प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यपद्धति के बारे में अब शिकायतें आने लगी हैं। कुछ मंत्रियों को अनाम उद्धृत करते हुए एक अंग्रेजी अखबार ने गंभीर सवाल उठाया है। उसका कहना है कि मंत्रिमंडल की बैठकों में जिन मुद्दों पर बहस होती है, उनमें मंत्रिगण ठीक से भाग ही नहीं ले पाते, क्योंकि बहस के मुद्दों को ऐन बैठक के कुछ घंटे पहले ही उन्हें बताया जाता है। यदि मंत्रिमंडल की बैठक सुबह होनी है तो उसके एक रात पहले उन्हें सूचना दी जाती है। यदि बैठक शाम को होनी है तो विषय सूची उनको दोपहर को भेजी जाती है। किन्हीं अनाम मंत्रियों का कहना है कि ऐसा होने पर सिर्फ एक-दो मंत्री ही बहस में भाग लेते हैं। शेष सबका काम चुप बैठे रहना होता है या सिर्फ हाथ उठा देना होता है।
इस खबर का मन्तव्य क्या है? यह है कि मोदी की कार्यपद्धति मंत्रिमंडलीय नहीं है, राष्ट्रषत्यात्मक है, एकाधियत्यवादी है, जो अंततोगत्वा इंदिरा गांधी शैली में परिवर्तित हो सकती है। यह आशंका इसलिए भी बलवती हो गई है कि भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह हैं। प्रधानमंत्री और अध्यक्ष गुरु-चेला है। शक यह है कि दोनों मिलकर सरकार और पार्टी पर एकाधिकार कर लेंगे और संसदीय प्रणाली धीरे-धीरे लुप्त होती चली जाएगी।
इस दृष्टिकोण को हम एकदम निराधार नहीं कह सकते लेकिन मोदी की तथाकथित तानाशाही का दूसरा पहलू भी है। अक्सर मंत्रिमंडल के विचारणीय विषय अफसरों, अखबारों, टीवी चैनलों में पहले से फूट निकलते हैं। उसके परिणामस्वरुप न सिर्फ निर्णयों में विलंब होता है बल्कि अनावश्यक दबावों का माहौल बन जाता है। अलग-अलग लाॅबियां अपने स्वार्थों की रक्षा के लिए अनैतिक साधनों का उपयोग करती हैं। गोपनीयता चूर-चूर हो जाती है। तत्काल बहस के कारण गोपनीयता तो बनी ही रहती है, सारे फैसले शुद्ध गुण-दोष के आधार पर होते हैं।
जहां तक मंत्रियों की तैयारी का सवाल है, उन्हें लगभग सभी राजनीतिक महत्व के मुद्दों पर सदा तैयार रहना चाहिए। मोदी की यह कार्यपद्धति उन्हें सरकार के सारे काम-काज और नीतियों के बारे में सदा सतर्क रहने के लिए मजबूर करेगी। जो बात उन्हें अनुचित लगे, उसे बैठक में सबके सामने लाया जाना चाहिए। बस इस पद्धति से काम करने का खतरा यही है कि नेताओं पर कहीं नौकरशाही सवारी न करने लगें।
:- वेद प्रताप वैदिक