करनाल [ TNN ] अरबों रुपए के फर्जी भूमि आबंटन घोटाले के तौर पर घिरे एच.सी.एस अधिकारी गिरीश अरोड़ा (ए.डी.सी करनाल) और कुलधीर सिंह, दो ऐसे अधिकारी है, जो भू-माफिया के लिए सरंक्षक साबित होते रहे। इस मामले में अब सभी तथ्य पुलिस तफतीश में मुखर होकर सतह पर आ गए हैं। करनाल में उपमंडल अधिकारी (नागरिक) एवं अलाटमैंट के तौर पर तैनात रहते इन अधिकारियों ने अपने कार्यकाल के दौरान तब कानून से खिलवाड़ जारी रखा, जब मुख्यमंत्री उडनदस्ता सैंकड़ों एकड़ सरप्लस कृषि भूमि के फर्जी आबंटन घोटाले की जांच में मशगूल था।
अग्रेरियन अथोरिटी का पूरा अमला इस जांच से वाकिफ होने के बावजूद मनमानी पर उतारू रहा। दूसरी ओर जिला पुलिस अधीक्षक अभिषेक गर्ग द्वारा नवगठित स्पेशल पुलिस टीम ने पूरे घोटाले पर अपनी कार्रवाई तेज कर दी है। इस विशेष पुलिस टीम का नेतृत्व डी.एस.पी इंद्री कर रहेे हैं। टीम ने आज डेरे पर जाकर मौका मुआयना भी किया। यहां यह उल्लेखनीय है कि करनाल में अपने कार्यकाल के दौरान उपरोक्त अधिकारियों गिरीश अरोड़ा और कुलधीर सिंह ने घोटाले के प्रति कतई सजगता और गंभीरता नहीं बरती। इन अधिकारियों ने अपने पूर्ववर्ती अधिकारी भूपेन्द्र सिंह के आदेशों तक को मनमाने तरीकों से औंधेमुंह दे मारा। सूत्रों के अनुसार भूपेन्द्र सिंह ने उक्त घोटाले को रोकने के लिए निगदू-पस्ताना स्थित धार्मिक डेरे की सरप्लस घोषित सैंकड़ों एकड़ बेशकीमती जमीन की खरीद-फरोख्त पर रोक आदेश जारी कर रखा था ताकि भू-माफिया अपना नंगा-नाच जारी न रख सके। हालांकि इस दौरान फर्जी आबंटन घोटाले की मुख्यमंत्री उडनदस्ते द्वारा उच्च स्तरीय जांच जारी थी।
यहां यह गौरतलब है कि एच.सी.एच अधिकारी कुलधीर सिंह शिक्षक भर्ती घोटाले में दोषी के तौर पर सजायाफ्ता इनैलो नेता शेर सिंह बड़शामी के पुत्र हैं। इन्हीं नेता पुत्र अधिकारी ने करनाल में अपनी तैनाती के दौरान बेहद अतार्किक तरीके से घोटाले में संलिप्त भू-माफिया को क्लीन चिट दे डाली थी। साथ ही फर्जी भूमि आबंटन घोटाले को यह कहते हुए अपनी कलम से कानूनी मान्यता प्रदान कर दी कि यह मामला दस साल पुराना हो चुका है, जो कि भू-माफिया को बचाने के लिए खुद में हैरतंगेज तर्क था। विश्वस्त खोजी सूत्रों के मुताबिक कुलधीर सिंह के गुमराहपूर्ण एवं अतार्किक आदेश को ही आधार बनाकर करनाल के तत्कालीन एस.डी.एम एवं वर्तमान ए.डी.सी गिरीश अरोड़ा ने पूर्ववर्ती एस.डी.एम भूपेन्द्र सिंह के रोक आदेश के बेखौफ होकर समाप्त कर डाला था। उनके इन्हीं विवादित आदेशों से रोक आदेश समाप्त होने पर भू-माफिया ने फर्जी अलाटमैंट के जरिये हथियाई गई करोड़ों रुपए की कीमती जमीनों को धड़ल्ले से बेच डाला। यही नहीं, बल्कि ए.डी.सी गिरीश अरोड़ा करनाल में एस.डी.एम रहते हुए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय को भेजे गए सरकारी जवाबदावे में भी घोटाले सम्बंधी तथ्यों को छुपाते रहे हैं।
अपने सरकारी जवाबदावे में अरोड़ा ने घोटाले में प्रमुख भू-माफिया के खिलाफ कहीं भी इस तथ्य का खुलासा नहीं किया कि उसे मुख्यमंत्री उडनदस्ता अपनी जांच में गंभीर प्रकृति का दोषी ठहर चुका है। ए.डी.सी करनाल एक तरह से उच्च न्यायालय को भी गुमराह करने के आरोपी हैं। उक्त सरकारी जवाबदावे में गिरीश अरोड़ा अतीत में मीडिया को यही कहते रहे हैं कि उनका कार्यालय मुख्यमंत्री उडनदस्ते की रिपोर्ट से अधिकारिक तौर पर वाकिफ नहीं रहा है। इसलिए ही उन्होंने सरकारी जवाबदावे में इस रिपोर्ट का जिक्र भू-माफिया के खिलाफ नहीं किया। यहां यह काबिलेगौर है कि गिरीश अरोड़ा की करनाल में एस.डी.एम के पद पर तैनाती से पहले तत्कालीन उपायुक्त नीलम प्रदीप कासनी अपने एक न्यायिक फैसले के मुताबिक मुख्यमंत्री उडनदस्ते की रिपोर्ट से अवगत थी।
कलैक्टर अग्रेरियन के रूप में उपायुक्त की प्रशासनिक शक्तियों और कार्यो का निपटारा एस.डी.एम कार्यालय द्वारा ही किया जाता है। इस तथ्य से यह स्वत: ही प्रमाणित है कि करनाल में एस.डी.एम रहते हुए ए.डी.सी गिरीश अरोड़ा मुख्यमंत्री उडनदस्ते की रिपोर्ट से वाकिफ थे। बावजूद इसके उन्होंने उच्च न्यायालय को भेजे गए अपने सरकारी जवाबदावे में भू-माफिया के खिलाफ रिपोर्ट का कोई जिक्र नहीं किया। उलटा भू-माफिया के पक्ष में ही फर्जी अलाटमैंट को रद्द करने सम्बंधी दावे को डिस्मिस करने की गुजारिश कर डाली थी।
बदनाम करने की की जा रही है साजिश : गिरीश अरोड़ा
करनाल के मिनी सचिवालय में आज हुई पत्रकारवार्ता के दौरान ए.डी.सी गिरीश अरोड़ा से पत्रकारों ने उपरोक्त भूमि आबंटन मामले को लेकर इन तथ्यों सम्बधित सवाल किए तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। बल्कि यह कहा कि मुझे बदनाम करने की साजिश की जा रहा है।
रिपोर्ट -अनिल लाम्बा