समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान पर लगे तमाम आरोपों के बीच एक हैरान करने वाला इल्जाम नवाबी मदरसे से किताबों की चोरी का है। हैरानी इसलिए, क्योंकि एक तो यह आरोप मदरसे से किताबों की चोरी का है, दूसरे आजम इस जमाने में शायद पहले राजनेता हैं, जिन पर किताब चोरी का सार्वजनिक इल्जाम है।
आरोप कितना सही है, कहना मुश्किल है, लेकिन नेता किताबें भी चुरा सकते हैं, यह बात ही अपने आप किताबी और दिलचस्प लगती है। क्योंकि अपने मुल्क में ज्यादातर नेताओ का पढ़ने-लिखने से वास्ता कम ही रहता है। उस पर किताबों के लिए बेजा मशक्कत। ऐसे में आजम खान चोरी का इल्जाम उठाने की हद तक अपनी यूनिवर्सिटी की लायब्रेरी को समृद्ध करते रहे हैं तो यकीनन वे किताबों के शौकीन हैं। चाहे वो कैसे भी और कहीं से भी मिले।
आजम खान पर यूं तो कई आरोप हैं, लेकिन किताब चोरी के इल्जाम ने उन्हें अलग और ‘जहीन’ नेताओ की पांत में ला खड़ा किया है। कल तक उन्हें केवल अपनी विवादास्पद या बेहूदा टिप्पणियों के लिए जाना जाता था।
राजनीतिक कारणों से बीजेपी आजम खान को हर एंगल से घेर रही है। उन्हें ‘विलेन’ साबित करने की कोशिशें भी हो रही हैं। लेकिन सियासी तौर पर उन्हें निपटाने का यह मामला किताबों और लायब्रेरी तक भी जा पहुंचेगा, किताबों से सुरक्षित दूरी बनाए रखने वाले इस देश ने शायद ही सोचा था।
आरोप यह है कि यूपी के रामपुर से सपा सांसद आजम खान उनकी अपनी मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी की मुमताज लाइब्रेरी में रखी किताबों में बड़ा योगदान शहर के प्राचीन मदरसा आलिया की किताबों का है। यह मदरसा नवाबों के जमाने का है। बताया जाता है कि आजम खान ने मदरसे की इमारत अपने जौहर ट्रस्ट के नाम करा ली और मदरसा बंद करा दिया। लिहाजा कई किताबों को भी अपना ठिकाना बदलना पड़ा। वो जौहर यूनिवर्सिटी में छात्रों का ज्ञान बढ़ाती नजर आईं।
मामले के खुलासे के बाद मदरसे के प्रिंसिपल ज़ुबेर खान ने संस्था की दुर्लभ किताबों और पुरानी पांडुलिपियों की चोरी की रिपोर्ट लिखवाई। इसके बाद पुलिस ने दावा किया कि उसने जौहर यूनिवर्सिटी की मुमताज लाइब्रेरी से 100 से ज़्यादा चोरी की पुरानी किताबें और पांडुलिपियां बरामद की हैं। उन पर पुराने जमाने की मोहरें और मदरसा आलिया की निशानियां मौजूद हैं। हालांकि इस बारे में जौहर यूनिवर्सिटी के फैकल्टी डॉ गुलरेज़ निज़ामी का कहना है कि पुलिस यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन को बताए बिना यूनिवर्सिटी में घुसी और काफी सारी किताबें पुलिस अपने साथ उठाकर ले गई।
उधर पुलिस को अभी और चोरी की किताबें यूनिवर्सिटी से बरामद होने की आशंका है। उसने इस मामले में पांच कर्मचारियों को हिरासत में लिया है। मामले की जांच जारी है। वैसे आजम खान पर भूमाफिया होने के भी आरोप हैं।
बहरहाल आजम खान ने ये किताबें खुद चुराईं या उनकी लायब्रेरी के लिए किसी और ने चोरी कीं, या वे किताबें कोई दे गया, यह जांच का विषय है। वे खुद किताबों के कितने शौकीन हैं, पता नहीं, लेकिन वो मदरसे की किताबों से अपनी यूनिवर्सिटी की लायब्रेरी को समृद्ध जरूर करना चाहते थे। ऐसा मान लेने में हर्ज नहीं है।
यूं चोरियों के तमाम प्रकारों में किताबों की चोरी एक तरह से वीआईपी किस्म की चोरी है। इसे करने वाले भी खास तरह के लोग होते हैं। आम चोरों का ध्यान रूपए-पैसे, सोने-चांदी इत्यादि पर होता है। किताबों में ( रद्दी में बेचने के अलावा )ऐसा कुछ नहीं होता कि उसे सिक्कों में बदला जा सके। फिर भी लोग अगर किताबें चुराते हैं तो यह एक तरह का मनोरोग है।
अंग्रेजी में इसे बिबलियोक्लेप्टोमेनिया कहते हैं। इस रोग से पीडि़त लोग लायब्रेरियों, पुस्तक मेलों, दोस्तों परिचितों के घरों और किताबों की दुकानों से किताबें उड़ाने मे माहिर होते हैं। किताब देखते ही उनके मन में उसे चुराने के भाव का संचार होता है और वे पुस्तक चुराए बगैर नहीं रह सकते। चोरी से किताब हासिल करना शायद उन्हें अलग तरह की संतुष्टि देता है। दो साल पहले दिल्ली पुस्तक मेले में किताबों की चोरी रोकने के लिए प्रकाशकों ने खास हाइटेक इंतजाम किए थे, उसके बावजूद किताबें चोरी हुईं। एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा चुराई जाने वाली किताब ‘गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड है।
कहते हैं कि फरहाद हाकिमजादे नामक एक ईरानी व्यवसायी ब्रिटिश लायब्रेरियों की दुर्लभ पुस्तकों से पन्ने फाड़कर अपनी किताबों में लगा लेता था, ताकि उनका संग्रह मूल्य बढ़ाया जा सके। उसके द्वारा चुराए गए पन्नो में एक दुर्लभ पुराना नक्शा भी था, जिसका बाजार मूल्य 42 हजार डॉलर बताया जाता है। इसी तरह दुनिया में पुस्तक चोरी के इतिहास में एक चर्चित नाम डॉ. इलाय पिचलर नामक जर्मन धर्मशास्त्री का आता है, जिसने पीटर्सबर्ग की रूसी लायब्रेरी से दो साल में 4 हजार किताबें चुरा लीं थीं।
19 वीं सदी में ब्रिटेन में किताब चुराना इतना गंभीर अपराध था कि ऐसे लोगों को बतौर सजा आस्ट्रेलिया भेज दिया जाता था। हाल के वर्षों में अमेरिका में सबसे बड़े किताब चोर के रूप में स्टीफन कैरी ब्लूमबर्ग का नाम आता है, जिसने अमेरिका और कनाडा की लायब्रेरियों से 10 लाख डॉलर मूल्य के बेशकीमती नक्शे पार कर दिए। इसके लिए उसने फर्जी आईडी का इस्तेमाल किया।
जानकारों के मुताबिक किताबें चुराना चौर्य कलाओ में सबसे ज्यादा स्वार्थी चोरी है, जिसका इतिहास भी किताबों जितना ही पुराना है। खास बात यह है कि किताबों की चोरी बौद्धिक संपदा की चोरी है और चोरी के इस माल का उपयोग चोरी की किताबों से अपनी किताब तैयार करने में ज्यादा होता है।
भारत में किताबें जितनी पढ़ी जाती हैं, उतनी ही चोरी भी होती हैं। कुछ लोगों की अटल मान्यता है कि जोत से जोत जलाने की तर्ज पर एक लायब्रेरी से ही दूसरी लायब्रेरी बनती है। बस आपमें किताबें उड़ाने का हुनर चाहिए। आजम खान की यूनिवर्सिटी में मदरसे की किताबें किस रास्ते से पहुंची, यह अभी तय होना है। लेकिन इस ‘टैग’ ने यह संदेश तो दिया ही है ठिक राजनेता इस मामले में भी पीछे नहीं हैं।
लेखक – अजय बोकिल
भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के संपादक है
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