए थोड़ा कौतुहल का विषय था। हमारे समाज में जब भी बारात निकलती है तो हम बेटे-बेटियों को एक सा दर्जा देते है और दोनों ही घोड़ो पर सवार होकर मंडप तक पहुँचते है।
हमारे समाज में सभी अग्रसर सोच वाले लोग है कल की जो शादी थी वः पूर्णतः बिना दहेज़ की शादी थी। ये परंपरा हमारे समाज में बरसो से चली आ रही है। हम इसी परम्परा का आज भी पालन कर रहे है।
लोगो के लिए यह कौतुहल का विषय है लेकिन हमारे यहाँ यह कोई नई बात नहीं है। हमारे यहाँ तो हर शादी में बेटियों को घोड़ी पर बैठाकर ही मंडप में ले जाते है।
पाटीदार समाज में यह परंपरा भले पुरानी है लेकिन यह अन्य समाज के लिए एक सबक भी है। बेटे-बेटियों को एक सा दर्ज़ा देने का जो यह प्रयास है उसे सभी अपना ले तो बेटियों को अपना हक मांगने फिर सड़को पर नहीं उतरना पड़ेगा।