हमारे देश के हुक्मरान वास्तव में कोरोना संक्रमण को लेकर कितने ‘गंभीर’ हैं इस बात का अंदाज़ा इसी बात से होता है कि देश की ‘जीवन रेखा’ समझी जाने वाली भातीय रेल अभी तक पूरी तरह पटरियों पर दौड़ती नज़र नहीं आ रही है। देश के सभी शिक्षण संस्थाएं भी अभी पूरी तरह संचालित नहीं हो पा रही हैं। यदि कुछ राज्यों में स्कूल-कॉलेज खोले भी गए हैं तो अनेक सावधानियां बरतने की चेतावनी के साथ खोले गए हैं। कोरोना से सतर्क व सुरक्षित रहने की हमारे शासकों की इससे ज़्यादा दूरअंदेशी और क्या हो सकती है कि संसद का शीतकालीन सत्र तक स्थगित कर दिया गया। किसी भी परिवार के लिए ख़ुशियों के सबसे बड़े अवसर यानी शादी विवाह के मंडप तक पर पहरे लगा दिए गए हैं।
न केवल राज्य्वार अलग अलग संख्या विवाह समारोह में शिरकत हेतु निर्धारित की गयी हैं बल्कि मैरिज पैलेस में सैनिटाइज़र व मास्क का प्रयोग भी अनिवार्य होने के इश्तेहार भी लगे रहते हैं साथ ही विवाह स्थल के मुख्य द्वार पर बैठा एक व्यक्ति अतिथियों को सैनिटाइज़र व मास्क की सेवा उपलब्ध कराता भी दिखाई दे जाएगा। सरकार ने समझाया तो किसानों को भी था कि धरने प्रदर्शन से बाज़ आएं क्योंकि यह ‘कोरोना काल ‘ है परन्तु किसान माने नहीं और आख़िर कार ‘दूसरों के बहकावे में भ्रमित होकर’ दिल्ली की सीमाओं पर डेरा जमा बैठे।
सवाल यह है कि जब देश की संसद तक कोरोना के चलते स्थगित रही,ट्रेनें तक पूरी तरह नहीं चल सकीं ऐसे में किसानों में कोरोना का भय क्यों नहीं पैदा हुआ ? सरकार की इतनी चेतावनी व महामारी प्रबंधन दिशा निर्देश जारी होने के बावजूद किसानों ने कोरोना के भय से भयभीत न होने की क्योंकर ठानी ? अनेक किसान नेताओं का तर्क है कि उन्हें भी इस आंदोलन में ‘कोरोना भय मुक्त ‘ होने की प्रेरणा भी दरअसल इन्हीं नेताओं से ही तो मिली है ? अनेक किसान नेता यह कहते हुए भी सुने गए कि जब कोरोना ‘शोषक समाज’ का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा है तो कम से कम हम अन्नदाताओं पर तो रहम करेगा ही ? ज़रा सोचिये कि रेलवे के बाधित होने से आम भारतीय यात्री को आवागमन के लिए कितनी परेशानी उठानी पड़ रही होगी ? परन्तु जब बिहार विधान सभा के चुनाव हों,मध्यप्रदेश के उपचुनाव हों,सरकार के पक्षधर किसानों के सम्मलेन आहूत करने हों, ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के चुनाव हों तो किसी भी जनसभा या रोड शो के लिए न तो किसी सरकारी गाईड लाइन की ज़रुरत है न ही किसी प्रवेश द्वार पर मास्क व सेनिटाइज़र वितरित करने व प्रयोग करने की ?
जी एच एम सी के चुनाव में जिस तरह देश के बड़े से बड़े व ‘फ़ायर ब्रांड’ भाजपा नेताओं द्वारा रोड शो व जनसभाएं की गईं उससे तो साफ़ ज़ाहिर था कि सरकार के लिए कोरोना विस्तार से कहीं अधिक महत्वपूर्ण था हैदराबाद में अपनी विजय पताका फहराना। यही स्थिति बिहार में भी देखी गयी। वहां भी अनेक स्थानीय राजनैतिक दल चुनाव के पक्ष में नहीं थे।परन्तु बिहार में चुनाव भी हुए,जनसभाएं,रोड शो,रैलियां,जनसंपर्क आदि सब कुछ सामान्य तरीक़े से ही हुआ यहाँ तक कि कोरोना से निर्भय होकर विजय जुलूस भी निकाले गए। और अब यही स्थिति बंगाल में भी देखने को मिल रही है। भारतीय जनता पार्टी ने यहाँ भी हैदराबाद की ही तर्ज़ पर अपनी पूरी ताक़त झोंक दी है।
पार्टी नेताओं द्वारा भीड़ जुटाने वाले अनेकानेक कार्यक्रम कोरोना से बेख़ौफ़ होकर किये जा रहे हैं। यानी एक बार फिर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोरोना से बचाव हेतु जारी दिशा निर्देशों का उल्लंघन होता साफ़ दिखाई दे रहा है।जब कोरोना से बचाव हेतु दिशा निर्देश जारी करने वाली केंद्र सरकार के प्रमुख नेतागण ही स्वयं दिशा निर्देशों का उल्लंघन करते नज़र आएं फिर आख़िर अन्य दलों व उनके नेताओं पर ऊँगली उठाने का सवाल ही क्या है ?
पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपना दो दिवसीय बंगाल दौरे पूरा किया। यहाँ शाह ने शांति निकेतन में रवींद्र भवन में रवींद्रनाथ टैगोर को श्रद्धांजलि पेश की। इसके पश्चात् अमित शाह ने पूर्व निर्धारित रोड शो किया। अमित शाह ने रोड शो में शामिल लोगों का आभार जताते हुए बड़े ही गर्व से कहा कि ‘उन्होंने अपने जीवन में इस तरह का रोड शो पहले कभी नहीं देखा। ज़ाहिर है उनके कहने का तात्पर्य रोड शो में मौजूद भारी भीड़ से ही था।
अब ज़रा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इस बयान को सुनिए और कोरोना से बचाव के उस दिशा निर्देश को देखिये जिसमें कोरोना बचाव संबंधी दिशा निर्देशों में साफ़ तौर से कहा गया है कि कोरोना काल में सामाजिक दूरी बनाए रखने से कोरोना के विस्तार पर 75 प्रतिशत तक नियंत्रण हासिल किया जा सकता है। कोई बता सकता है कि हैदराबाद,बिहार,मध्य प्रदेश व अब बंगाल के आने वाले चुनावों में किसी भी दल के किसी नेता द्वारा अपने कार्यकर्ताओं व समर्थकों को इस बात का निर्देश दिया गया हो कि वे सेनिटाइज़ रहें,मास्क ज़रूर पहनें व एक दूसरे से कम से कम एक मीटर के फ़ासले पर खड़े हों ?
स्वयं प्रधानमंत्री भी अनेक सार्वजनिक स्थलों पर कोरोना से बेख़ौफ़ होकर घूमते नज़र आते हैं। प्रधानमंत्री की अनेक वीडिओज़ ऐसी देखी जा सकती हैं जिसमें मौजूद अन्य लोगों को तो मास्क पहनाया गया है परन्तु फ़ोटो शूट के शौक़ीन प्रधानमंत्री स्वयं बिना मास्क के नज़र आ रहे हैं? ऐसे में यह कैसे यक़ीन किया जाए कि संसद का सत्र कोरोना के चलते स्थगित किया गया और दूसरे तमाम प्रतिबंध कोरोना के चलते लगाए गए हैं ? क्या यही मान लिया जाए कि जिस तरह भारतीय नेता अपने आप में ‘तमाम असाधारण विशेषताएँ’ समेटे हुए हैं उसी तरह ‘भारतीय कोरोना’ भी है जो आम लोगों को तो दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य करता है परन्तु यही भारतीय कोरोना, नेता,रोड शो,रैली व चुनाव प्रचार,विजय जुलूस आदि के लिए पूर्णतयः ‘निष्प्रभावी’ है ?
निर्मल रानी