मै एक भारतीय हूँ और स्वभाव से थोडा जिद्दी भी। मेरे देश की मिट्टी का हमेशा से इतिहास रहा है कि यह जिद्दी पैदा करती है। आज मै आपका साक्षात्कार भारत के ऐसे कुछ ज़िद्दियों के साथ करवाने जा रहा हूँ जिन्होंने सिर्फ अपनी जिद्द से न केवल भारत बल्कि पुरे विश्व का इतिहास बदल कर रख दिया। क्या जिद्द के माध्यम से कुछ हासिल किया जा सकता है? क्या जिद्द आज भी कारगर हथियार है? मुझे नहीं पता कि जिद्द सही होती है या गलत। यह निर्णय मै आप पर छोड़ता हूँ, लेकिन इतना जरूर कहना चाहूँगा की अगर जिद्द सही है तो हमे भी कोई ना कोई जिद्द करनी चाहिए।
चाणक्य जिद्दी था तो नन्द वंश को ख़त्म कर गुप्त साम्राज्य की स्थापना की और जब तक नन्द वंश को ख़त्म नहीं कर दिया अपने केश नहीं बांधे, न चाणक्य जिद्दी होते और न ही इतिहास रचा जाता।
झाँसी कि रानी जिद्दी थी इसलिए कभी भी अंग्रेजों की हुक्म्बर्दारी नहीं की, अपने तथा झाँसी के सम्मान के लिए निडरता से लडती रही और अंग्रेजी साम्राज्य को चुनौती दी। भगत सिंह ने जब जेल में भूख-हड़ताल शुरू की, तो तब तक नहीं रुके जब तक अंग्रेजों से अपनी सारी मांगें पूरी न करवा लीं, शहीद हो गए लेकिन देश को आज़ाद करने कि जिद्द पर अड़े रहे। सोहनी- महिवाल का प्यार और एक दूसरे से मिलने की जिद्द में ही सोहनी कच्चे मटके के साथ ही पानी में उतर गई, महिवाल तो नहीं मिला लेकिन दोनों ने प्यार की नई परिभाषा लिख डाली। रत में ऐसे हजारों जिद्दी पैदा हुए और आज भी हैं जिनका नाम अगर में लिखने जाऊं तो शायद कलम कि स्याही ख़त्म हो जाये लेकिन नाम नहीं। इसलिए मेने सिर्फ कुछ का ही नामो का उल्लेख इस लेख में लिया है ।
महात्मा गाँधी जिद्दी थे। गाँधी जी ने जिद्द की तो चंपारन में अंग्रेजों को घुटने टेकने पड़े, असहयोग आन्दोलन से पूरे देश को एकजुट कर अंग्रेजों का वर्चस्व हिला कर रख दिया। गाँधी जी ने जिद की तो नमक सत्याग्रह पर निकल गए, जिद्दी थे इसलिए नंगे पाँव निकल गए, जिद्द थी इसलिए कपडे त्याग दिए। जिद्दी थे इसलिए स्वदेशी को आधार बनाकर अंग्रेजी शासन की जडें काट डाली, जिद्द थी इसलिए अनशन पर बैठे और अपनी इसी जिद्द कि वजह से उन्होंने भारतीयों में एकजुटता कर अंग्रेजों को देश से निकालने में कामयाबी पाई। अपने इस जिद्दीपन से ही गाँधी जी ने अंग्रेजों को कई बार
घुटने टेकने के लिए मजबूर किया! जिद्दी थे, इसलिए स्वतंत्रता के दिन किसी भी कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लिया।
जब-जब गाँधी जी ने अन्याय और कुछ बदलाव की सोची तब तब उन्होंने एक जिद्द पाली और उसे शिद्दत से निभाया । आज हम कूड़े के ढेर पर बैठे हैं, पर्यावरण बदलाव और ग्लोबल वार्मिंग आज पूरी दुनिया के लिए चिंता का सबसे बड़ा विषय है । भारत के कई राज्य सिर्फ गैस के एक चैम्बर जेसे बन कर रह गए हैं, पीने को पानी नहीं है।
हर भारतीय किसी न किसी बीमारी से जूझ रहा है चाहें वह शारीरिक हो, मानसिक हो या फिर सोशल मीडिया की बीमारी हो। लोगों में गुस्सा और आक्रामकता अपने चरम पर है, भाईचारा सिर्फ किताबों में रह गया है ! देश का युवा पहले से ज्यादा देशभक्त है और हर मुद्दे पर अपनी आवाज़ उठाता है लेकिन सिर्फ फेसबुक और वाट्सऐप पर, और बाकी बची सारी निंदा ट्विटर पर ही हो जाती है। कॉफ़ी शॉप में बैठकर हम भारत के हालातों पर चर्चा कर तो रहे हैं लेकिन परिणाम बहुत ज्यादा बेहतर नहीं है ।
गाँधी जी कहा करते थे कि खुद वो बदलाव बनिए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं। वह सब काम पहले स्वयं से किया करते थे। कभी भी गाँधी जी ने किसी काम को छोटा या बड़ा नहीं समझा, वह झाड़ू लगाया करते थे, खाना पकाया करते थे, पेड़-पौधों और जानवरों का स्वयं से ध्यान देते थे और यहाँ तक वह पाखाना भी खुद ही साफ़ किया करते थे ! साफ हवा, साफ पानी, प्रदूषण इत्यादि हमारी समस्याए है और उनसे हमको अपने व्यक्तिगत स्तर पर ही लड़ना होगा । अंत में, में हर एक देशवासी से यह कहना चाहता हूँ कि हम थोड़ी सी जिद्द करें इस कूड़े के ढेर को खत्म करने की ।
हमे थोड़े सी जिद्द करनी चाहिए ताकि हम अपने देश और संसार को गैस का चैम्बर बनने से रोक सकें। जिद्द करें धरती में वापस पानी भेजने की, जिद्द करें प्लास्टिक न इस्तेमाल करने की, सड़क नियमों का पालन करने कि और गंदगी न फैलाने की। आइये जिद्द करें खुद को बदलने की, और फिर देखिये कि आपकी वह जिद्द कैसे देश और फिर संसार की जिद्द बन जाती है ।
एक जिद्दी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को मेरा नमन
प्रेषक – अजय गुप्ता
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