जेएनयू का हल्ला हम लोगों की बौद्धिक दशा का आईना है। एक तरफ शैतानी फौज है जो अपने आपको बौद्धिक कहती है। दूसरी तरफ मूर्ख गंवार हैं जो अपने आपको हिंदुओं की बुद्धि बताते हैं। शैतानी फौज आधुनिक हथियारों याकि मीडिया, साहित्यकार, सार्वजनिक विमर्श के जुगालीबाजों से लैस हैं। दूसरी तरफ भारत मां के हिंदू लाल हैं। ये लाल हाथ में लाठी, भाला लिए हुए हैं। ये शंख बजाते हुए भारत मां की रक्षा का आह्वान करते हैं। स्मृति ईरानी प्रण लेती हैं कि सरस्वती के मंदिर में ऐसा नहीं होने देंगे तो ओपी शर्मा मां की आन में अपनी शान दिखलाते हुए मिलेंगे!
यही सवा अरब लोगों की बौद्धिकता, विचार, सार्वजनिक विमर्श का लब्बोलुआब है! हां, आप जब भी भारत का बौद्धिक विमर्श देखें, अंग्रेजी-हिंदी में टीवी चर्चा सुनें या विचार जांचें, पढ़ें तो इने-गिने अपवाद को छोड़ हमेशा यह बात गांठ बांधे रखें कि या तो यह शैतानी है या मूर्खता है!
इस तस्वीर का अर्थ है भारत बिना बौद्धिकता के है। लड़ाई भले आमने-सामने की हो, विमर्श भले कान फाडू हो लेकिन उसमें न बौद्धिकता होगी और न बौद्धिक ईमानदारी। ऐसा हम हिंदुओं के डीएनए के चलते है। हजार साल की गुलामी ने हम हिंदुओं के अवचेतन में बुद्धि व साहस दोनों के प्रति एलर्जी पैदा कर दी है।
आजाद भारत में हम जो बौद्धिकता देखते हैं वह कुल मिला कर अंग्रेजों का किया हुआ बौद्धिक जुगाली का प्रबंध है। उन्होंने विचार के जो बीज मंत्र दिए उन्हीं की लकीर के फकीर बन हम जी रहे हैं। यह अंग्रेजजन्य, जेएनयूछाप बौद्धिकता हम हिंदुओं के महासागर की सतह पर फैला तेल है। तेल और पानी का मेल नहीं है। जो पानी है, हिंदू का जो महासागर है वह संख्याबल में क्योंकि एक अरब आबादी लिए है, इसलिए इस अस्तित्व की सभ्यताओं के संर्घष में जगह बनती है। लोकतंत्र में पॉवर बनता है। तभी हिंदू मानस के कुछ पॉवर हाउस हैं। इसी की बदौलत भाजपा के पास सत्ता की और संघ परिवार के पास बौद्धिकता की लाठी है।
शैतानी बौद्धिकता याकि अंग्रेजीदां जमात यह अहम पाले हुए है कि आजाद भारत में हिंदुओं पर राज उनका नैसर्गिक बौद्धिक हक है। गुलामी के दौर में एंग्लो-मुस्लिम बौद्धिकता में यह विचार हुआ था कि हिंदू नेटिव में राज का सामर्थ्य नहीं है। इसलिए इन्हें सभ्य बनाना है। व्यवस्था में, विचार में ऐसे बांधा जाए जिससे ये राज कर सकें। इस मंथन और इसी पर फिर नेहरू के आईडिया ऑफ इंडिया के खाके में जो विचारदर्शन बना वह यह शैतानी ख्याल लिए हुए है कि जो हिंदू मूल है वह बकवास है। हिंदू जो सोचे, जो चाहे वह गलत और जो पश्चिम ने हमें दिया है वही सही है! उसी में समाज और देशहित है। जाहिर है शैतानी बौद्धिकता विरासत में गहरी पैठी हुई है। इसके पास औजार भी है और फार्मूले भी।
ठीक विपरीत हिंदू की संख्या ने जो संगठन बनाया, चिंता बनाई वह बेगानी है तो बिना बौद्धिकता के भी है। इसमें विचार की जगह हवा में लठ और भाले हैं या फिर भारत मां के जुमले हैं। एक तरफ बौद्धिकता के नाम पर शैतानी फार्मूले, औजार तो दूसरी और संख्या का ताकत बल। मतलब अबौद्धिकता दोनों तरफ हैं। इसे गहराई से समझना-बूझना हो तो सिर्फ एक काम करें। ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस में विचार, बहस, लेखन की किसी भी बात में आप भारत के आधुनिक विचार, विचार प्रक्रिया, बौद्धिकता को तराजू में तौलें तो समझ आ जाएगा कि हम सचमुच अज्ञानी, दोयम दर्जे के, बिना बुद्धि और बिना बल के हैं!
इसका दुष्परिणाम भारत राष्ट्र-राज्य का सतत खोखलाना है। बोध ही नहीं बनता कि जेएनयू, जादवपुर में यदि भारत की बरबादी का नारा गूंजा है तो यह 20-50 साल बाद की देश तोड़ने, गृहयुद्ध की प्रतिध्वनियां भी लिए हुए हो सकता है। पर इसे बौद्धिक शैतानों ने तुरत कुतर्कों से ढका।
सेकुलर मीडिया के औजार ने कैंसर की बजाय इसे फोड़ा कह हल्ला बनवा दिया कि ओपी शर्मा ने क्या गुंडई की! जबकि बात वामपंथ-इस्लाम के चरम चेहरों का भारत बरबादी मिशन है। भारत के सोलह टुकड़े होंगे इंसा अल्लाह! इंसा अल्लाह! का नारा है।
पर इस पर मुलम्मा चढ़ाने के लिए शैतान बौद्धिकों ने दस तरह के झूठ बोले। झूठ से 9 फरवरी का जेएनयू का नारा 16 फरवरी को जादवपुर विश्वविद्यालय जा पहुंचा! सोचें, भारत के शैतान बौद्धिकों ने कितनी जल्दी बंगाल के जादवपुर में भारत की बरबादी को पहुंचा दिया। भारत राष्ट्र को दमनकारी बनवा दिया।
ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि इन शैतानों के मूर्ख विरोधियों के पास प्रतिवाद का वह वैचारिक बल नहीं था जिस पर देश उठ खड़ा होता। तब जादवपुर में देश विरोधियों की हिम्मत नहीं होती।
यह भी सोचें कि पिछले 8 दिनों में भारत की बरबादी के नारे पर क्या किसी नामचीन मुस्लिम बौद्धिक याकि इरफान हबीब एंड पार्टी ने भर्त्सना का कोई बयान दिया? मुसलमान कोई भी हो, पढ़ा-लिखा या निरक्षक, औजार कोई भी हो, जेएनयू, राजनीति, सरकार, मीडिया इस सबमें मुस्लिम चेहरे प्रतिवाद में उठ खड़े नहीं होते। किसी मुस्लिम लाल का यह जवाब नहीं आता कि भारत के नहीं पाकिस्तान के सोलह टुकड़े होंगे इंसा अल्लाह! इंसा अल्लाह!
शायद इसलिए कि भारत माता के जो मूल लाल हैं वे पहले लड़ लें। संकट हिंदुओं का है। भारत माता को यह सनातनी श्राप है कि जयचंद, जाफर भी भारत माता की जर जमीं पर है और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे भी उसी पर। इसका शैतानी बनाम मूर्ख बौद्धिक विमर्श भी अंत में इस बहस में बदला होता है कि गुंडे कौन? भारत मां के झंडाबरदार! दमनकारी कौन? भारत माता!
जय हो भारत माता!
हरि शंकर व्यास – ” नया इंडिया ” के संपादक है
Hari Shankar Vyas (@hsvyas)
[starlist][/starlist]