केरल के पुत्तिंगल देवी मंदिर में आतिशबाजी के दौरान हुए हादसे में सौ से अधिक लोगों की जानें गईं और सैकड़ों लोग घायल हैं। लगता है देश में सबसे सस्ता कुछ है तो वो है आदमी की जान। शायद तभी इन जानों की चिंता किसी को नहीं। होती तो केरल के पुत्तिंगल मंदिर में आगजनी और भगदड़ में इस तरह की मौतें नहीं होतीं। न ही लोगों को घायल हो कर अस्पतालों में शरण लेनी पड़ती।
पुत्तिंगल मंदिर में हुआ हादसा देश में हुआ पहला हादसा नहीं है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि हम कभी भी पूर्व में हुए हादसों से सीखने की कोशिश नहीं करते। देश के अनेक मंदिरों में कार्यक्रम होते हैं। वहां परंपराएं निभाने में भीड़ को देखते हुए सख्त अनुशासन की आवयश्कता होती है। इन मामलों में हम बातें तो अनुषासन की बहुत करते हैं लेकिन जब उसे खुद पर ही लागू करने बात आती है तो सबसे पीछे नजर आते हैं।
यही नहीं हम चाहते हैं कि अनुशासन तोड़ने में पुलिस और प्रशासन सहयोग भी करे। फिर, स्थिति बिगड़ जाए तो उसकी जिम्मेदारी पुलिस और प्रशासन पर डाल देने की परिपाटी सी बन गई है। आए दिन मंदिरों, धार्मिक स्थलों पर होने वाली भगदड़ और बदइंतजामी को ले कर सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में केंद्र और राज्य सरकारों से प्रतिक्रिया मांगी थी।
कोर्ट ने भीड़ वाली जगहां पर भगदड़ से बचने के लिए भीड़ प्रबंधन और सख्त सुरक्षा प्रबंधन के बारे में पूछा था। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीष पी.सदाषिवम के नेतृत्व वाली बेंच ने केंद्र और राज्य सरकारों को इस संबंध में नोटिस जारी किए थे।
पिछले एक दशक में मंदिरों में हुए हादसों पर नजर डाली जाए तो एक बात ही समान नजर आती है। वो ये कि हजारों की तादाद में जुटने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ को काबू में करने का कोई प्रबंध मंदिर समितियों के पास नहीं होता। राज्य सरकारों के भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा के दावों के बीच किसी न किसी राज्य में धार्मिक प्रतिष्ठानों में भगदड़ की खबरें आती रहती हैं। कहीं लोग घायल होते हैं तो कहीं जान गंवानी पड़ती है।
हैरत की बात है कि जिन राज्यों में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, वे तत्काल कोई सबक भी नहीं सीखते। वहां ऐसे हादसे फिर होते हैं और फिर लोग बेमौत मारे जाते हैं। केरल, मध्य प्रदेश जैसे राज्य इसके उदाहरण हैं। पुत्तिंगल मंदिर में हादसे के बाद प्रधानमंत्री से ले कर तमाम मंत्री और अधिकारी जायजा लेने वहां पहुंच गए। लेकिन उनकी ये कवायद क्या मरे लोगों की जिंदगी वापस लौटा सकती है? क्या नेताओं के इन दौरों को सिर्फ दिखावा नहीं माना जाए? सुप्रीम कोर्ट के निर्देषों पर अमल नहीं करने वाली सरकारों के पास हादसा स्थल पर जाने के लिए समय कैसे निकल आता है?
मंदिरों में जुटने वाली भीड़ पर नियंत्रण रखने का काम सरकार और मंदिर प्रबंधन का है। पुत्तिंगल मंदिर हादसे ने एक बार फिर जोधपुर के मेहरानगढ़ किला, उत्तर प्रदेष के इलाहाबाद कुंभ, झारखंड के देवगढ़ हादसा, आंध्र प्रदेश के राजमुंद्री, मध्य प्रदेश के दतिया हादसा, केरल के शबरीमला हादसा, उत्तर प्रदेष के प्रतापगढ़ हादसा, महाराष्ट्र के मंथरा देवी मंदिर और हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में हुए हादसों की याद ताजा कर दी है। इन हादसों का मूल कारण भी भगदड़ ही रहा था। दुख की बात तो यही है कि बार-बार होने वाले हादसों के बाद भी कोई सबक लेने को तैयार नहीं।
एक बड़ा मुद्दा सभी धर्मस्थलों पर सबक लेने का है। धार्मिक समारोहों या तीर्थ के अवसरों पर ऐसी दुखद घटनाएं साल में कई बार दोहराई जाने वाली कहानी बन गई हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन्हें कुछ दिनों के अंदर ही भुला दिया जाता है। बहरहाल, अब जबकि उज्जैन में सिंहस्थ महापर्व के लिए मध्य प्रदेश सरकार तैयारियों में जुटी है, उसे जरूर सीख लेनी चाहिए। सबक यही है कि सुरक्षा नियमों का हर हाल में सख्ती से पालन हो। बाद में छाती पीटने से बेहतर है एहतियाती सावधानी बरतना।
आपदा प्रबंधन के जानकार मानते हैं कि किसी भी धार्मिक और पवित्र स्थान पर भीड़ जमा होने से पहले पुलिस और स्थानीय प्रशासन को मिल कर एक माॅक ड्रिल कर लेनी चाहिए। जहां संकरा रास्ता हो या भीड़ जमा होने का संदेह हों, वहां खास ध्यान रखा जाए। फिर आयोजन वाले दिन सही तरीके से भीड़ पर नियंत्रण हो और भीड़ का प्रवाह सतत बनाए रखा जाए। इससे भगदड़ से होने वाले हादसों से बचा जा सकता है।
मंदिर परिसर में एक समय में एक स्थान पर कितने लोग रहें, इसकी पहले ही पुख्ता व्यवस्था होनी चाहिए। कब-कब कार्यक्रम होंगे, उसमें कौन लोग उपस्थिति रहेंगे, इसके पास दिए जाने चाहिए। कार्यक्रम स्थल तक पहुंचने के लिए पर्याप्त बेरिकेड्स होने चाहिए। आग लगने की स्थिति में लोगों की संख्या और कार्यक्रम स्थल के फैलाव को देखते हुए दमकलों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
सर्पीले आकार में पंक्तियां बनें, वैकल्पिक रास्ते बनाए जाएं। गंभीर स्थिति में वीआईपी प्रवेश रोकें। आपात निकासी द्वार निर्बाध हों लेकिन आपात स्थिति में काम में आएं। सुचारू बिजली आपूर्ति व्यवस्था हो। वाहनों, अकेले पैदल चलने वालों और समूह में चलने वालों के लिए अलग से व्यवस्था की जाए। आपात परिस्थिति के लिए चिकित्सा सुविधाओं के पर्याप्त इंतजाम हों। सुरक्षा एजेंसी आयोजकों के साथ तैयारी से पहले ही संपर्क में रहे और बाद में भी संपर्क की पुख्ता व्यवस्था रखे। योजनाएं , भीड़ प्रबंधन, लोगों की पहचान के बारे में जानकारी हासिल करती रहे।
अक्सर देखने में आता है कि कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति कार्यक्रम स्थल पर आता है तो उसके साथ अपेक्षा से अधिक लवाजमा साथ चलता है। ऐसे में आमजन को परेशनी उठानी पड़ती है। भीड़ एकत्र होने लगती है और ऐसे में यदि कोई हादसा हो जाए तो भगदड़ मच जाती है जिससे और अधिक परेशानी बढ़ती है। भीड़ को यदि नियंत्रित करना है तो वैष्णो देवी स्थल के प्रबंधन से सीखना चाहिए। यात्रियों की निर्धारित संख्या के आधार पर निर्धारित समय पर मंदिर की ओर जाने की अनुमति दी जाती है। यह सब हादसों को टालने के मकसद से ही किया जाता है।
लेखक – नरेन्द्र देवांगन
नरेन्द्र देवांगन पोस्ट – खरोरा 493225
जिला-रायपुर (छ.ग.) मो. . 9424239336
Hindu temples in India